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धीरे-धीरे फैलाव: कोविड -19 और भारतीय शहरों के लिए सबक

नोवेल कोरोनावायरस (कोविड 19) मामलों की संख्या बढ़ रही हैं। इसने 100 से अधिक देशों को प्रभावित किया है। इस महामारी को समाप्त करने की योजना बनाने में शहरी आयामों को समझना महत्वपूर्ण है। इससे रोकथाम संबंधी और चिकित्सा संबंधी उपायों को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

SK Gautam
Published on: 17 March 2020 6:06 PM IST
धीरे-धीरे फैलाव: कोविड -19 और भारतीय शहरों के लिए सबक
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अमिताभ कांत और ऋचा रश्मि

नई दिल्ली: भारत में दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले शहर हैं, जहां प्रतिदिन अत्याधिक भीड़ वाली मेट्रो और बसों में यात्रा करते समय लोगों की एक-दूसरे से दूरी बेहद कम होती है। नोवेल कोरोनावायरस (कोविड 19) मामलों की संख्या बढ़ रही हैं। इसने 100 से अधिक देशों को प्रभावित किया है। इस महामारी को समाप्त करने की योजना बनाने में शहरी आयामों को समझना महत्वपूर्ण है। इससे रोकथाम संबंधी और चिकित्सा संबंधी उपायों को सुनिश्चित किया जा सकेगा। अपने सुदृढ़ नगर प्रबंधन के साथ भारत इस महामारी से लड़ने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

स्पैनिश महामारी से पूरी दुनिया में 5 करोड़ लोगों की हुई थी मौत

इतिहास महामारी और नगर योजना के बीच के संबंध को रेखांकित करता है। 19वीं शताब्दी के मध्य में कई आधुनिक नगर प्रणालियों में जल और स्वच्छता आधारित अवसंरचना का विकास हुआ ताकि मलेरिया और हैजा जैसी महामारियों से मुकाबला किया जा सकें। इसी प्रकार 20वीं शताब्दी में स्पैनिश फ्लू से मुकाबला करने के लिए नगर आधारित प्रशासनिक संरचना और संस्थागत रूपरेखा का निर्माण हुआ। स्पैनिश महामारी से पूरी दुनिया में 5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।

आज की दुनिया में एक स्पष्ट अंतर यह है कि चिकित्सा विज्ञान का अत्यधिक विकास हुआ है और कोविड 19 का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए डिजिटल अवसंरचना का उपयोग किया जा सकता है। आज दुनिया की आबादी 4 गुनी बढ़ गयी है। लगभग आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। वैश्विककरण के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

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उभरते हुए संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए कार्यकुशल और नवाचार तरीकों को विकसित करने में नगर -सरकारें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके लिए भौतिक और सामाजिक अवसंरचना (जल और स्वच्छता, अस्पताल एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं) की सुविधा सुनिश्चित की जाती है तथा डिजिटल नेटवर्क और आर्थिक अवसंरचना के माध्यम से पूरे पारितंत्र को सुरक्षित बनाया जाता है।

जल और स्वच्छता प्राधिकरणों को नगर में स्वच्छ प्रणाली सुनिश्चित करनी चाहिए

वायरस को फैलने से रोकने के लिए पर्यावरण स्वच्छता बहुत जरूरी है। सभी सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों की नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिए। इन शौचालयों में हैंडवॉश और हैंडटिशू उपलब्ध कराया जाना चाहिए। पार्क, बाजार और संस्थान जैसे सार्वजनिक स्थलों में कचरा प्रबंधन और सुरक्षित निपटान प्रणाली होनी चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन और अमृत जैसी योजनाओं ने कई भारतीय शहरों को ऐसी स्थिति से सफलतापूर्वक निपटने के लिए सक्षम बनाया है।

डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और जिला प्रशासन द्वारा नियमित रूप से देखरेख करने की आवश्यकता है।

केरल राज्य कोरोनावायरस के मामलों को सफलतापूर्वक पता लगाने और उनसे निपटने में अग्रणी है। यह संदेश वाले मामलों को पृथक करने तथा पुष्टि वाले मामलों के उपचार के लिए अपने डिजिटल स्वास्थ्य सुविधों का कारगर उपयोग कर रहा है। गहन अभियान के एक हिस्से के रूप में, पथानामथिट्टा जिला प्रशासन ने उन्मुक्त आवाजाही को प्रतिबंधित करने के लिए जिले में उन लोगों का पता लगाने के लिए जीपीएस समर्थित एक प्रणाली तैयार की है। नीति आयोग की रिपोर्ट ‘हेल्थ सिस्टम फॉर ए न्यू इंडिया (2019)’ इस बात का समर्थन करती है कि नैदानिक, प्रशासनिक और वित्तीय रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में डिजिटल पहल महत्वपूर्ण है।

