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2019 में तय होनी है शिवपाल सिंह यादव की ताकत

चुनावी माहौल में कभी यूपी के अपराजेय योद्धा मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले शिवपाल सिंह यादव खुद को बेगाना महसूस कर रहे हैं।

Shivakant Shukla
Published on: 20 March 2019 10:20 AM GMT
2019 में तय होनी है शिवपाल सिंह यादव की ताकत
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शिवपाल सिंह यादव

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव तेजी पकड़ती जा रही है। सभी दल खुद को कील कांटे से लैस करने में जुटे हैं। साइकिल+हाथी मिलकर साथी हो चुके हैं। पंजा अपना आकार बढ़ाने के लिए तमाम छोटे बड़े दलों को समेटने में लगा है। हर छोटे दल को बड़े दल की छाया की तलाश है। ऐसे माहौल में कभी यूपी के अपराजेय योद्धा मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले शिवपाल सिंह यादव खुद को बेगाना महसूस कर रहे हैं।

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भतीजे अखिलेश यादव से रार के बाद सपा से बाहर निकलकर उन्होंने बड़े जतन से अपना आशियाना खड़ा किया। गुरु और भाई को भीड़ ताकत का अहसास कराया। उम्मीद थी चुनाव तक कुनबा बड़ा करके असली सपा होने का अहसास करा देंगे लेकिन 48 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी से बाहर निकलने वाले वह अकेले विधायक रहे। कोई भी विधायक उनके साथ नहीं आया। ये शायद पहला झटका था।

आरोप लगे कि शिवपाल भाजपा से मिलकर समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं, फिर शिवपाल ने मोदी विरोध का बिगुल फूंका, नेताजी कभी पास तो कभी दूर आते जाते रहे। लेकिन सपा-बसपा में गठबंधन के बाद भी शिवपाल को उम्मीद थी कि कांग्रेस से मिलकर वह सूबे में अपनी ताकत का अहसास करा देंगे। मोदी विरोध पर सूबे में त्रिकोणीय मुकाबले का खाका बन जाएगा लेकिन आज शिवपाल बिलकुल अकेले हो गए हैं।

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दरअसल जब कांग्रेस का सपा-बसपा के साथ गठबंधन नहीं हुआ तो यह शिवपाल के लिए फायदेमंद था उन्हें लगा कि कांग्रेस का उनके साथ गठबंधन जरूर हो जाएगा लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस ने दगा दे दिया। ये झटका शिवपाल सिंह यादव के लिए बहुत बड़ा था। कहा तो यह भी जा रहा है कि मुलायम का वोट बैंक मुस्लिम और यादव यानी माई नेताजी के साथ आज भी है। और इसीलिए कांग्रेस एक कदम आगे बढ़ा कर पीछे हटी है।

याद करें कि जब अखिलेश और शिवपाल की रार चरम पर थी तब शिवपाल पर आरोप लगे थे कि इस खेल के पीछे भाजपा का हाथ है। बाद में मायावती का बंगला जब शिवपाल को दिया गया तो शिवपाल पर लेबल लग गया। कई नेता शिवपाल के भाजपा से रिश्तों पर बयान भी देते रहे।

कांग्रेस खुद असमंजस और ऊहापोह की शिकार है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यूपी में प्रियंका और सिंधिया पर भरोसा जताया था। प्रियंका तो आकर जुट गई हैं लेकिन सिंधिया अभी तक सीन से गायब हैं।

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नाराज प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं और कांग्रेस के लोगों को झूठा करार दे रहे हैं। यह सच है कि कांग्रेस के फेर में एक महीने तक इंतजार कर इटावा का यह पहलवान गच्चा खा गया। कांग्रेस के लोग रोज बैठक करते रहे और अब बीच में ही सूची जारी कर दी। शिवपाल का कोई नाम ही नहीं ले रहा। हालांकि सूची शिवपाल सिंह यादव ने भी जारी कर दी है। शिवपाल सिंह यादव खुद फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। और उनका मुकाबला सपा नेता रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव से होने जा रहा है। अब चाचा भतीजे का यह मुकाबला इस लिहाज से रोचक हो गया है कि मुलायम से अलग शिवपाल का यादव वोट पर कितना दखल है।

स्थिति यह है कि शिवपाल सिंह यादव के पास कोई बड़ा नेता नहीं है। जिसे साथ लेकर वह लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा कर पाएं। पूर्वांचल के सियासी समीकरणों को कितना प्रभावित कर पाते हैं यह वक्त बताएगा। सपा-बसपा महागठबंधन की ताकत के आगे शिवपाल यादव का मोर्चा कहां टिकेगा यह भी आने वाला समय तय करेगा।

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अब जबकि चुनाव सिर पर हैं। अपने बल पर शिवपाल यादव सपा-बसपा के लिए या फिर मोदी के लिए कितनी चुनौती बन पाते हैं यह देखना है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए बूथ स्तर के कार्यकर्ता सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिवपाल यादव के पास ऐसी कार्यकर्ताओं की फौज नहीं है। शिवपाल के प्रत्याशी वोट काटेंगे तो किसके।

सपा के युवा वोटरों के लिए सबसे बड़े नेता अखिलेश यादव हैं। बुजुर्ग कार्यकर्ता आज भी नेताजी के साथ है। ऐसे में सियासी समीकरण बदलना शिवपाल यादव के लिए बेहद कठिन चुनौती है।

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