×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

चंदामामा दूर के ! आयेंगे लौट के ?

बचपन की यादें देर तक बनी रहती हैं | धुँधली कदाचित हो जाती हैं, पर अमिट रहती हैं| कमोबेश मानसिक ताजगी पर यह निर्भर करता है| उम्र की ढलान के एहसास पर भी|

Newstrack
Published on: 3 Oct 2020 12:55 PM IST
चंदामामा दूर के ! आयेंगे लौट के ?
X

के. विक्रम राव

लखनऊ: बचपन की यादें देर तक बनी रहती हैं | धुँधली कदाचित हो जाती हैं, पर अमिट रहती हैं| कमोबेश मानसिक ताजगी पर यह निर्भर करता है| उम्र की ढलान के एहसास पर भी|

ये भी पढ़ें:धर्मेंद्र का ये जिगरी दोस्त: सनी देयोल को है नफरत, जानें क्या है वजह…

इसीलिए मशहूर बालपत्रिका ‘चन्दामामा’ (चेन्नई) के ‘विक्रम-बेताल’ वाली चित्र-श्रृंखला का आज भी वृद्धजन यदाकदा स्मरण कर लेते हैं| कंधे पर बेताल का शव टाँगे, तलवार लहराता राजा मूक श्रोता सा श्मशान से चलता जाता है| फिर प्रश्नोत्तर से मौन भंग करते ही, शव वापस पेड़ पर!

विगत सात दशकों से यह श्रृंखला पढ़ी जाती रही| करोड़ों पाठक शैशव से जीवन के चौथे चरण तक पहुंच गये, मुझे मिलाकर|

इसी ‘विक्रम-बेताल’ के चित्रकार केसी शिवशंकरन उर्फ़ ‘शंकर’ का चेन्नई में गत सप्ताह 94-वर्ष की आयु में निधन हो गया| कम से कम छः पीढ़ियों का यह प्रिय पत्रकार चला गया|

शंकर की जीवनगाथा एक इतिहास है | म्युनिसिपल स्कूल में पढ़े| कॉलेज शिक्षा का आकर्षण कभी नहीं रहा | हस्तलिपि सुन्दर थी अतः माता-पिता ने आर्ट स्कूल में भर्ती कराया| महान चित्रकार डीपी राय चौधरी से सीखा| शुरू में उतार चढ़ाव आया | बिल्ली को चित्रित कर रहे थे, चूहे का चित्र बन गया |

हाईस्कूल में उनके सहपाठी थे बी. नागी रेड्डी, जो बाद में बड़े फिल्म निर्माता बने| उन्होंने ‘चंदामामा’ पत्रिका प्रकाशित करायी| तेरह भाषाओँ में छपती थी| शंकर का साथ लिया| फिर बुलंदियां छूते गए, उस सीमा तक, जिसके आगे छोर नहीं दिखता था|

यूं हिंदी में ढेरों बाल पत्रिकाएं छपीं| नंदन, पराग, चम्पक, चाचा चौधरी आदि | स्वतंत्रता-पूर्व (1947) में हिन्दी बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना हुई, वह यही कि मद्रास से 'चन्दामामा' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। अहिन्दी भाषी क्षेत्र से अपना प्रकाशन हिंदी में प्रारम्भ करने वाला 'चन्दामामा' आज तक निरन्तर प्रकाशित होता चला आया । यह पत्रिका समूचे देश में अत्यन्त लोकप्रिय रही। प्रसार संख्या दस लाख पार गयी थी|

vikar-betal vikar-betal (social media)

फिर आया बी. नागी रेड्डी के फिल्म स्टूडियो का श्रमिक हड़ताल| प्रकाशन स्थगित हुआ| फिर बंद ही हो गया|

मगर आज भी पुराने पाठकजन याद करते हैं तो चटखारे लेकर| मानों बालसखा था, बिछड़ गया| स्मृतियाँ बिखेरकर| घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सी छाई, दुर्दिन में आंसू बनकर बरसी और चली गयी|

स्व. शंकरन ने भारत की बाल पत्रकारिता को उस ऊंचाई तक पहुंचाया जो खुद एक कीर्तिमान था|

चंदामामा पढ़कर मैं बड़ा हुआ हूँ| मेरे साथ कई लाख लोग भी|

सत्तर साल बीते| लगता है कल ही का तो किस्सा है| हमलोग मद्रास (आज चेन्नई) के रायपेटा (173, लाइडस रोड) में लन्दन चले गए एक अंग्रेज व्यापारी के बंगले में किराए पर रहे| पिताजी 'इंडियन रिपब्लिक' अंग्रेजी दैनिक के संपादक थे| इस दैनिक के संचालक मंडल में आंध्र केसरी टी. प्रकाशम् (मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री), डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या (कांग्रेस अध्यक्ष, जिन्हें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने हराया था) आदि थे|

स्वतंत्रता सेनानियों का अपने घर पर आवभगत करना मेरे लिए नए भारत के भावी इतिहास का स्पर्श करने जैसा था|

माइलापोर के अमरीकी स्कूल ''चिल्ड्रेन्स अकादमी'' में भरती हुआ| वहाँ चंदामामा के प्रकाशक बी. नागी रेड्डी की आत्मजा जया और नीलम संजीव रेड्डी के पुत्र मेरे सहपाठी थे| स्वतंत्रता-सेनानी (नेशनल हेराल्ड, लखनऊ, के सम्पादक श्री के. रामा राव) का पुत्र होने के नाते मुझे भी उस छात्र समूह में आत्मीयता और तादात्म्य मिलता था|

हमारी मातृभाषा तेलुगु में छपा 'चंदामामा' हमारे बस्ते की खास शोभा होता था| ताजा अंक की कहानियां स्कूली चर्चा का हिस्सा होती थीं| हम में से कई लोग अपने को राजा विक्रम समझने लगे थे| कम से कम नाम से तो मैं था ही| बस बेताल की कमी थी|

चेन्नई छूटा| पिताजी पटना के बिड़ला दैनिक 'सर्चलाइट' (अब हिंदुस्तान टाइम्स) के संपादक बने| मगर पटना में भी चंदामामा का साथ तो बना रहा| विशेष जुड़ाव इसलिए भी था कि इसमें महाभारत, रामायण, प्राचीन इतिहास, पंचतंत्र के किस्से आदि सुगम शैली में पढने को मिलते थे| संस्कार मिलते थे|

एक तरह से बाल-मस्तिष्क को पकने में आवश्यक और माकूल वातावरण भी मिला| भटकाव तो यौवन फूटने पर होना स्वाभविक है| मगर जिस देश का बचपन चंदामामा के पन्नों पर पला हो, उसे फिर संजोने में मेहनत कम ही लगती है|

ये भी पढ़ें:नार्को टेस्ट कराने से इनकार: पीड़ित परिवार को भरोसा नहीं, CBI जांच पर भी शक

चढ़ते बुढ़ापे में भी मुझे चंदामामा आज भी वैसे ही दिखता है, जैसे पहले था आसमान पर ! कोई उम्र का असर नहीं| पुए खुद थाली में खाते रहे, हमें प्याली में देते रहे| मगर न प्याली फूटी, न हम रूठे| बस किस्से का स्रोत चंदामामा, समय के बादलों तले कहीं लुप्त हो गया|

इसीलिए, सलाम चंदामामा ! साथ छूटने का गम होने के बावजूद|

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story