×

कोरोना महासंकट से संघर्ष का महायोद्धा

भारत कोरोना मुक्ति की लड़ाई जीवन की कठिनतम लड़ाई है। ये संघर्ष करने वालों का अमर इतिहास रच रही है। पर इसे प्राप्त करने के लिए लम्बा संघर्ष भी करना पड़ रहा हैं। करीब-करीब दुनिया के हर राष्ट्र को इन जटिल स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है।

suman
Published on: 13 April 2020 11:26 PM IST
कोरोना महासंकट से संघर्ष का महायोद्धा
X

ललित गर्ग

भारत कोरोना मुक्ति की लड़ाई जीवन की कठिनतम लड़ाई है। ये संघर्ष करने वालों का अमर इतिहास रच रही है। पर इसे प्राप्त करने के लिए लम्बा संघर्ष भी करना पड़ रहा हैं। करीब-करीब दुनिया के हर राष्ट्र को इन जटिल स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि कोविड-19 से मुकाबला करने के मामले में दुनिया की महाशक्तियों एवं उनके राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत आगे हैं।

यह पढ़ें...तीन नागरिकों की मौत पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान को दी चेतावनी

मास्क, सैनिटाइजर और वेंटिलेटर की कमी के बावजूद मोदी देश की एक अरब तीस करोड़ की आबादी को एकजुट करने के साथ उनका प्रभावी नेतृत्व कर रहे हैं। वे बहुत अनूठे अंदाज में सूझबूझ से कोरोना से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चला रहे हैं और इसमें न केवल विभिन्न धर्म-जाति-वर्ग के समुदायों का सहयोग एवं विश्वास हासिल कर रहे हैं, बल्कि फिल्म कलाकारों और खेल हस्तियों समेत जनमत तैयार करने वाले सभी लोगों को शामिल कर रहे हैं। यह अलग बात है कि 21 दिन के लॉकडाउन की अचानक ही घोषणा कर देने से सामान्य जनजीवन बाधित हुआ है, जिससे रोज कमाने वाले लाखों गरीब लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। लेकिन इन बड़ी बाधाओं के बावजूद आम आदमी मोदी के साथ खड़ा है तो यह उनके करिश्माई एवं जादुई व्यक्तित्व एवं प्रभावी नेतृत्व का ही परिणाम है। हम इतिहास की इस सबसे बड़ी त्रासदी एवं महासंकट के गवाह बन रहे हैं और मोदी एक सफल यौद्धा की भांति इस विकराल संकट से लड़ रहे हैं। यह न केवल भारत की जनता बल्कि सम्पूर्ण मानवता की सुरक्षा की आशा का प्रतीक है।

कोरोना के कारण हो रहे आर्थिक नुकसान की भरपाई करने के लिए वैसे तो कार्पोरेट क्षेत्र से लेकर अन्य स्वयंसेवी संगठनों, धार्मिक संस्थाओं-मन्दिरों, फिल्मी एवं खेल हस्तियों ने अपनी-अपनी क्षमता के मुताबिक योगदान दिया है परन्तु चुने हुए जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी ऐसी परिस्थितियों में बहुत बड़ी होती है। अतः राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री समेत केन्द्रीय मन्त्रियों व सांसदों के वेतन में एक वर्ष तक 30 प्रतिशत कटौती करने का मोदी सरकार का फैसला भी प्रासंगिक एवं दूरगामी सोच से जुड़ा है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके सांसद निधि को भी दो वर्ष के लिए स्थगित कर दिया है। मोदी सरकार ने यह कदम उठा कर गरीबों के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है।

यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संघर्ष है। हालांकि अभी अंतिम छोर दूर है पर पहला कदम कोरोना मुक्ति की ओर उठ चुका है। एक लम्बा रेगिस्तान पार करना है। सवाल बंजर और रेगिस्तान का नहीं, सवाल पुराने और नये का नहीं, सवाल उस धरती का है जो कोरोना की कुर्बानियों की हल्दीघाटी बना हुआ है। कोरोना मुक्ति की लड़ाई जीवन की कठिनतम लड़ाई है। जो डाक्टरों, पुलिस-सफाईकर्मियों, मीडिया के संघर्ष करने वालों का अमर इतिहास रच रही है। पर इसे प्राप्त करने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ रहा हैं।

