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95 Yr. की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले जेठमलानी की फिटनेस का ये था राज
संजय सिंह ने राम जेठमलानी के यादगार पलों के बारे में बताया कि राम जेठमलानी नामांकन के समय क्लार्क होटल में रुके थे, उसके कुछ दिनों बाद जेमिनी होटल में शिफ्ट हो गए। वहीं से अपनी चुनावी कमान सँभालते थे।
धनंजय सिंह
लखनऊ: राम जेठमलानी के लिए राजनीति की लंबी दौड़ हो या कोर्ट में दिन भर की थकान। वह सुबह उठकर व्यायाम करना कभी नहीं भूलते थे।
एक्सर्साइज ही तमाम व्यस्तताओं के बावजूद उन्हें कभी थकान नहीं महसूस होने देती थी। और यही उनकी लम्बी उम्र का राज भी रहा।
ये राम जेठमलानी की हिम्मत और हौसला ही था कि वह 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी से नाराज होकर उनके खिलाफ लखनऊ से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतर गए।
उन्होंने अपना चुनावी दफ्तर हलवासिया में बेगम हबीबुल्लाह के आवास में बनाया। चुनाव प्रबंधन का काम राजधानी के प्रतिष्ठित वकील संजय सिंह को सौंपा।
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जेठमलानी के करीबी रहे संजय सिंह ने किया ये बड़ा खुलासा
संजय सिंह ने राम जेठमलानी के यादगार पलों के बारे में बताया कि राम जेठमलानी नामांकन के समय क्लार्क होटल में रुके थे, उसके कुछ दिनों बाद जेमिनी होटल में शिफ्ट हो गए। वहीं से अपनी चुनावी कमान सँभालते थे।
देर रात में अस्सी वर्ष के जेठमलानी चुनाव प्रचार करके लौटते थे लेकिन सुबह 5 बजे जरूर उठ जाते थे। जगने के बाद आधा घण्टा व्यायाम अवश्य करते थे, उसके बाद 6.00 से 6.30 बजे तैयार होकर सबके बीच आ जाते थे।
एकदम तरोताजा जेठमलानी फुल एनर्जी के साथ कहते थे कि कहां- कहां प्रचार के लिए जाना है, इसके बाद उनके कार्यक्रम की लिस्ट तैयार कि जाती थी। फिर दिन भर छोटी-छोटी जनसभाओं को सबोधित करते हुए कारवां चलता रहता था।
कभी किसी बात को लेकर नहीं होते थे नाराज
संजय सिंह ने बताया कि जेठमलानी जी बहुत संतुलित भोजन करते थे। दिन भर भले ही कितना पद यात्रा की गयी हो, उनके चेहरे पर कभी थकान नहीं देखी गयी, न ही कभी किसी बात को लेकर नाराज हुए।
संजय सिंह ने उनके चुनावी प्रबंधन के बारे में बताया कि लखनऊ के सभी विधानसभा वार कार्यालय बनाये गए थे, उसकी जिम्मेदारी कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशियों के जिम्मे थी।
वह अपने क्षेत्र में कहां-कहां जाना है, उसकी सूची देते थे, उनकी सूची के अनुसार रणनीति तय की जाती थी।
संजय सिंह कहते हैं कि चुनाव में पराजय मिलने के बाद जेठमलानी ने समर्थकों से कहा कि कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। बल्कि खुद को अगली जंग की तैयारी में अभी से जुट जाना चाहिए।
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वकालत से लेकर राजनीति में बनाई अलग पहचान
उल्लेखनीय है कि वकालत के साथ राम जेठमलानी सियासत में भी उतने ही रमे हुए थे। वह कई दलों से राज्यसभा सदस्य तो रहे ही, साथ ही केंद्र सरकार में कानून मंत्री भी रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें कानून मंत्री बनाया गया था। कानून मंत्री रहते कई बार ऐसे मौके भी आए जब वह भारतीय जनता पार्टी के लिए सिर दर्द बन गए।
वह कानून मंत्री के तौर पर जूडिशियरी में कई सुधार करना चाहते थे, लेकिन उस पर आम सहमति नहीं बन पा रही थी। ऐसे में तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी से उनके मतभेद बढ़ते गए, हालात इतने बिगड़ गए कि उनके सुर सरकार के खिलाफ चले गए।
राम जेठमलानी को लालकृष्ण आडवाणी के दबाव में अटल विहारी वाजपेयी के सरकार में शामिल किया गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, कभी जेठमलानी को पसंद नहीं करते थे।
पूर्व पीएम अटल बिहारी से तल्खी बढ़ने पर गंवानी पड़ी थी कुर्सी
तल्खी बढ़ने पर प्रधानमंत्री ने उन्हें मंत्रिपद से बर्खास्त कर दिया, इसके बाद अरुण जेटली को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिन अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें मंत्री बनाया उन्हीं के खिलाफ बाद में लखनऊ से जेठमलानी ने ताल ठोक दी।
2004 के लोकसभा चुनाव में राम जेठमलानी निर्दलीय ही लखनऊ से अटल विहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतर गए।
2004 के चुनाव में बीजेपी इंडिया शाइनिंग के रथ पर सवार होकर सत्ता में फिर से वापसी की तैयारी कर रही थी। ये वही चुनाव था जिसमें अटल ने कहा था – थका हूं, मगर रिटायर नहीं हुआ हूं।
ये बात आधी सही साबित हुई और आधी गलत. आधी सही इसलिए क्योंकि वो लखनऊ से चुनाव जीते। मगर देश में इंडिया शाइनिंग का नारा नहीं चला।
इस बार उनके सामने थे सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील राम जेठमलानी। मगर उनसे ज्यादा अटल को टक्कर दी मधु गुप्ता ने। हालांकि ये टक्कर भी नाम मात्र थी। वो इसलिए क्योंकि अटल इस बार भी करीब 2,20,000 वोटों से जीते थे।
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ये रहा था रिजल्ट
अटल बिहारी वाजपेयी – 3,24,714 वोट
मधु गुप्ता – 1,06,337 वोट
राम जेठमलानी – 57,683 वोट