×

परीक्षाओं से आगे सोचने के लिए अधिक औपचारिक माहौल बनाया जाए

एक औसत शिक्षक इस धारणा पर काम करता है कि उसका काम पाठ्यपुस्तक से पढ़ाना और बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना है: वह यह नहीं महसूस करते कि बच्चों की जिज्ञासा को विकसित करना उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा है।

Ashiki
Published on: 2 March 2021 5:00 PM GMT
परीक्षाओं से आगे सोचने के लिए अधिक औपचारिक माहौल बनाया जाए
X
परीक्षाओं से आगे सोचने के लिए अधिक औपचारिक माहौल बनाया जाए

श्रीमती अनिता करवल

एक शहरी स्कूल, जिसका मैं दौरा कर रही थी, उसके एक अति उत्साही प्रमुखने मुझे बताया कि उन्‍हें इस तथ्य पर बहुत गर्व हुआ कि स्कूल लगने के दौरान उनके स्कूल में हमेशा सन्‍नाटा रहता था। मैं भौंचक थी। ऐसी स्कूली संस्कृति पर गर्व करना जो बच्चे के जीवन की खुशियां ले ले, एक ऐसी संस्कृति जो मानती है कि खेलते समय बच्चों की प्रफुल्लित कर देने वाली गपशप, मिलकर काम करना, अपने विचारों को व्यक्त करना, साथियों की मदद करना, अनुशासनहीनता से कम नहीं है, इस बात को दर्शाता है कि कुछ स्कूल वास्तविक शिक्षा के मार्ग से भटक गए हैं।

मॉन्टेसरी को भारत लाने में मदद

गिजूभाई बधेका, जिन्हें शिक्षाविद् के रूप में बेहतर जाना जाता है, जिन्होंने मॉन्टेसरी को भारत लाने में मदद की, उन्‍होंने अपनी शानदार पुस्तक - दिव्य स्वप्न में लिखा - “हमारे देश में जो स्कूल संस्कृति है, वह मांग करती है किबच्चों की दिलचस्‍पी की हजारों चीजों- कीड़े-मकौड़ों से लेकर सितारों तक को, कक्षा में अध्ययन के लिए अप्रासंगिक माना जाता है।

ये भी पढ़ें: शाहजहांपुर: लापता तीन नाबालिग छात्राएं ऋषिकेश से बरामद, इसलिए हो गई थीं गायब

एक औसत शिक्षक इस धारणा पर काम करता है कि उसका काम पाठ्यपुस्तक से पढ़ाना और बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना है: वह यह नहीं महसूस करते कि बच्चों की जिज्ञासा को विकसित करना उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा है। न ही स्कूल ऐसी स्थितियाँ प्रदान करता है जिसमें शिक्षक जिम्मेदारी को पूरा कर सके। ”यह पुस्तक 1930 के दशक में लिखी गई थी, लेकिन आज भी यह प्रासंगिक है!

स्कूली शिक्षा का लक्ष्य

अगर स्कूली शिक्षा का लक्ष्य वास्तव में बच्चों को परीक्षाओं के लिए तैयार करना था, तो देश में 96.86 लाख शिक्षकों और 15.07 लाख स्कूलों में 26.43 करोड़ छात्रों को दाखिला देकर इन्‍हें चलाने की आवश्यकता नहीं थी। हम सभी को यह करना था कि कठोर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) और विशिष्ट कुंजीजैसी पाठ्यपुस्तकों को तैयार करके उन्हें घरों में बच्चों को सौंप देना चाहिए था, जिनकी मदद से वह अपनी स्‍मरण शक्ति की जांच करने के लिए निर्धारित तारीखों परपरीक्षा केन्‍द्रों में उपस्थित हो जाते। परीक्षाएं निश्चित रूप से स्कूलों में अध्‍ययन के अनुभव का अंतिम लक्ष्य नहीं हैं। वे समग्र विकास और विकास के रास्ते पर एक बच्चे द्वारा पार किए जाने वाले कई मील के पत्थर में से एक हैं।

साइलो का उन्मूलन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में दो बहुत ही दिलचस्प वाक्यांशों का उपयोग किया गया है: "कोई वास्‍तविक विभाजन नहीं" और "साइलो का उन्मूलन"। बेशक, इन शर्तों का उपयोग अध्‍ययन के क्षेत्रों के संदर्भ में किया जाता है, हालांकि, वे शिक्षा के लगभग सभी क्षेत्रों में अस्‍पष्‍ट हैं। जैसा कि देश ने नई शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन पर दृढ़ संकल्‍प के साथ काम शुरू किया है, इन मुहावरों और उनके निहितार्थों को समझना अनिवार्य है। यहाँ एक उदाहरण है।

नई शिक्षा नीति 2020

नई शिक्षा नीति 2020 को निर्देश और सभी स्कूलों में उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए सामान्य मानकों की उपलब्धि - अर्थात्, राज्य मानक समायोजन प्राधिकरण (एसएसएसए) की स्थापना के माध्यम से सार्वजनिक और निजी स्कूलों के बीच कोई साइलो नहीं। इसी तरह इसेप्री स्‍कूल से उच्‍च शिक्षा तक अध्‍ययन में समय से साथ बदलाव सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है –अलग से वास्‍तविकविभाजन नहीं।