यह पढ़ें...कोरोना के खिलाफ सबसे एक्टिव अमित शाह, गृह मंत्रालय कर रहा 24 घंटे काम

करीब-करीब दुनिया के हर राष्ट्र को इन स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। लेकिन इस संकट को तबलीगी जमात के लोगों ने गहरा कर दिया एवं खतरनाक मोड़ दे दिया। जो जान देकर राष्ट्र बना रहे हैं और जो कल्पना करते हैं कि दूसरों की जान लेकर राष्ट्र बनेगा, उसमें कितना अन्तर है, सहज अनुमान लगाया जा सकता है। तबलीगी जमात के लोगों को यह समझना चाहिए कि वे अपना ही नुकसान नहीं कर रहे बल्कि पूरे देश को खतरे में डालने के साथ सबसे बड़ा नुकसान मुस्लिम समाज का ही कर रहे हैं क्योंकि अपनी मजहबी कट्टरपंथी विचारधारा को ये लोग मुस्लिम सम्प्रदाय में ही फैलाने की कोशिशें करते हैं। एक गांव में जिस तरह एक व्यक्ति ने तबलीगियों की आलोचना करने पर दूसरे समुदाय के एक युवक की हत्या की वह इस जमात के कट्टरपंथी नजरिये एवं बेवकूफी के सच की प्रस्तुति है और पूरे देश को आइना दिखाती है कि जमात की असलियत क्या है। जैसे बुद्धिमानी एक ‘वैल्यू’ है, बेवकूफी भी एक ‘वैल्यू’ है और कोरोना महामारी के दौर में इस वैल्यू का जमात ने उपयोग किया, जो एक त्रासदी बन कर सामने आयी है।

आंखें खोल देने वाली हकीकत यह है कि जो भी नये मामले कोरोना संक्रमण के आये हैं उनमें से अधिसंख्य तबलीगी जमात के ही हैं। इसके साथ यह भी हकीकत आयी है कि देश के 700 से अधिक जिलों में 62 जिले ऐसे हैं जिनमें कोरोना ग्रस्त पीड़ितों की संख्या 80 प्रतिशत है। अतः इन जिलों में भीलवाड़ा माडल अपना कर इस छिपे हुए दुश्मन पर काबू पाने की तरकीब खोजी जानी चाहिए लेकिन यह भी गंभीर समस्या है कि शेष 20 प्रतिशत संक्रमित लोग भारत के 120 अन्य जिलों में हैं जिससे इस संक्रमण के फैलने का खतरा बना हुआ है। परम आवश्यक है कि सर्वप्रथम राष्ट्रीय वातावरण अनुकूल बने। देश ने कोरोना महासंकट के जंगल में एक लम्बा सफर तय किया है लेकिन अभी मंजिल नजदीक नहीं है। उसकी मानसिकता घायल है तथा जिस विश्वास के धरातल पर उसकी सोच ठहरी हुई थी, वह भी जमात की अमानवीय एवं खौफनाक हरकत से हिली है।

इन अंधेरों के बीच उजाले भी बहुत है और वे उजाले ही इस महासंकट से मुक्ति की राह बन रहे हैं। ऐसे ही उजालों में दिल्ली में सात लाख से अधिक लोगों के बीच रोज मुफ्त का भोजन वितरित करना भी हमारे समाज की स्तब्ध करने वाली वास्तविकता है। इसके अलावा तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज तथा दूसरी जगहों में लोगों का जमावड़ा और उनमें विदेशी प्रतिनिधियों का शामिल होना लॉकडाउन के प्रति अवज्ञा और कोरोना के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में गड़बड़ी के बारे में बताता है। इस चुनौती भरे समय में भी नरेंद्र मोदी के संभावनाभरे कदम, नवाचार भरे और कल्पनाशील दिमाग से निकले सटीक विचारों-उपक्रमों से कोरोना मुक्ति की संभावनाएं प्रबल हो रही है। संघर्ष में जुटे लोगों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए अपनी-अपनी बालकनियों से ताली और थाली बजाने एवं एक दीपक जलाने का आइडिया विलक्षण रहा है, जिनमें जाति, धर्म, सम्प्रदाय, नस्ल, भाषा और क्षेत्र की बाड़ेबंदी को तोड़कर लोग अपने परिवार के साथ उत्साह में भरकर इसमें शामिल हुए।

यह पढ़ें..दुनिया में अलग-थलग पड़ेगा झूठा चीन! अमेरिका के बाद ब्रिटेन में उठी ये बड़ी मांग

दिलचस्प यह है कि ब्रिटेन और अमेरिका सहित अनेक देशों में लोगों ने इसका अनुकरण करते हुए ताली बजाकर स्वास्थ्यकर्मियों का हौसला बढ़ाया। इस तरह मोदी ने लोगों को जोड़ने के लिए एक साधारण किंतु बेहद प्रभावशाली उपक्रम के जरिये न केवल देश बल्कि दुनिया के लोगों को जोड़ा, उनके विश्वास में जान फंूकी है। भले मोदी के राजनीतिक विरोधियों ने इस प्रेरणास्पद कदम का विरोध करते हुए इसे जिस तरह सुर्खियां बटोरने की प्रधानमंत्री की आदत का एक और उदाहरण बताया, वह उनकी संकीर्ण एवं स्वार्थी अमानवीय सोच का परिचायक ही है। जबकि घरों के कैद लोगों के जीवन में उत्साह का संचार करने एवं रोशनी में विश्वास को प्रोत्साहित करने वाला मोदी शैली का यह संदेश कारगर एवं अद्भुत है।

suman

suman

Next Story