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अब बहुरेंगे अवन्तिकापुरी धाम के दिन, जानें क्या है पौराणिक मान्यता

अवन्तिकापुरी धाम के विकास के लिए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत दर्शन योजना के तहत 2 करोड़ 46 लाख रूपये का धन प्रस्तावित है। इसके तहत कपडा चेंजिंगरूम, टिनशेड, रैनबसेरा, शौचालय, डस्टबीन, सोलर लाइट, पथ वे लैंड स्कैपिंग का कार्य होना है। कार्य शुरू हुए ढाई वर्ष हो चुके हैं, परन्तु कार्य की गति काफी धीमी है। मंदिर मार्ग पर आरसीसी का काम होने से अन्य कार्य बाधित है।

SK Gautam
Published on: 6 Jun 2023 3:51 PM GMT
अब बहुरेंगे अवन्तिकापुरी धाम के दिन, जानें क्या है पौराणिक मान्यता
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संदीप अस्थाना

आजमगढ़: अब अवन्तिकापुरी धाम के दिन बहुरेंगे। लम्बे समय से यहां के लोग पौराणिक महत्व के इस धाम को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करनेे की मांग कर रहे थे। जनभावनाओं एवं आमजन की श्रद्धा व इस धाम सेे उनके जुड़ाव को देखते हुए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने यहां के विकास का बीड़ा उठाया है। यह अलग बात है कि कार्यदायी संस्था आमजन के साथ-साथ सरकार की मंषा पर पानी फेरने का काम कर रही है।

अवन्तिकापुरी धाम के विकास के लिए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत दर्शन योजना के तहत 2 करोड़ 46 लाख रूपये का धन प्रस्तावित है। इसके तहत कपडा चेंजिंगरूम, टिनशेड, रैनबसेरा, शौचालय, डस्टबीन, सोलर लाइट, पथ वे लैंड स्कैपिंग का कार्य होना है। कार्य शुरू हुए ढाई वर्ष हो चुके हैं, परन्तु कार्य की गति काफी धीमी है। मंदिर मार्ग पर आरसीसी का काम होने से अन्य कार्य बाधित है।

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पर्यटन विभाग यहां के विकास पर खर्च कर रहा 2 करोड़ 46 लाख रूपये

टीसीआईएल के चीफ इंजीनियर रोहित कुमार ने मौके का निरीक्षण किया। कार्य की गति धीमी होने के कारण कार्यदायी संस्था को फटकार लगाई। उन्होंने बताया कि 15 नवम्बर तक कार्य पूरे होने हैं, अगर कार्य पूर्ण नही हुए तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। साथ ही धन वापस लौट जायेगा।

फिलहाल उन्होंने शीघ्र कार्य पूर्ण करने के निर्देश दिये है। दूसरी ओर कार्य की धीमी गति देख अवन्तिका सेवा समिति के सदस्य मुखराम गुप्ता, महेन्द्र, अरूण आदि ने कहा है कि काफी दिन बाद शासन द्वारा इस पवित्र धाम की तरफ ध्यान दिया गया है।

काम समय से पूरा नहीं हुआ और धन वापस लौट गया तो यहां के लोगों के सारे संघर्श पर पानी फिर जायेगा। समिति के लोग इस बाबत डीएम से भी मिले और समय से कार्य पूर्ण कराये जाने की मांग किये। डीएम ने भी आष्वासन दिया कि बजट वापस नहीं लौटने दिया जायेगा तथा कार्य समय से पूर्ण भी होगा।

कहां है अवन्तिकापुरी धाम

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर अति प्राचीन कस्बा रानी की सराय के पास यह पवित्र धाम स्थित है। यहां पर 84 बीघे का विशाल सरोवर भी है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा एवं चैत्र राम नवमी के दिन यहां विशाल नहान मेला लगता है, जिसमेें देश केे कोने-कोने से श्रद्धालु शिरकत करते हैं।

मान्यता यह है कि जीवन में एक बार इस धाम पर स्नान करनेे से सारे पाप धुल जाते हैैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां स्नान के बाद लोग धाम पर स्थित अति प्राचीन मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं।

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अवन्तिकापुरी धाम की क्या है पौराणिक मान्यता

अवन्तिकापुरी धाम पौराणिक दृश्टि से काफी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि महान धर्नुधर अर्जुन के पौत्र व वीर अभिमन्यु के पुत्र महाराज परीक्षित एक पराक्रमी व परोपकारी राजा थे। उन्हीं के शासनकाल में धरती पर कलियुग का आगमन हुआ। कलियुग ने महाराज परीक्षित से अपने रहने के लिए जगह मांगी।

महाराज परीक्षित ने काफी सोच-विचार के बाद मदिरालय, वैष्यालय व स्वर्ण पर रहने के लिए उसे जगह दे दी। राजा परीक्षित का मुकुट स्वर्ण का था। ऐसे में स्वर्ण पर जगह मिलते ही कलियुग तत्काल राजा के स्वर्ण मुकुट पर सवार होे गया।

