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बेनकाब कश्मीरी नेताओं का चरित्रः सच आया सामने, गुपकार या देशद्रोही समूह

गुपकार नाम से ये पार्टियाँ किसी सिद्धांत के लिए नहीं, बल्कि स्वार्थ के लिए एक जुट हुई हैं। जनता को इन्हें जवाब देना होगा। ताकि कश्मीर के भले की आड़ में जो अपना भला ये दल कर रहे हैं उसे जनता समझ चुकी है।

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Published on: 27 Nov 2020 3:35 PM IST
बेनकाब कश्मीरी नेताओं का चरित्रः सच आया सामने, गुपकार या देशद्रोही समूह
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Uncover Kashmiri leaders' character: truth came to the fore, GUPKAAR or traitor group

योगेश मिश्न

नेताओं की जाति के बारे में जानना बहुत मुश्किल काम है। हालाँकि आपको यह वाक्य पढ़ते हुए लग सकता है कि हर नेता की जाति जगज़ाहिर है। हर नेता अपनी जाति की सियासत को सबसे अधिक अहमियत देता है। फिर नेता की जाति के बारे में जानना मुश्किल कैसे है? दरअसल नेता सबसे बड़ा अभिनेता होता है।

जनता के लिए यह जानना मुश्किल होता है कि उसका कौन सा अभिनय उसके चरित्र का हिस्सा है? कौन सा चरित्र स्थायी है। जाति का एक रिश्ता लोकभाषा में चरित्र से भी जुड़ता है। हम जिस जाति के विचार में आज रूढ़ हैं। यह तो बहुत बाद की बात है। हमारे यहाँ वर्ण थे।

फिर काम के हिसाब से वर्ण कब जातियों में तब्दील हो गया यह बता पाना काफ़ी मुश्किल है। पर जाति में तब्दील होने से पहले यह चरित्र के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता रहा है।

क्या है चरित्र गुपकार सम्मेलन का

नेताओं के चरित्र को समझने का ताज़ा उदाहरण जम्मू कश्मीर का गुपकार सम्मेलन है। जहां साँप नाथ व नागनाथ नहीं, बल्कि शेर व हिरन, बिल्ली व चूहा, साँप व नेवला एक साथ दिख रहे हैं।

आज़ादी के बाद सियासत में जिनकी कई पीढ़ियाँ क़ाबिज़ रहीं। जिनकी सियासत के चलते धरती का स्वर्ग कही जाने वाली घाटी कई दशकों से आतंक के साये में जीने को अभिशप्त है। जहां विशेष राज्य के नाम पर काफ़ी बड़ी धनराशि दी गई पर वह सियासी बंदरबाँट की भेंट चढ़ गयी। जिनकी वजह से खूँख्वार आतंकवादियों को कांधार ले जाकर छोड़ना पड़ा हो। वही ताक़तें, वही लोग फिर एकजुट होकर सियापा पीट रहे हैं।

पिछले महीने जम्मू कश्मीर पंचायती राज एक्ट में संशोधन किया गया ताकि डीडीसी (डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट कौंसिल) के सीधे चुनाव हो सकें। अब मिनी असेम्बली चुनाव माने जा रहे इस चुनाव में जनता को वोट डालने का मौक़ा मिलेगा। पहले तो राज्य की पार्टियाँ चुनाव में भागीदारी में रूचि नहीं दिखा रही थीं।

गुपकार की शून्य भागीदारी में पंचायत व ब्लॉक चुनाव

पंचायत और ब्लॉक स्तर के चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों की भागीदारी के बगैर हो चुके हैं। अब 28 नवम्बर से 22 दिसंबर तक डीडीसी चुनाव होंगे जिसमें गुपकार पार्टियाँ भी हिस्सा लेने जा रही हैं।

‘गुपकार’ जम्मू - कश्मीर के विपक्षी दलों का एक गठबंधन है, जिसे ‘पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेयरेशन (पीएजीडी)’ का नाम दिया गया है। यह एक तरह का घोषणा पत्र है जिस पर हस्ताक्षर करने वाली सभी पार्टियों के एक समूह को ‘गुपकार गठबंधन’ कहा जाता है। इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को पहले की तरह विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का है।

गुपकार गठबंधन में फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीआई (एम), पीपुल्स मूवमेंट, पैंथर्स पार्टी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस शामिल है।

श्रीनगर में एक सड़क का नाम है गुपकार रोड। इसी गुपकार रोड पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला का निवास स्थान है। इसी जगह पर यानी फारूक अब्दुल्ला के आवास पर राज्य से अनुच्छेद 370 हटने से एक दिन पहले यानी 4 अगस्त, 2019 को कश्मीर के कुछ दलों ने एक साथ बैठक की थी।

