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ग्लोबल वार्मिंग से तबाही से मात्र आठ दशक दूर या इतने करीब

भारतीय किंवदंतियों में भी राम के द्वारा धनुष से समुद्र पर बने राम सेतु को तोड़ने की बात रही हो या कृष्ण के अवसान के साथ द्वारिका के समुद्र में समा जाने की बात कहीं न कहीं ये सब बातें एक जल प्रलय का ही संकेत करती हैं जिसमें समुद्र का जलस्तर बढ़ गया।

SK Gautam
Published on: 7 Jun 2023 3:34 AM IST (Updated on: 7 Jun 2023 11:33 AM IST)
ग्लोबल वार्मिंग से तबाही से मात्र आठ दशक दूर या इतने करीब
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पंडित रामकृष्ण वाजपेयी

ग्लोबल वार्मिंग के चलते या ये कहिये जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने की जो रफ्तार है उसे अलार्मिंग कहा जा सकता है। यूं तो समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और जो पिछली जल प्रलय आई थी उसके बाद से सतत बढ़ ही रहा है।

मिथ या इतिहास

भारतीय किंवदंतियों में भी राम के द्वारा धनुष से समुद्र पर बने राम सेतु को तोड़ने की बात रही हो या कृष्ण के अवसान के साथ द्वारिका के समुद्र में समा जाने की बात कहीं न कहीं ये सब बातें एक जल प्रलय का ही संकेत करती हैं जिसमें समुद्र का जलस्तर बढ़ गया।

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समुद्र में समा चुके राम सेतु के बारे में आज भी यह कहा जाता है कि कहीं पर राम सेतु तीन फीट नीचे है तो कहीं पर तीस फीट यानी समुद्र का जलस्तर तीन फुट से लेकर तीस फुट तक बढ़ा। एक दशक पहले तक समुद्र का जलस्तर बढ़ने की जो रफ्तार थी अब वह दुगनी हो गई है।

करोड़ों लोगों पर खतरा

संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आज 2019 से लेकर 2099 तक यानी अगले अस्सी साल में समुद्र का जलस्तर तीन फीट बढ़ जाएगा। इसके चलते तटवर्ती इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक समुद्र का गर्म होता पानी अप्रत्याशित रूप से आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ को पिघलाएगा जिसके जलते सदी के अंत समुद्र का जलस्तर तीन फीट तक बढ़ जाएगा। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से छोटे द्वीपों और तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ो लोगों अपना स्थान छोड़ना पड़ेगा।

समुद्र का स्तर उठने के खतरे

पानी के लगातार गर्म होते जाने से समुद्र के भीतर का पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इससे गर्म पानी की तमाम भित्तीय संरचनाओं के मर जाने का खतरा हो गया है। 1993 के बाद से समुद्र का जलस्तर दोगुनी तेजी से गर्म हो रहा है।

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हम आपको बताने जा रहे हैं पर्यावरण परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशन्स अंतरसरकारी पैनल की नई रिपोर्ट के कुछ चिंताजनक नतीजों के बारे में। इस आकलन को 36 देशों के सौ से अधिक लेखकों ने दुनिया के समुद्रों और इस पृथ्वी के बर्फ से जमे हुए हिस्सों का अध्ययन कर जारी किया है।

तीन फुट ऊपर उठ जाएगा समुद्र

इस आकलन में कहा गया है कि अगर पृथ्वी का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक बढ़ता है तो समुद्र का जलस्तर बढ़ने लगेगा। लेखकों ने यह पाया है कि सन 2100 तक समुद्र का जलस्तर तीन फीट ऊपर हो जाएगा।

पृथ्वी का तापमान एक डिग्री सेल्सियस पहले ही बढ़ चुका है और इससे समुद्र का जलस्तर छह इंच बढ़ चुका है। लेकिन जलस्तर अभी बढ़ रहा है।

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करोड़ों लोगों पर पड़ेगा असर

अध्ययनकर्ताओं का आकलन है कि सदी के अंत तक समुद्रों के ऊपर उठने से निचले तटवर्ती इलाकों के करीब 68 करोड़ लोगों व छोटे द्वीपों पर रहने वाले 6.5 करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है।

दोहरा संकट

आकलन है कि समुद्रों का जलस्तर बढ़ने का प्राथमिक कारण अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड की बर्फ का पिघलना है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड आर्कटिक प्रोग्राम की प्रबंध निदेशक मारग्रेट विलियम्स का कहना है कि यह सदी असाधारण होगी और सबसे बड़ा संदेश समुद्र के जलस्तर से विस्थापित होने वालों के लिए घर की व्यवस्था होगा।

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सागरों का गर्म होना और बर्फ का पिघलना दोहरा संकट है। लेकिन अगर सरकारें पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट के लक्ष्य को हासिल कर लेती हैं और धरती को दो डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म नहीं होने देती हैं तो सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर 1.9 फीट पर रुक सकता है।

बर्फ पिघलने की रफ्तार खतरा

अप्रैल में किये गए एक अध्ययन के अनुसार ग्रीनलैंड की बर्फ चार दशक पहले के मुकाबले छह गुना तेजी से पिघल रही है। अध्ययन के मुताबिक यह बर्फ 286 बिलियन टन प्रति वर्ष की रफ्तार से पिघल रही है। जबकि दो दशक पहले यही पिघलने की रफ्तार औसतन 50 बिलियन टन प्रति वर्ष थी। 1972 के बाद समुद्र के जलस्तर में आधे इंच की वद्धि हुई लेकिन पिछले आठ वर्षों में इसकी आधी वृद्धि हुई है।

अंटार्कटिका में बर्फ की चादर 40 साल पहले के मुकाबले छह गुना अधिक तेजी से पिघल रही है। पहले यहां 40 बिलियन टन बर्फ हर साल पिघल रही है। लेकिन पिछले एक दशक में यह 252 बिलियन टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही है। इस ग्लेशियर पर बर्फ पिघलने की रफ्तार पिछले छह साल में दो गुनी हो गई है।

गायब हो जाएंगे ग्लेशियर

खासकर पश्चिमी अंटार्कटिका में ग्लेशियर के खंड प्रति वर्ष 2,625 फीट तक पीछे हट रहे हैं, जिससे दुनिया भर में समुद्र स्तर में चार फीसदी का योगदान होता है। ग्लेशियर के पिघलने की यदि यही रफ्तार रही तो एक स्तर के बाद इसे रोकना नामुमकिन हो जाएगा और इसके बाद ग्लेशियर 150 साल की अवधि में अपने सभी बर्फ खो सकते हैं। इसके अलावा पिघलने की एक श्रृंखला शुरू हो सकती है जो अनुमानित समुद्र के स्तर को तीन फीट से ऊपर ले जाकर अतिरिक्त 8 फीट तक बढ़ा सकती है।

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पड़ेगा व्यापक असर

इसके अतिरिक्त, आईपीसीसी की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के बाहर के अन्य ग्लेशियर भी गायब हो रहे हैं। अमेरिका, यूरोप और एंडीज पहाड़ों के छोटे ग्लेशियरों को उनके वर्तमान बर्फ और बर्फ के 80 फीसद से अधिक 2100 तक खोने का अनुमान है। इससे मनोरंजक गतिविधियों, पर्यटन और सांस्कृतिक संपत्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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