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तैयारियों को बढ़ाने, मामलों में कमी लाने और पहचाने गए मामलों के प्रसार को रोकने में डेटा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

स्थानीय अधिकारियों को प्रभावित क्षेत्रों के स्थानिक तथा लौकिक वितरण एवं प्रभावित क्षेत्रों की भौगोलिक संभावना की नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए। इसके बाद, एक व्यापक और मजबूत प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित करने के लिए इस तरह के डेटा का विश्लेषण किया जा सकता है।

चूंकि भारत के सौ स्मार्ट शहरों में स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, डेटा संग्रह और प्रबंधन का लाभ लेते हुए इसे क्षेत्रीय स्तर पर बढ़ाया जा सकता है। भौगोलिक सूचना प्रणाली का आधार मुख्य रूप से 1854 में जॉन स्नो के काम से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने पानी के स्रोतों जैसे अतिरिक्त परतों को जोड़ते हुए भौतिक मानचित्रों और इन्फोग्राफिक्स का विलय करके लंदन में हैजा मामलों के प्रसार का मानचित्रण किया था। इससे यह पता चला कि हैजा के वायरस पहले की तरह हवा के बजाय जल स्रोतों से फैल रहे थे। ऐसे विवरणों से सुधारात्मक कार्रवाइयों में काफी तेजी आ सकती है।

गैर-फार्मास्युटिकल हस्तक्षेप (एनपीआई) से संक्रामक रोगों को रोकने में मदद मिलती है

1918 में स्पेनिश इन्फ्लूएंजा महामारी के मामले में, अमेरिका के उन शहरों में कम मौतें हुई थीं, जिसने लोगों के बीच संक्रामक संपर्क को कम करने के प्रयासों को शीघ्रतापूर्वक लागू किया था। जबकि उन शहरों में अधिक मौतें हुई थीं, जहां रोग प्रतिरोधक नीतियों को अपनाने में देरी हुई थी। फिलाडेल्फिया ने सार्वजनिक समारोहों की अनुमति दी, जबकि सेंट लुइस ने सभी सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगाने का विकल्प चुना। नतीजतन, शहरों के बीच प्रति दिन मृत्यु दर में काफी अंतर था। सेंट लुइस में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर औसत साप्ताहिक मृत्यु दर 31 थी , जबकि फिलाडेल्फिया में यह प्रति एक लाख व्यक्तियों पर 257 थी। इस प्रकार, घर से काम करने, स्कूल बंद करने, सार्वजनिक समारोहों को प्रतिबंधित करने जैसे एनपीआई से बड़े पैमाने पर सामूहिक संक्रमण के जोखिम कम होते हैं और लोगों के बीच सामाजिक संपर्क कम हो जाता है और बीमारी को फैलने से रोकने में मदद मिलती है। इससे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर बोझ में कमी आती है तथा कीमती संसाधनों की बचत होती है।

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समुदाय के साथ व्यापक संवाद सुनिश्चित करना बचाव और प्रतिरक्षा की दिशा में पहला ठोस कदम सिद्ध हो सकता है

कुछ एनपीआई कार्रवाइयों से लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। विशेष रूप से उच्च जोखिम और कमजोर जनसंख्या के लिए इसके नकारात्मक मनो-सामाजिक एवं आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं। सार्वजनिक संदेशों में भय, कलंक तथा भेदभाव का समाधान किया जाना चाहिए। बच्चों में कोरोनावायरस के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में “किड्स, वायु और कोरोना : कौन लड़ाई जीतता है?” नामक एक कॉमिक बुक का विमोचन किया है। इस तरह की शुरूआती चेतावनी प्रणालियों का उपयोग करके जागरूक और सतर्क नागरिकों की एक समूह तैयार किया जा सकता है।

गंभीर मामलों के इलाज में स्वासस्य्या देखभाल व्यकवस्थास को युक्तिसंगत बनाने और सुविधाओं का अस्थामयी विस्तावर करने की जरूरत पड़ सकती है।

