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बीमार बुजुर्गों के लिए खुशखबरी: अब इस गंभीर बीमारी का मिला इलाज
शोधकर्ताओं को मरीजों की डोपामाइंड तंत्रिकाओं में दो आसमान्य लक्षण मिले। पहला, अल्फा सिनूक्लेन प्रोटीन भारी मात्रा में मौजूद था। दूसर, इनमें लाइजोसोम भी काम नहीं कर रहा था। यह दोनों पर्किंसन के लक्षण हैं।
योगेश मिश्र
लखनऊ: आप अभी तक सिर्फ यह जानते होंगे कि पार्किंसन बीमारी सिर्फ बुजुर्गों को होती है। लेकिन नया अध्ययन यह बताता है कि पार्किंसन की शुरुआत जन्म से पहले हो सकती है। हकीकत यह है कि जो लोग 50 साल की उम्र से पहले इस बीमारी की चपेट में आते हैं उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं जन्म के समय ही खराब रहती हैं। अभी तक पार्किंसन की कोई दवा नहीं बन सकी है।
पर्किंसन के मरीजों की पहचान जल्द हो सकेगा
कैलिफोर्निया के सेडार्स सिनाई सेंटर का अध्ययन यह बताता है कि बहुत से लोग मस्तिष्क की खराब कोशिकाओं के साथ पैदा होते हैं पर दशकों तक इसकी पहचान नहीं हो पाती। इस शोध के बाद यह उम्मीद जगी है कि पर्किंसन के मरीजों की पहचान जल्द हो सकेगा और उन्हें इलाज के जरिये बचाया जा सकेगा। वैज्ञानिक मिशेल तगलिएटी का मानना है कि कम उम्र में पर्किंसन की समस्या होने पर व्यक्ति जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव पर लाचार हो जाता है।
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शोधकर्ताओं को मरीजों की डोपामाइंड तंत्रिकाओं में दो आसमान्य लक्षण मिले। पहला, अल्फा सिनूक्लेन प्रोटीन भारी मात्रा में मौजूद था। दूसर, इनमें लाइजोसोम भी काम नहीं कर रहा था। यह दोनों पर्किंसन के लक्षण हैं। लाइजोसोम के ठीक से काम नहीं करने की वजह से अल्फा सिनूक्लेन प्रोटीन बढ़ता है। लाइजोसोम कोशिकाओं के लिए कूड़ेदान की तरह होता है। जहां वे अपने प्रोटीन छोड़ देते हैं।
क्लाइब का कहना है कि कम उम्र में पर्किंसन के मरीज बने लोगों की कोशिकाओं से विशेष स्टेम सेल तैयार किये गए हैं। जिसे इन्डयूस्ड प्लूरीपोटेड स्टेम सेल का नाम दिया गया है। जो इंसान की शरीर की हर तरह की कोशिकाएं तैयार कर सकता है।
इन्डयूस्ड प्लूरीपोटेड स्टेम सेल की मदद से हर मरीज को डोपामाइन तंत्रिका तैयार की गईं और फिर उसका विशलेषण किया गया। पार्किंसन में मस्तिष्क में डोपामाइन बनाने वाली तंत्रिकाएं कमजोर पड़ जाती हैं या खत्म हो जाती हैं। डोपामाइन का काम मांसपेशियों की गतिविधियों के बीच समन्वय बैठाना है।
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