असमंजस का गुपकार

गुपकार योजना को लेकर हुई पहली बैठक नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के निवास पर आयोजित की गई थी। इसमें पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सजाद लोन, पीपुल्स मूवमेंट के नेता जावेद मीर, सीपीआईएम नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष मुजफ्फर शाह ने भाग लिया था।

kashmir gupkar

यह बैठक राज्य में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती और असमंजस की स्थिति में हुई, जिसमें राज्य की परिस्थिति को लेकर पार्टियों ने एक साझा बयान जारी किया, जिसे गुपकार समझौता का नाम दिया गया।

इस समझौते में कहा गया है कि पार्टियों ने सर्व-सम्मति से फैसला किया है कि जम्मू कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को संरक्षित करने के लिए वे मिलकर प्रयास करेंगी।

क्या कहा था फारूक अब्दुल्ला ने

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने ‘पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लयरेशन’ के गठन के बाद कहा था कि गठबंधन जम्मू-कश्मीर के संबंध में संवैधानिक स्थिति बहाल करने के लिए प्रयास करेगा, जैसा पिछले वर्ष पांच अगस्त से पहले था।

उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया, उसकी बहाली के लिए हम संघर्ष करेंगे। ‘हमारी संवैधानिक लड़ाई है, हम (जम्मू-कश्मीर के संबंध में) संविधान की बहाली के लिए प्रयास करेंगे, जैसा कि पांच अगस्त 2019 से पहले था।‘

केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध करने के दौरान गुपकार समूह के नेता भारत के विरोध में भी बातें करने लगे हैं। नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्‍दुल्‍ला ने भारत से बेहतर चीन सरकार को बताया और जम्‍मू –कश्‍मीर को चीन में मिला देने की बात कुछ इस तरह कर डाली जैसे जम्‍मू एवं कश्‍मीर उनकी अपनी निजी जागीर है। कांग्रेस ने फारूख अब्दुल्ला या ऐसे नेताओं का विरोध भी नहीं किया।

अमित शाह का हमला

इसी के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुपकार समूह को गुपकार गैंग बताते हुए हमला बोला। उन्‍होंने कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल खडे किए हैं कि किस तरह कांग्रेस के नेता गुपकार गैंग को बढावा देकर देश हित से खिलवाड कर रहे हैं।

उन्‍होंने साफ कहा कि गुपकार गैंग में शामिल लोग कश्मीर में विदेशी ताकतों का दखल चाहते हैं। एक तरह से अमित शाह ने गुपकार गठबंधन अथवा गुपकार घोषणा पत्र को देशहित के खिलाफ बताया है।

शाह ने कहा कि या तो गुपकार गैंग के लोग देश की भावना से जुडकर चलेंगे अन्यथा राष्ट्रहित के खिलाफ काम करने पर देश की जनता इन्हें डुबो देगी। अपने अगले ट्वीट में भी उन्‍होंने कांग्रेस पर सीधा निशाना साधा और कहा कि कांग्रेस व गुपकार गैंग जम्‍मू –कश्‍मीर को आतंक और बर्बादी के उसी पुराने युग में वापस ले जाना चाहते हैं जहां दलितों, महिलाओं और आदिवासियों को उनके अधिकार न मिल सकें।

अमित शाह ने कहा अनुच्छेद 370 हटाकर भाजपा ने लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली की है। यही वजह है कि कांग्रेस व गुपकार गैंग को आम लोगों ने नकार दिया है।

कांग्रेस की बौखलाहट

केंद्रीय गृह मंत्री के इस बयान पर बवाल होना स्‍वाभाविक था। देश विरोधी लोगों के साथ खड़े रहने का आरोप लगने से कांग्रेस बौखला उठी है। कांग्रेस के प्रवक्‍ता रणदीप सुरजेवाला ने अगले दिन ही ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी गुपकार गठबंधन का हिस्सा नहीं है।

इसके साथ ही कांग्रेस ने अपनी स्थिति भी स्‍पष्‍ट करने की कोशिश की है। कांग्रेस ने कहा है कि "वह देश के हर प्रदेश, केंद्रशासित प्रदेश के लोगों के संवैधानिक अधिकारों के साथ है। कांग्रेस पार्टी देशवासियों के अधिकारों की लड़ाई पहले भी लड़ती रही है, आगे भी लड़ेगी।”

हालांकि कांग्रेस ने भाजपा व पीडीपी की गठबंधन सरकार को लेकर जवाबी हमला करने की कोशिश की लेकिन गुपकार गैंग को लेकर अमित शाह ने जो हमला बोला उसका जवाब अब तक नहीं दे सकी है।

जम्मू –कश्मीर के गुपकार एजेंडा को लेकर अमित शाह ने जिस तरह से सधा हुआ राजनीतिक बयान जारी किया है उसने कांग्रेस को देश के बड़े मतदाता वर्ग की नजरों में संदिग्‍ध बना दिया है।

जनता की रुची विकास में

कश्‍मीर में आतंकवाद एक बडी और दीर्घकालीन समस्या है। पिछले दो से तीन दशक में सरकारें इस समस्या का समाधान करने में विफल रही हैं। केंद्र की मौजूदा सरकार के उपाय कारगर होते दिखाई दे रहे हैं। जिस तरह से जम्मू –कश्मीर में पंचायत चुनावों को लेकर लोग उत्‍सुक एवं जागरुक नजर आ रहे हैं।