कोविड 19 जैसी सांस संबंधी बीमारी की स्थिति में उन लोगों के इलाज में विशेष अस्प़ताल उपचार की जरूरत है जिनमें वायु संचार के रूप में इसके लक्षण पाये जाते हैं और इसके बाद अतिरिक्ता संक्रमण से निपटने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत है। कोविड 19 संक्रमण के पु‍ष्टप मामलों के इलाज के लिए क्वाबरेंटाइन केंद्रों और आइसोलेशन सुविधाओं से युक्त् अस्थाायी अस्पकतालों की आवश्यएकता होगी। इस उद्देश्यं के लिए इस्तेेमाल की जा सकने वाली इमारतों और भवनों का पता लगाया जाना चाहिए और तैयारियों की रणनीति के एक हिस्सेु के रूप में इनका आवश्याक कीटाणुशोधन का कार्य पहले ही कर लिया जाना चाहिए।

आवश्याक दवाओं और मास्क, मेडिकल टेक्स टाइल, हैंडवॉश और अल्कोहल युक्त कीटाणुशोधक (सैनिटाइजर) जैसे एहतियाती वस्तुओं की आपूर्ति को बनाए रखना और उनका नियमन करना आवश्यक है।

सरकार ने 13 मार्च को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत हैंड सैनिटाइजर और मास्कि को 30 जून, 2020 तक ‘आवश्यक वस्तुतएं’ घोषित कर दिया है। सैनिटाइजर और मास्कम को लेकर मांग-आपूर्ति की बेमेल स्थिति, जमाखोरी और लोगों से अत्यधिक मूल्य लेने की स्थिति से बचने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया था। प्रत्येरक जिले को इन वस्तुओं के निर्माण को बनाए रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि औषधालय इस तरह के गलत काम न करें।

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सार्वजनिक परिवहन एजेंसियों को नियमित साफ-सफाई के काम में तेजी लानी चाहिए और स्वयं एवं दूसरों को बचाने के सर्वोत्तम उपायों के बारे में अपने कर्मचारियों एवं यात्रियों को लगातार बताते रहना चाहिए।

दिल्ली मेट्रो और लोकल ट्रेनों को परिचालन और गैर-परिचालन अवधि के दौरान संक्रमण मुक्त् और कीटाणुरहित कर साफ किया जा रहा है। इसके साथ ही स्टेदशनों पर भी सफाई की जा रही है। इस तरह की सफाई गैर-मोटर चालित वाहनों, बसों, रेलवे, जहाजों आदि जैसी अन्य। सेवाओं में भी की जानी चाहिए। कोविड 19 के यात्रा संबंधी और इससे भिन्नन संदिग्ध मामलों की पहचान कर उसे नामित स्वारस्य्ें सुविधा केन्द्रों में तुरंत आइसोलेशन में रखा जाना चाहिए और ऐसे मामलों में इनके सभी संपर्कों की सूची बनाई जानी चाहिए।

रोजगार की इस अनिश्चित स्थिति में लोगों का विशेष ख्या‍ल रखा जाना चाहिए

अंतत: शहरी अर्थव्य वस्थां को इससे काफी नुकसान होगा और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि शहरों का जीडीपी में महत्वयपूर्ण योगदान है। स्थाफनीय अर्थव्यसवस्थार पर इसके प्रभाव को कम से कम करना जरूरी है और जिला प्रशासन इसे हासिल करने में महत्वापूर्ण भूमिका निभा सकता है। रोजगार की इस अनिश्चित स्थिति में लोगों का विशेष ख्या‍ल रखा जाना चाहिए। एहतियाती उपाए जब पूरी तरह से लागू किए जाएंगे तो व्या पार को पहले की तरह सामान्य बनाए रखने में इससे मदद मिलेगी और समय से पहले की गई कोशिशों से इसके दीर्घकालिक प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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अच्छी तरह प्रबंधित और नियोजित शहरी व्यहवस्थाो इस महामारी के खतरे को कम कर सकती है। भारत की शहरी व्यंवस्था को एक अधिक संगठित और औपचारिक विकास के लिए बदलाव का समर्थन करना होगा। सक्रिय नियोजन और कार्यान्व यन के जरिए इस महामारी की सबसे खराब स्थिति को प्रभावी तरीके से कम किया जा सकता है।

(अमिताभ कांत, नीति आयोग के सीईओ हैं और ऋचा रश्मि नीति आयोग की युवा अधिकारी हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)



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