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खत्म न हो जाए ‘अर्थशास्त्र’

मैसूर की एक बिल्डिंग में एक अंधेरे कमरे में एक प्राचीन पांडुलिपि बंद है। इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। एयर कंडीशनर या डीह्यूमिडिफायर विहीन इस कमरे में रखी इस रचना की हालत समय के साथ खराब होती जा रही है।

Roshni Khan
Published on: 19 Nov 2019 4:15 PM IST
खत्म न हो जाए ‘अर्थशास्त्र’
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बंगलुरु: मैसूर की एक बिल्डिंग में एक अंधेरे कमरे में एक प्राचीन पांडुलिपि बंद है। इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। एयर कंडीशनर या डीह्यूमिडिफायर विहीन इस कमरे में रखी इस रचना की हालत समय के साथ खराब होती जा रही है।

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ताड़ के पत्ते का यह दस्तावेज कौटिल्य के अर्थशास्त्र की मूल पांडुलिपि है

शहर के ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (ओआरआई) में रखे गए ताड़ के पत्ते का यह दस्तावेज कौटिल्य के अर्थशास्त्र की मूल पांडुलिपि है। संस्थान की समिति के सदस्य एस.ए. कृष्णा ने कहा, ‘यह सिर्फ एक गद्देदार बक्से में कपड़े में लपेट कर रखा जाता है। जब आप इसे देखते हैं तो आप गर्व महसूस करते हैं। लेकिन बहुत दुख भी होता है कि इस अमूल्य धरोहर की बेकद्री की जा रही है।’

मौर्य साम्राज्य के समय में संस्कृत में लिखा ‘अर्थशास्त्र’ दरअसल शासन, सैन्य रणनीति, राजनीति, अर्थशास्त्र, न्याय और शासकों के कर्तव्यों पर सबसे पुरानी पुस्तकों में से एक है।

विद्वानों का कहना है कि इसकी रचना ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के आसपास हुई थी। इसके लेखक, कौटिल्य-जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है- मौर्य शासकों में से पहले चंद्रगुप्त के प्रधान मंत्री थे। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद यह दस्तावेज खो गया था।

संस्कृत के विद्वान और साहित्यकार रुद्रपत्न शमशास्त्री ने 1905 में संस्थान में पड़े ताड़ के पत्तों के दस्तावेजों के बीच मूल अर्थशास्त्र की खोज की। इस संस्थान की स्थापना मैसूर के वोडेयार राजाओं ने 1891 में की थी। यह संस्थान 1916 से मैसूर विश्वविद्यालय का हिस्सा है। और यहां लगभग 70,000 दुर्लभ ताड़-पत्ता पांडुलिपियां रखी हुई हैं।

शमशास्त्री ने ताड़ के ताजा पत्तों पर ‘अर्थशास्त्र’ को दोबारा लिखा और इसे 1909 में प्रकाशित किया। उन्होंने 1915 में अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया।

दस्तावेज की पुन: खोज तक, ब्रिटिश राज का मानना था कि शासन और सैन्य प्रशासन पर भारत के विचार व सिद्धांत यूनानियों से लिये गए थे। ‘अर्थशास्त्र’ सोलहवीं सदी के विद्वान निकोलो मैकियावेली की राजनीतिक फिलासफी पर की गई रचना ‘द प्रिंस’ से भी कहीं प्राचीन ग्रंथ है।

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ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (ओआरआई) को वर्षों से धन और देखभाल के कमी स जूझ रहा है। 2012 में अमेरिकी सरकार ने ओआरआई की इमारत के रखरखाव के लिए 50 हजार डालर का अनुदान देने की घोषणा की थी। ये पैसा इस इमारत की बरसात में टपकती छत की मरम्मत के लिए दिया गया था। बाद में फोर्ड फाउंडेशन ने डीह्यïूमिडिफायर (नमी सोखने का यंत्र) और एयर-कंडीशनर दान किए, लेकिन ये खराब हो गए।

एयर कंडीशनिंग, डीह्यूमिडिफायर्स और सिट्रोनेला तेल के बगैर वो मूल ताड़ के पत्ते जिन पर ‘अर्थशास्त्र’ को लिखा गया, वो खत्म हो जाएंगे। ताड़ के पत्तों की हिफाजत के लिए उन पर नियमित रूप से सिट्रोनेला तेल की कोटिंग की जाती है।

1996 और 1998 में ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में शार्ट सर्किट से दो बार आग लग चुकी है। ये तो अच्छी किस्तम है कि आग से ‘अर्थशास्त्र’ और लगभग 70,000 अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज और पांडुलिपियां बच गईं।

यह कहना है शोधकर्ताओं

शोधकर्ताओं का कहना है कि ओआरआई को पांडुलिपियों का प्रबंधन करने, अधिक विशेषज्ञों को नियुक्त करने और इमारत को बनाए रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं मिलता है।

ओआरआई के निदेशक डॉ. शिवराजप्पा कहते हैं कि, ‘अर्थशास्त्री के मूल दस्तावेज को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत काम किया जाना है। हमने साढ़े तीन करोड़ रुपए के अनुदान के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है।’ संस्थान को प्रति वर्ष लगभग 5,000 आगंतुक मिलते हैं, जिसमें दुनिया भर के विद्वान और छात्र शामिल हैं।

मैसूर विश्वविद्यालय में इतिहास के वरिष्ठ संकाय सदस्य और कर्नाटक पुरातत्व विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि ‘अर्थशास्त्र’ को डिजिटल किया गया है और इसे किसी भी विद्वान या छात्र द्वारा देखा जा सकता है, लेकिन मूल बेहद नाजुक है।

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ताड़ के पत्तों में अन्य सामग्रियों की तुलना में लंबा जीवन होता है, और अतीत के पांडुलिपि विज्ञानी जानते थे कि जीवनकाल कैसे बढ़ाया जाए। लेकिन वो भी उन्हें संरक्षित करने के लिए कुछ दशकों में इसकी कॉपी कर लेते थे।

ताड़ की पत्तियां उपचार के साथ या बिना उपचार के 1,000 से अधिक वर्षों तक जीवित रह सकती हैं, लेकिन सिट्रोनेला तेल के साथ एयर-कंडीशनर, डिह्यïूमिडिफायर और कोटिंग की जरूरत होती है।

Roshni Khan

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