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कृषि उपज व्यापार एक्ट क्या है, आखिर क्यों फैल रहा किसान आंदोलन
आंदोलन में आम आदमी के जुड़ने से अब यह जरूरी हो गया है कि एक बार फिर देखा जाए कि सरकार के दावों के विपरीत किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) 2020 का नया कानून क्यों किसानों के लिए घातक है।
रामकृष्ण वाजपेयी
नये कृषि कानूनों के विरोध में लंबे समय से आंदोलन कर रहे किसानों का चक्का जाम के रूप में अहिंसक आंदोलन पूरी तरह से सफल रहा है। और इसे देश के अन्य भागों में भी व्यापक सफलता मिली है। इस चक्का जाम के समर्थन में न सिर्फ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान बल्कि देश के अन्य राज्यों के किसान भी आए।
किसानों के चक्का जाम को जनता का समर्थन
जाम के दौरान जब किसानों ने क्षमा मांगते हुए अपनी पीड़ा बयां की तो जनता का समर्थन भी मिला लोगों ने उनका विरोध नहीं किया। जिससे किसी प्रकार का टकराव नहीं हुआ। बावजूद इस सफलता के आंदोलन से जुड़े किसान नेताओं ने अद्भुत धैर्य का परिचय देते हुए सरकार को नये कानूनों को वापस लेने के लिए दो अक्टूबर तक का समय दिया है रहे हैं। तब तक किसान नेता देश भर में दौरे करके समर्थन जुटाएं। बैठकें करेंगे।
किसानों के लिए घटना कृषि कानून ,जानें क्यों
आंदोलन में आम आदमी के जुड़ने से अब यह जरूरी हो गया है कि एक बार फिर देखा जाए कि सरकार के दावों के विपरीत किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) 2020 का नया कानून क्यों किसानों के लिए घातक है।
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किसानों को इस कानून से सबसे बड़ी आशंका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के खत्म होने की है क्योंकि इस कानून में इस बात की कोई व्याख्या नहीं है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी के नीचे के भाव पर नहीं होगी। नया कानून कहता है कि किसान अब मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं।
किसानों का डर- MSP खत्म करने के लिए लाए कृषि कानून
बता दें कि किसानों को डर है कि नया कानून एमएसपी को खत्म करने के लिए लाया गया है और किसान अब बड़े कारोबारियों के शोषण का शिकार हो जाएंगे। नए कानून के जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है कि वे बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं। किसान समझ रहा है कि सरकार द्वारा दिये जा रहे नए बाजार पर कोई पाबंदियां नहीं हैं और न ही कोई निगरानी।
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सरकार को अब बाजार में कारोबारियों के लेनदेन, कीमत और खरीद की मात्रा की जानकारी भी नहीं होगी। हमारा किसान इतना शिक्षित भी नहीं है कि वह शोषण से खुद को बचा सके। इसी लिए किसानों का कहना है कि जब सरकार पूरे देश में खरीद-बिक्री का नियम ला रही है, तो निजी क्षेत्र में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य अनिवार्य क्यों नहीं कर रही है।
कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) एक्ट के क्या है मुख्य प्रावधान
किसानों को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना जहां किसान एवं व्यापारी कृषि उपज मंडी के बाहर भी अन्य माध्यम से भी उत्पादों का सरलतापूर्वक व्यापार कर सकें।
यह विधेयक राज्यों की अधिसूचित मंडियों के अतिरिक्त राज्य के भीतर एवं बाहर देश के किसी भी स्थान पर किसानों को अपनी उपज निर्बाध रूप से बेचने के लिए अवसर एवं व्यवस्थाएं प्रदान करेगा।
माल ढुलाई का खर्च वहन नहीं करना होगा
किसानों को अपने उत्पाद के लिए कोई उपकर नहीं देना होगा और उन्हें माल ढुलाई का खर्च भी वहन नहीं करना होगा।
विधेयक किसानों को ई-ट्रेडिंग मंच उपलब्ध कराएगा जिससे इलेक्ट्रोनिक माध्यम से निर्बाध व्यापार सुनिश्चित किया जा सके।
मंडियों के अतिरिक्त व्यापार क्षेत्र में फॉर्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, प्रसंस्करण यूनिटों पर भी व्यापार की स्वतंत्रता होगी।
किसान खरीददार से सीधे जुड़ सकेंगे जिससे बिचौलियों को मिलने वाले लाभ के बजाए किसानों को उनके उत्पाद की पूरी कीमत मिल सके।
क्या कहती है सरकार
एमसपी पर पहले की तरह खरीद जारी रहेगी। किसान अपनी उपज एमएसपी पर बेच सकेंगे।
मंडिया समाप्त नहीं होंगी, वहां पूर्ववत व्यापार होता रहेगा। इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प प्राप्त होगा।मंडियों में ई-नाम ट्रेडिंग व्यवस्था भी जारी रहेगी।
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इलेक्ट्रानिक मंचों पर कृषि उत्पादों का व्यापार बढ़ेगा। इससे पारदर्शिता आएगी और समय की बचत होगी।
किसानों का कहना है कि अगर सरकार के मन में कोई खोट नहीं है और वह बहाने से एमएसपी के तहत खरीद प्रक्रिया को बंद नहीं करना चाहती है तो फिर वह एमएसपी से कम कीमत पर उपज की बिक्री नहीं होगी यह प्रावधान करने के लिए तैयार क्यों नहीं है।