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आतंकियों पर ठोस कार्रवाई हुई उसने देश के लोगों में आशा की ज्योत जला दी है कि कश्‍मीर में बहारें शायद जल्‍द ही लौटकर आएंगी और दुनिया की इस जन्नत को जहन्‍नुम बनने से रोका जा सकेगा।

अमित शाह के बयान ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जम्‍मू –कश्मीर में राजनीति का मकसद स्‍थानीय स्‍तर पर सुविधाओं की बहाली और सामान्य नागरिकों को सम्‍मानपूर्ण जीवन अवसर प्रदान करना ही होना चाहिए।

इस्लाम परस्त राजनीति को जगह नहीं

इस्लाम का दायरा लोगों के जीवन के मजहबी कारोबार तक ही सीमित रखना होगा। इस्‍लाम परस्‍त राजनीति को देशहित पर हावी नहीं होने दिया जा सकता है। अगर गुपकार समूह या कांग्रेस ऐसा करते नजर आएगी तो वाकई उन्हें देश की जनता पानी में डुबो देगी। गुपकार गैंग भारत के तिरंगे का भी अपमान करता है।

गुपकार पार्टियों का मक़सद एक साथ मिलकर चुनाव लड़ कर भाजपा के 370 के कमजोर करने के फ़ैसले का विरोध करना है। एक पार्टी जो अपने स्थापना काल से कश्मीर में 370 के समाप्त की बात लगातार कह रही हो। जिसके एक नेता की जम्मू कश्मीर की जेल में रहस्यमय मृत्यु हो गयी हो।

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वह पार्टी दूसरी बार केंद्रीय सत्ता में अकेले अपने बलबूते आयी हो तो उससे यह आशा नहीं की जानी चाहिए कि वह गुपकार पार्टी के मन मुताबिक़ काम करेंगी। भाजपा के फ़ैसले का विरोध किया करना भी राजनीतिक दलों का लोकतांत्रिक अधिकार है।

लेकिन मौसेरे भाई के मेल से लोकतंत्र पर क़ाबिज़ होने की साज़िश या कोशिश का खुलासा करना भी ज़रूरी है। जिस तरह सभी पार्टियाँ एकजुट हुई हैं, उससे यह तो पता लग ही जाता है कि इनके स्वार्थ कितने एक सरीखे है।

कश्मीर की आड़ में अपना भला

ये पार्टियाँ किसी सिद्धांत के लिए नहीं, बल्कि स्वार्थ के लिए एक जुट हुई हैं। जनता को इन्हें जवाब देना होगा। ताकि कश्मीर के भले की आड़ में जो अपना भला ये दल कर रहे हैं उसे जनता समझ चुकी है। यह इन्हें पता चल जाये। पाक परस्ती, आतंकवाद जम्मू कश्मीर के कुछ मुट्ठी भर भाडे के लोगों के लिए भले ही जीवन मूल्य हों पर आम कश्मीरी के लिए नहीं हो सकता।

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क्योंकि पुरातात्विक खुदाई में 3000 ईसा पूर्व और 1000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्व के चार चरण सामने आए हैं।जो नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उत्तर-महापाषाण काल से संबंधित प्रमाण भी मिले है। यहाँ शंकराचार्य का मठ है। यहाँ कल्हण निवास करते थे। यहाँ राजा हिंदू थे।

यहाँ की सूफ़ी-परम्परा बहुत विख्यात है, जो कश्मीरी इस्लाम को परम्परागत शिया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हिन्दुओं के प्रति सहिष्णु बना देती है। कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता है। सभी कश्मीरियों को कश्मीर की संस्कृति पर बहुत नाज़ है।

हर कश्मीरी की ख्वाहिश

वादी-ए-कश्मीर अपने चिनार के पेड़ों, कश्मीरी सेब, केसर (ज़ाफ़रान, जिसे संस्कृत में काश्मीरम् भी कहा जाता है), पश्मीना ऊन और शॉलों पर की गयी कढ़ाई, गलीचों और देसी चाय (कहवा) के लिये दुनिया भर में मशहूर है। यहाँ का सन्तूर भी बहुत प्रसिद्ध है।

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आतंकवाद से कश्मीरियों की खुशहाली को धक्का लगा है। कश्मीरी व्यंजन भारत भर में बहुत ही लज़ीज़ माने जाते हैं। परम्परागत कश्मीरी दावत को वाजवान कहा जाता है।

कहते हैं कि हर कश्मीरी की यह ख़्वाहिश होती है कि ज़िन्दगी में एक बार, कम से कम, अपने दोस्तों के लिये वह वाज़वान परोसे। कुल मिलाकर कहा जाये तो कश्मीर हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण है। इसे भंग करने वालों के चेहरे पहचानने की ज़रूरत है।

योगेश मिश्र

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व न्यूजट्रैक के संपादक हैं)

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