कलियुग के प्रभाव की वजह से राजा परीक्षित की आखेट खेलने की इच्छा हुई। आखेट के लिए राजा परीक्षित जंगल में पहुंचे तो सेना पीछे ही कहीं भटक गयी। अकेले हो चुके राजा को तेज प्यास लगी। पानी की तलाश में राजा परीक्षित भटकते हुए लोमष ऋषि के आश्रम में पहुंच गये। उस समय ऋषि ध्यानमग्न थे।

महाराज परीक्षित ने उनसे पीने केे लिए जल मांगा। ध्यानमग्न होेने के कारण लोमष ऋशि उनकी बात नहीं सुन सके। कलियुग का प्रभाव होने के कारण राजा कोे गुस्सा आया कि वह राजा होकर पानी मांग रहे हैं और मामूली ऋषि उनकी बात का जबाब नहीं दे रहा है।

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गुस्से में राजा परीक्षित ने पास में मरा पड़ा तक्षक सर्प ऋषि के गले में डाल दिया

इसी गुस्से में राजा परीक्षित ने पास में मरा पड़ा तक्षक सर्प ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गये। कुछ देर बाद लोमष ऋशि का एक शिश्य वहां पर आया और ध्यानमग्न गुरू के गले में पड़ा मृत तक्षक सर्प देेखकर अवाक रह गया। उस समय गुरू पुत्र स्नान के लिए नदी पर गये हुए थे।

शिष्य दौड़ते हुए गुरू पुत्र के पास पहुंचा और उनको सारी जानकारी दी। गुरूपुत्र गुस्से से आग-बबूला हो गये। उन्होंने तत्काल अपनी अंजुलि में जल लेकर शाप दिया कि जिसने भी यह दुष्टता की है, यह तक्षक सर्प आज के 21वें दिन जीवित होकर उसे डस लेगा और इसके डसनेे से उसकी मौत हो जायेगी। पुत्र के शाप देते ही लोमष ऋषि का ध्यान टूट गया।

उन्होंने फिर ध्यान लगाकर देखा तो सारी सच्चाई उनके सामने आ गयी। वह यह भी जान गये कि कलियुग के प्रभाव में आकर महाराज परीक्षित ने यह कृत्य किया है। ऐसे परोपकारी राजा के लिए इस तरह के षाप से वह व्यथित हो उठे। उन्होंने अपने पुत्र से भी कहा कि तुमसे अनजाने में अनर्थ हो गया।

फिलहाल लोमष ऋशि महाराज परीक्षित के दरबार में पहुंचे और षाप के बारे में बताया। राजा अपने किये पर काफी शर्मिन्दा हुए और इसके लिए ऋषि से माफी मांगी। सभी दरबारियों ने लोमष ऋषि से षाप का प्रभाव खत्म होने का उपाय पूछा। लोमष ऋषि ने कहा कि उनके पास इसका कोई भी उपाय नहीं है। फिलहाल देष के कोने-कोने से ऋषि-महर्शि व विद्वान बुलाये गये।

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फूल में कीट के रूप में मौजूद तक्षक सर्प ने फूल सूंघते ही राजा को डस लिया

सभी नेे यही तय किया कि समुद्र के बीच में मचान बनाकर लगातार 21 दिनों तक महायज्ञ होेगा। समुद्र के बीच में सर्प पहुंच ही नहीं पायेगा और 21 दिनों के बाद षाप का असर अपने आप खत्म हो जायेगा। वही हुआ भी, समुद्र के बीचोबीच महायज्ञ षुरू हो गया। महायज्ञ के 21 दिन समुद्र में तैरता हुआ एक सुन्दर फूल राजा परीक्षित के पास पहुंचा। राजा ने उस फूल को उठाकर सूंघ लिया।

उस फूल में कीट के रूप में मौजूद तक्षक सर्प ने फूल सूंघते ही राजा को डस लिया, जिससे उनकी मौत हो गयी। पिता की मौत से बौखलाये महाराज परीक्षित के पुत्र महाराज जन्मेजय ने प्रण किया कि वह धरती से सर्पवंष का खात्मा कर देंगेे।

तक्षक सहित चार सर्प भगवान विश्णु की षैय्या में लिपटे हुए हैं

सर्पवंष का खात्मा करने के लिए ही उन्होंने अवन्तिकापुरी में 84 बीघे का विषाल हवनकुण्ड बनवाया और सर्पयज्ञ षुरू करा दिया। देश के कोने-कोेनेे सेे आये विद्वान आहुतियां देते रहे और एक के बाद एक सर्प हवनकुण्ड में आकर गिरते चले गये। काफी समय बीत जाने के बाद महाराज जन्मेजय ने विद्वानों से पूछा कि मेरे पिता का हन्ता तक्षक सर्प अभी भस्म हुआ या नहीं।

