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मोमोज का इतिहास! जानें कब-कैसे और कहां से हुई इसकी शुरुआत?

चीन में मोमोज को डिमसिम या डंपलिंग के नाम से जाना जाता है। यहां पर इसकी फिलिंग बीफ या पॉर्क के मीट से की जाती है। वहीं कुछ इलाकों में हरी सब्जियों से भी इसकी फिलिंग की जाती है।

Shivakant Shukla
Published on: 17 Feb 2020 6:51 PM IST
मोमोज का इतिहास! जानें कब-कैसे और कहां से हुई इसकी शुरुआत?
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नई दिल्ली: चाइनीज फूड के शौकीन लोग मोमोज को तो जानते ही होंगे, लेकिन शायद ही कोई होगा जो इसे नजदीकी से जानता होगा कि आखिर ये कहां ये आया और सबसे पहले इसे किसने बनाया, आज हमको आपको इसके इतिहास के बारे में बताएंगे।

मोमोज की कहानी

दरअसल, मोमोज अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति के खानपान का एक अहम हिस्सा हैं। मोमो वैसे तो तिब्बत और नेपाल की एक बेहद ही मशहूर पारंपरिक डिश है लेकिन अब यह पूरे देश में फेमस हो गई है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि नॉर्थ ईस्ट के शिलॉन्ग में सबसे स्वादिष्ट मोमो मिलते हैं।

आपको बता दें कि मोमो को एक चीनी समुदाय शिलॉन्ग लेकर आया था। वह लोग चीन से आकर यहां बस गए थे। फिर इसी समुदाय ने चाइनीज फूड के ट्रेंड की शुरुआत की जिसमें खासतौर पर मोमो को शामिल किया गया था।

मोमो का अर्थ?

मोमो एक चाइनीज शब्द है, जिसका मतलब है भाप में पकी हुई रोटी। दरअसल मोमोज अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति के खानपान का एक अहम हिस्सा हैं। यह जगह तिब्बत बॉर्डर से बिल्कुल लगी हुई है। इस जगह पर मोमोज को पोर्क और सरसों की पत्तियों व अन्य हरी सब्जियों की फिलिंग से तैयार किया जाता है।

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यहां मिलता है सबसे टेस्टी मोमो

सबसे ज्यादा टेस्टी मोमो शिलॉन्ग में मिलते हैं। यहां पर मोमोज के अंदर मीट की फीलिंग भरी जाती है। तैयार होने के बाद इसे तीखी मिर्च के साथ सर्व किया जाता है। हालांकि आज देशभर की हर गली-शहर में आपको मोमज आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे। आप इसे घर पर भी बड़ी ही आसानी से बना सकते हैं। बस इसे तीखी चटनी के साथ सर्व किए जाने की परंपरा रही है। आइए आपको बताते हैं मोमोज के इतिहास के बारे में।

तिब्बत में मोमो

मोमोज को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तिब्बत और नेपाल के आसपास के इलाकों में इसे मोमो कहते हैं। वहीं चीन में इसे डिमसम और डंपलिंग्स कहते हैं। सबसे पहले मोमोज तिब्बत में बनें और वहां काफी मशहूर हो गए। वहां के लोग इसके दीवाने हैं। वहां मोमो को लोग अपनी डाइट में जरूर शामिल करते हैं। वहां के लोग इसे बड़े चाव से इसलिए खाते हैं क्योंकि यह जल्दी बन जाता है और तला हुआ भी नहीं होता। भाप में बनने और ज्यादा मसालेदार न होने के कारण इसे हेल्दी माना जाता है। कई लोगों का मानना है कि सबसे ज्यादा टेस्टी मोमो शिलॉन्ग में मिलते हैं। यहां पर मोमोज के अंदर मीट की फीलिंग भरी जाती है। वहीं सिक्किम में बीफ और पॉर्क की फीलिंग की जाती है।

अरुणाचल प्रदेश में मोमो

अरुणाचल प्रदेश से लगे कुछ खास जनजातियों के लोगों का यह काफी प्रिय भोजन है। वह इसे बड़े चाव से खाते हैं। इसकी फिलिंग में वह सरसों की पत्तियां और अन्य सब्जियां भरते हैं। लोग इसे सेहत के लिए बहुत अच्छा मानते हैं।

मोमोज कैसे पहुंचे सिक्किम

सिक्किम में मोमोज भूटिया, लेपचा और नेपाली समुदायों की वजह से पहुंचें जिनके डाइट का हिस्सा मोमो हुआ करते थे। सिक्किम में जो मोमोज बनाए जाते हैं वह तिब्बती मोमोज जैसे ही होते हैं। 1960 में भारी संख्या में तिब्बतियों ने अपने देश से पलायन किया था जिसकी वजह से उनका कुजीन भारत के सिक्किम, मेघालय, पश्चिम बंगाल और कलिमपोंग के पहाड़ी शहरों तक पहुंचा और फिर वहां से इसने दिल्ली तक का सफर तय किया। यहां मोमो भाप से व तलकर दोनों तरह से बनाए जाते हैं। सिक्किम में मोमोज भूटिया, लेपचा और नेपाली समुदायों की वजह से पहुंचें जिनके डाइट का हिस्सा मोमो हुआ करते थे।

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चीन में मोमो

चीन में मोमोज को डिमसिम या डंपलिंग के नाम से जाना जाता है। यहां पर इसकी फिलिंग बीफ या पॉर्क के मीट से की जाती है। वहीं कुछ इलाकों में हरी सब्जियों से भी इसकी फिलिंग की जाती है।

मोमोज के नए रूप

आज के समय में मोमोज को कई नए रूप दे दिए गए हैं जो लोगों को पसंद आ रहे हैं। मोमोज को तल कर और भून कर खाने के अलावा अब तंदूरी मोमोज भी बनाए जा रहे हैं। यह खाने में काफी लजीज लगते हैं। आज कल तो चॉकलेट मोमोज भी बाजार में उपलब्ध है।



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Shivakant Shukla

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