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Veer Savarkar Death Anniversary: वो स्वतंत्रता सेनानी जिससे घबराती थी अंग्रेज हुकूमत

Ashiki
Published on: 26 Feb 2020 4:28 PM IST
Veer Savarkar Death Anniversary: वो स्वतंत्रता सेनानी जिससे घबराती थी अंग्रेज हुकूमत
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नई दिल्ली: आज स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है। सावरकर भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे। आज ही के दिन यानि 26 फरवरी 1966 उन्‍होंने अंतिम सांस ली थी। सावरकर का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में 28 मई 1883 को हुआ था। उन्हें वीर सावरकर के नाम से संबोधित किया जाता है। सावरकर क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे।

अंग्रेज उन पर रखते थे नजर-

वीर सावरकर का जन्म नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। सावरकर को लेकर देश के लोग दो वर्गों में विभाजित करते हैं। कई लोग उन्हें देश भक्त मानते हैं तो कई लोगों में उनकी छवि इसके बिल्कुल विपरीत है। इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ की किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' में सावरकर के जीवन से जुड़ी कई ऐसी बातें सामने आती हैं जो बहुत काम लोगों को मालूम है।

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किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' के मुताबिक जेल से रिहा होने के बाद सावरकर को रत्नागिरी में ही रहने को कहा गया था। अंग्रेज उन पर नजर रखते थे। बेहद कम लोग जानते हैं कि अंग्रेज सरकार ने उन्‍हें मिली स्‍नातक की डिग्री को इसलिए वापस ले लिया था क्‍योंकि उन्‍होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। ऐसे राज बंदियों को जिन्हें कंडीशनल रिलीज मिलती थी उन सभी को पेंशन दी जाती थी। उस समय अंग्रेजों की ऐसी शर्त थी कि हम आपको काम करने की छूट नहीं देंगे, आपकी देखभाल हम करेंगे।

बीजेपी ने भारत रत्न देने का किया था वादा-

पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में वीर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था, जिसको लेकर कांग्रेस ने सवाल भी उठाए थे। कई मौकों पर सावरकर को लेकर विवाद खड़ा होता रहा है। वाजपेयी सरकार वीर सावरकर को भारत रत्न देने की कोशिश कर चुकी है। वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास प्रस्ताव भेजा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।

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गृह मंत्री अमित शाह ने किया याद-

आज वीर सावरकर की पुण्यतिथि पर गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें को याद किया। शाह ने ट्वीट करते हुए कहा, 'वीर सावरकर जी के क्रांतिकारी विचारों से घबरा कर अंग्रेजों ने उन्हें न सिर्फ कालापानी की सजा दी बल्कि दो आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई। सावरकर ऐसी सजा पाने वाले एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी बने। अस्पृश्यता के विरुद्ध और दलित समाज के हितों की वो एक प्रखर आवाज बने। ऐसे उत्कृष्ट राष्ट्रभक्त को कोटि-कोटि नमन।'



बेहद कम लोग जानते हैं कि भारत के राष्ट्रध्वज में सफेद पट्टी के बीच मौजूद चक्र को लगाने का सुझाव सबसे पहले वीर सावरकर ने ही दिया था। इसको राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तुरंत मान भी लिया था। सावरकर ने ही सबसे पहले भारत की पूर्ण आजादी को स्‍वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्‍य बनाया और घोषित किया। वीर सावरकर ने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय विद्यार्थी थे। वीर सावरकर ने ही सबसे पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। इसके बाद में ये आंदोलन पूरे देश में फैल गया था।

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