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'बन्तुल द ग्रेट' के नारायण देबनाथ को मिली राष्ट्रीय पहचान
नारायण देबनाथ के नाम दुनिया में सबसे लंबी लगातार चलने वाली कॉमिक स्ट्रिप चलाने का रेकॉर्ड है। देबनाथ की कॉमिक्स का एक किरदार है ‘बन्तुल’।
लखनऊ। इस साल के पद्म पुरस्कारों की सूची में बहुत सारे ऐसे नाम हैं जिन्हेंं शायद बहुत से लोग नहीं जानते होंगे। लेकिन इनमें से हर एक ही अपनी अलग कहानी है, अपना संघर्ष है, अपनी परेशानियां हैं। मगर एक ने भी कभी यह नहीं सोचा कि हारकर बैठ जाएं। कोई सामाजिक कुरीतियों से लड़ा, कोई बने-बनाए सिस्टूम से, कोई कला के क्षेत्र में आगे बढ़ा तो किसी ने शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग तरह की क्रांति शुरू की। इनको अब राष्ट्री य स्त्र पर उनके काम के लिए पहचान मिली है।
नारायण देबनाथ को मिला पद्म पुरस्कार
इन विभूतियों में शामिल हैं नारायण देबनाथ। उनके नाम दुनिया में सबसे लंबी यानी सबसे लम्बे समय तक लगातार चलने वाली कॉमिक स्ट्रिप चलाने का रेकॉर्ड है। देबनाथ की कॉमिक्स का एक किरदार है ‘बन्तुल’ जो एक सुपर हीरो बालक है। देबनाथ भी उसी सुपर हीरो की तरह हैं जिनकी रचनाओं को बंगाल की पीढ़ियों ने पढ़ा है और आज भी जिनको पढ़ा जा रहा है।
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देबनाथ के नाम सबसे लंबी कॉमिक स्ट्रिप चलाने का रेकॉर्ड
पश्चिम बंगाल के 97 वर्षीय नारायण देबनाथ पिछले 70 से भी ज्यादा सालों से बंगाली कॉमिक स्ट्रिप्सब बनाते आ रहे हैं। वह पहले और इकलौते भारतीय कॉमिक हैं जिन्हेंष डीलिट मिला है। वह आज भी कॉमिक्सढ़ बनाने की कोशिश करते हैं। उनकी कॉमिक्स का एक किरदार ‘बन्तुल’ बंगाल के घर घर में जाना पहचाना नाम है।
देबनाथ की कॉमिक्स स्ट्रिप में ‘बन्तुल द ग्रेट’, नान्ते फांटे और हांडा भोंडा बहुत लोकप्रिय हैं। उनकी हांडा भोंडा सीरीज दुनिया की सबसे साले तक चलने वाली कॉमिक सीरीज है। ये सीरीज उन्होंने 1962 में शुरू की थी।
‘बन्तुल द ग्रेट’ से मिली से पहचान
देबनाथ की एनी कृतियों में ‘रबि छोबि’ है जिसका प्रकाशन रविन्द्र नाथ टैगोर की जन्म शताब्दी के अवसर पर किया गया था। मई 1961 में ये साप्ताहिक पत्रिका ‘आनंदमेला’ में प्रकाशित हुई थी। देबनाथ की कॉमिक्स की 50 पेज की एक किताब बाद में वाराणसी के सर्वोदय साहित्य प्रकाशन ने छापी थी। देबनाथ की कॉमिक्स पर आधारित एनिमेटेड टीवी सीरिज भी बन चुकी हैं।
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देबनाथ का जन्म हावड़ा में हुआ था और वो यहीं पाले बढ़े हैं। आज भी देबनाथ हावड़ा में ही रहते हैं। देबनाथ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंडियन आर्ट कॉलेज में फाइन आर्ट्स की पढ़ाई की थी लेकिन पढाई के अंतिम वर्ष में कालेज छोड़ दिया था। उन्होंने उस वक्त कई विज्ञापन एजेंसियों के लिए लोगो और सिनेमा की स्लाइड्स बनाने का काम किया।
नीलमणि लाल
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