विद्वानों ने ध्यान लगाकर देखा और बताया कि सृश्टि में तक्षक सहित आठ सर्प अभी भी बचे रह गये हैं। इसमें तक्षक सहित चार सर्प भगवान विश्णु की षैय्या में लिपटे हुए हैं, दो सर्प भगवान शिव के गले में और दो सर्प भगवान विष्णु के हाथ में लिपटे हैं। महाराज जन्मेजय ने विद्वानों से आग्रह किया कि वह विष्णु की शैय्या सहित आह्वान करें। विद्वानों ने आह्वान शुरू किया।

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विश्णुलोक से भगवान विष्णु की शैय्या यज्ञकुण्ड की तरफ बढ़ने लगी। देवलोक में हाहाकार मच गया। ऐसे में सभी देवता त्राहि-मामि करते हुए वहां आ धमके। प्रलय हो जाने की बात करते हुए देवताओं ने महाराज जन्मेजय से आग्रह करके सर्पयज्ञ बन्द करा दिया। साथ ही यह आशीर्वाद दिया कि महाराज जन्मेजय का नाम लेते ही विषैले से भी विशिला सर्प भाग जायेगा। लोगों का यह भी मानना है कि अवन्तिकापुरी के आस-पास के इलाकेे के किसी भी व्यक्ति को आज तक सांप ने नहीं डसा है।

अवन्तिकापुरी धाम के असल व नकल पर है मतभेद

अवन्तिकापुरी धाम केे असल व नकल को लेकर विद्वानों में मतभेद है। बड़ी संख्या में लोग उज्जैन में असली अवन्तिकापुरी होने का दावा करते हैं और कहते हैं कि उज्जैन वाले अवन्तिकापुरी में ही महाराज जन्मेजय ने सर्पयज्ञ किया था। इसके विपरीत ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जोे आजमगढ़ की अवन्तिकापुरी को महाराज जन्मेजय की सर्पयज्ञस्थली बताते हैं।

ऐसा दावा करने वालों का कहना है कि पुराणों में काषी से जिस दिशा में जितने मील पर महाराज जन्मेजय के सर्पयज्ञस्थली का होना बताया गया है, वह आजमगढ़ की ही अवन्तिकापुरी है।

साथ ही यह भी कहते हैं कि महाराज जन्मेजय ने सर्पयज्ञ के लिए 84 बीघे का विषाल हवनकुण्ड बनवाया था, जो आज भी यहां विशाल सरोवर के रूप में मौजूद है। आजमगढ़ में असली अवन्तिकापुरी होने का दावा करने वालों का यह भी तर्क है कि प्राचीन काल में यहां निर्जन स्थान था औैर वातावरण भी काफी शांतिप्रिय व रमणीक था। यही वजह थी कि ऋषि दुर्वासा, दत्तात्रेय व चन्द्रमा मुनि नेे यहीं पर अपनी तपोस्थलियां बनायी।

ऋषियों-मनीशियों की इसी तपोभूमि पर महाराज जन्मेजय ने भी सर्पयज्ञ किया। इन स्थितियों के बीच आजमगढ़ में असली अवन्तिकापुरी होने का तर्क लोग झुठला नहीं पाते हैं। यही वजह है कि आजमगढ़ में असली अवन्तिकापुरी होेने का दावा करने वालों की संख्या काफी अधिक हो गयी है।

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लम्बे समय से हो रहा था धाम के विकास का प्रयास-राजा संतोश साहू

प्रख्यात समाजसेवी एवं रानी की सराय इलाकेे के प्रमुख कारोबारी राजा संतोश साहू का कहना है कि अवन्तिकापुरी धाम के विकास के लिए लम्बे समय से प्रयास किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि इस धाम के विकास के लिए उनके परिवार के लोग हमेषा कटिकद्ध रहे हैं। उनके दादा, उनके चाचा यहां के विकास के लिए हर संभव सहयोग हमेषा देते रहे तथा वही लोग मंदिर समिति के संरक्षक ही होेते चले आ रहे हैं।

वह भी खुले दिल से धाम के विकास के लिए हर संभव काम कर रहे हैं। अब सरकार ने इस धाम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का बीड़ा उठाया है तो निष्चित तौर पर यहां की तस्वीर बदलेगी।

हर धर्मस्थली की तस्वीर संवरनी चाहिए-डा प्रेमप्रकाश यादव

आजमगढ़ शहर स्थित डीएवी पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य एवं कई स्कूल-कालेजों के संस्थापक प्रबंधक व प्रख्यात शि क्षाविद डा प्रेमप्रकाश यादव का कहना है कि अवन्तिकापुरी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, यह अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि जिले में इस तरह के ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व के कई स्थल हैं। जिसमें दुर्वासा ऋषि आश्रम, चन्द्रमा ऋषि आश्रम, दत्तात्रेय आश्रम आदि शामिल हैं।

साथ ही महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या प्रसाद उपाध्याय हरिऔध, पं लक्ष्मीनारायण मिश्र, कैफी आजमी, अल्लामा शिब्ली नोमानी आदि से जुड़ी धरोहरों को भी सहेजने का प्रयास होना चाहिए। यदि यह सब कुछ हो गया तो देष के कोने-कोने से पर्यटक इस जिलेे में आयेंगे और यहां का विकास स्वतः हो जायेगा।

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