हालांकि, "वास्‍तविक विभाजन" को हटाने का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव कक्षा के स्तर पर है। भाषा की बाधा को पहले दूर करने की जरूरत है, बच्‍चे की नींव पड़ने विशेषकर शुरूआती वर्षों में गणना और पढ़ाई जाने वाली अन्‍य सभी भाषाओं की समझ पैदा करने के माध्‍यम के रूप में मातृभाषा / बच्चे द्वारा बोली जाने वाली भाषा का परिचय कराया जा सकता है। शिक्षा विज्ञान को अब बच्चे से अलग नहीं किया जा सकता है और उसे चौक और बोर्ड के साइलो तक सीमित रखा जा सकता है। शिक्षा विज्ञान को कार्य-आधारित और अनुभव पर आधारित होना चाहिए, जहां कहानी-सुनाने, कला और शिल्प, खेल, रंगमंच आदि के माध्यम से ज्ञान संबंधी विकास होता है।

कक्षाओं में बैठने की विशिष्टयोजना

कक्षाओं में बैठने की विशिष्टयोजना (सभी बच्‍चों की नजर सामने बोर्ड पर) के साइलो को तोड़ने की आवश्यकता है। कक्षाएं आनंददायक होनी चाहिए और कला, खेल, गेम्‍स और अन्य आकर्षक गतिविधियों से जुड़ी होनी चाहिए। बैठने की योजना लचीली होनी चाहिए - कभी-कभी गोलाकार में, लेकिन अक्सर समूहों में।केवल निर्धारित पाठ्यपुस्तकों के आधार पर अध्‍ययन एक कठिन विभाजन है, और इसमें खिलौनों से लेकर कठपुतलियों, पत्रिकाओं, कार्यपत्रकों, कॉमिक और कहानी की पुस्‍तकों, प्रकृति की सैर, स्‍थानीय शिल्‍पी के पास जाने, क्‍लास आर्केस्‍ट्रा, कोरियोग्राफी, रोल प्‍लेज जैसी विविधता लाने की आवश्यकता है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कोई भी व्‍यक्ति परीक्षाओं में ही जिम्‍मेदारी को स्‍वीकार करता है। यहीं पर नई शिक्षा नीति 2020 एक विशाल साइलो को तोड़ने का प्रयास करती है - अर्थात, यह जांच करने की प्रक्रिया कि पाठ्यपुस्तकों में क्‍या लिखा है। यह अच्छी तरह से शोध किया गया और स्‍पष्‍ट है कि एक सक्षम वातावरण में एक बच्चा लगातार सीख रहा है - सहयोग करना, गंभीर रूप से सोचना, समस्याओं को हल करना, रचनात्मक होना, संवाद करना, मीडिया साक्षर होना आदि।

ये भी पढ़ें:UP के छात्रों के लिए खुशखबरी, योगी सरकार देगी बड़ा तोहफा, जानकर झूम उठेंगे

बच्‍चे की जानकारी केवल पाठ्यपुस्तक के ज्ञान तक सीमित नहीं

वर्ष के अंत में परीक्षा बच्चे की पूरी क्षमता या विशिष्टता को प्रतिबिंबित नहीं करती है क्‍योंकि बच्‍चे की जानकारी केवल पाठ्यपुस्तक के ज्ञान तक सीमित नहीं है। इसलिए, हमें परीक्षाओं से आगे देखने की जरूरत है, और मूल्यांकन को केवल अध्‍ययन के साधन के रूप में देखने की आवश्‍यकता है। इसके पीछे नई शिक्षा नीतिकी ताकत के साथ, जिस तरह से हम आकलन करते हैं वह परिवर्तन के शीर्ष पर है।

कम सामग्री लेकिन अधिक योग्यता

हम कम आकलन फिर भी अधिक - कम पाठ्यक्रम लेकिन अधिक गहराई वाले; कम सामग्री लेकिन अधिक योग्यता, कम पाठ्यपुस्तकों लेकिन अधिक विविध अध्‍ययन, कम समानताएं लेकिन अधिक विशिष्टता, कम तनाव लेकिन अधिक खुशी; कम शिक्षक लेकिन अधिक आत्म और सहकर्मी मूल्यांकन की योजना बनाते हैं। और अंत में, हालांकि यह बिना कहे चला जाता है: कम साइलो लेकिन अधिक कनेक्शन!

(छात्र, अभिभावक और शिक्षक प्रधानमंत्री के साथ परीक्षा पे चर्चा के एक और रोमांचक संस्करण में भाग लेने के लिए आमंत्रित हैं https://innovateindia.mygov.in/ppc-2021/)

लेखिका स्‍कूल शिक्षा और साक्षरता, शिक्षा मंत्रालय में सचिव हैं।

Ashiki

Ashiki

Next Story