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बर्थडे: विक्रम साराभाई, जिनकी वजह से हिन्दुस्तान की धमक अंतरिक्ष में पहुंची

उन्होंने राष्ट्र के वास्तविक संसाधन की तकनीकी और आर्थिक मूल्यांकन के आधार पर देश की समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी में सक्षमता प्राप्त करने की दिशा में कार्य किया। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की, जो आज पूरे विश्व में विख्यात है।

Manali Rastogi
Published on: 12 Aug 2019 3:10 AM GMT
बर्थडे: विक्रम साराभाई, जिनकी वजह से हिन्दुस्तान की धमक अंतरिक्ष में पहुंची
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बर्थडे: विक्रम साराभाई, जिनकी वजह से हिन्दुस्तान की धमक अंतरिक्ष में पहुंची

नई दिल्ली: महान वैज्ञानिक विक्रम अंबालाल साराभाई का आज जन्मदिन है। इन्हें इंडियन स्पेस प्रोग्राम का पितामह माना जाता है। वह भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया।

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पद्म भूषण अवार्ड से हो चुके है सम्मानित

विक्रम अम्बालाल साराभाई एक भारतीय वैज्ञानिक और खोजकर्ता थे जो ज्यादातर भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के जनक के नाम से जाने जाते है। भारत को स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में साराभाई ने नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया और अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर देश की उपस्थिति दर्ज कराई। साराभाई 'परमाणु ऊर्जा आयोग' के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। साइंस और इंजीनियरिंग के फील्ड में अपने खास योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

1947 में की थी प्रयोगशाला की स्थापना

1947 नंवबर में अहमदाबाद में भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की। उनके माता पिता के द्वारा स्थापित अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी के एम.जी विज्ञान संस्थान के कुछ कमरों में प्रयोगशाला को स्थापित किया गया। तदनंतर वैज्ञानिक और औद्योगिकी अनुसंधान परिषद (सी एस आई आर) और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा समर्थन भी मिला।

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भारतीय राष्ट्रीय समिति का किया गठन

विक्रम साराभाई ने कास्मिक किरणों के समय परिवर्तन पर अनुसंधान किया और निष्कर्ष किया कि मौसम विज्ञान परिणाम कास्मिक किरण के दैनिक परिवर्तन प्रेक्षण पर पूर्ण रुप से प्रभावित नहीं होगा। साराभाई ने IGW के लिए भारतीय कार्यक्रम में एक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1957 में स्पुटनिक-1 के प्रमोचन ने उनको अंतरिक्ष विज्ञान के नए परिदृश्यों से अवगत कराया।

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उनकी अध्यक्षता में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया गया। थुम्बा का विशेष नक्शा कि वह भू-चुबंकीय मध्यरेखा के निकट है को देखते हुए विक्रम साराभाई ने तिरुअनंतपुरम के पास अरबी तट पर स्थित एक मछुवाही गॉव थुम्बा में देश के प्रथम राकेट प्रमोचन स्टेशन, थुम्बा भू-मध्य रेखीय राकेट प्रमोचन स्टेशन (TERLS) की स्थापना का चयन किया।

1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के बने थे अध्यक्ष

नवंबर 21, 1963 को प्रथम राकेट का प्रमोचन किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1965 में, TERLS को एक अंतर्राष्ट्रीय सुविधा के रूप में मान्यता दी। विमान दुर्घटना में होमी भाभा के अकाल मृत्यु के बाद, विक्रम साराभाई ने मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद को संभाला।

वे हमेशा से यह चाहते थे कि विज्ञान के प्रायोगिक उपयोग आम आदमी तक पहुंचे। उन्होंने राष्ट्र के वास्तविक संसाधन की तकनीकी और आर्थिक मूल्यांकन के आधार पर देश की समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी में सक्षमता प्राप्त करने की दिशा में कार्य किया। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की, जो आज पूरे विश्व में विख्यात है।

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