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Gudi Padwa 2023 : जानिए गुड़ी पड़वा का महत्त्व, पूजा विधि और इससे जुडी पौराणिक कथा, क्यों ये पर्व है इतना खास

Gudi Padwa 2023:आज हम आपको इस त्यौहार की विशेषता, पूजा विधि और पौराणिक कथा के सम्बन्ध में जानकारी देंगे। आइये जानते हैं गुड़ी पड़वा से जुडी कुछ खास बातें।

Shweta Shrivastava
Published on: 22 March 2023 11:40 AM IST (Updated on: 22 March 2023 11:36 AM IST)
Gudi Padwa 2023 : जानिए गुड़ी पड़वा का महत्त्व, पूजा विधि और इससे जुडी पौराणिक कथा, क्यों ये पर्व है इतना खास
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Gudi Padwa 2023 (Image Credit-Social Media)

Gudi Padwa 2023 : चैत्र नवरात्रि का पहला दिन गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। ये पर्व लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसे महाराष्ट्र में काफी धूम धाम से मनाया जाता है साथ ही इससे ही नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस साल ये पर्व 22 मार्च 2023 को मनाया जायेगा। आज हम आपको इस त्यौहार की विशेषता, पूजा विधि और पौराणिक कथा के सम्बन्ध में जानकारी देंगे। आइये जानते हैं गुड़ी पड़वा से जुडी कुछ खास बातें।

उगादी, गुड़ी पड़वा का महत्व और पूजा विधि

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा का महत्व आंध्र प्रदेश, तेलंगना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में काफी ज्यादा महत्व माना गया है। गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका, इसीलिए लोग अपने घरों के बाहर ध्वज लगते हैं। मना जाता है कि इससे घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है।

बहुप्रतीक्षित क्षेत्रीय नववर्ष उत्सव 22 मार्च को है। उगादी, तेलुगु नव वर्ष, और गुड़ी पड़वा, महाराष्ट्रीयन नव वर्ष, 22 मार्च, 2023 को पड़ता है, जो बुधवार है। जबकि उगादी आम तौर पर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के लोगों द्वारा मनाया जाता है, गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र और गोवा में लोगों द्वारा मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 60 साल का एक चक्र 'संवत्सर' इसी दिन से शुरू होता है। ये बताता है कि गुड़ी पड़वा लूनी-सौर कैलेंडर के अनुसार मराठी नव वर्ष है जो वर्ष को महीनों और दिनों में विभाजित करने के लिए चंद्रमा की स्थिति और सूर्य की स्थिति पर विचार करता है।

गुड़ी पड़वा, जिसे संवत्सर पड़वो भी कहा जाता है, इस साल 22 मार्च को पड़ रहा है। त्योहार हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने के पहले दिन पड़ता है, जिसे हिंदू नव वर्ष के रूप में भी चिह्नित किया जाता है। गुड़ी पड़वा चैत्र नवरात्रि शुरू होने के दिन पड़ता है और महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र के लोगों द्वारा मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा दो शब्दों से उत्पन्न हुआ है - गुड़ी का अर्थ है भगवान ब्रह्मा का ध्वज या प्रतीक, और पड़वा का अर्थ है चंद्रमा के चरण का पहला दिन। माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, स्नान करते हैं और अपने घरों के मुख्य द्वार को सुंदर रंगोली डिजाइनों से सजाते हैं।

हिंदू धर्म के अनुसार, गुड़ी पड़वा का त्योहार काफी विशेष स्थान रखता है। कहा जाता है कि गुड़ी यानि ध्वज को घर के बाहर फहराने से घर की सभी नकारात्मकता दूर हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है। साथ ही जीवन में भाग्य और समृद्धि आती है। इतना ही नहीं इसी दिन से बसंत की भी शुरुआत मानी जाती है। इसे फसल उत्सव के रूप में भी लोग काफी हर्ष और उल्लास के साथ मानते हैं। साथ ही ड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। इसी दिन संसार में सूर्य देव पहली बार उदय हुए थे।

गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा

इस त्यौहार से जुडी एक कथा काफी प्रचलित है। जिसके अनुसार त्रेता युग में दक्षिण भारत में राजा बलि का शासन हुआ करता था। उस समय भगवान राम माता सीता को मुक्त करवाने के लिए लंका की ओर जा रहे थे। तभी वो बालि के भाई सुग्रीव से मिलते हैं। ऐसे में सुग्रीव ने अपने भाई के आतंक और कुशासन के बारे में उन्हें बताया और उनसे मदद मांगी। इसके बाद भगवान श्री राम ने सुग्रीव की मदद की और उसके भाई बालि का वध कर दिया। इसके बाद सुग्रीव और प्रजा को बालि के आतंक से मुक्ति मिली। मान्यता के अनुसार जब बालि का भगवान श्री राम ने वध किया था, उस दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा थी। इसीलिए हर साल इसे नव वर्ष यानी गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। और विजय पताका को फहराया जाता है।

नोट : इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। न्यूज़ट्रैक इनकी पुष्टि नहीं करता है।



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Shweta Shrivastava

Shweta Shrivastava

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