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खतरे में है खेती किसानी का भविष्य
सवाल किसानों की समस्याओं को लेकर केंद्र सरकार की नीयत पर शक का नहीं है लेकिन आंकड़े और हालात जो बोल रहे हैं वह तो यही कह रहे हैं कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना बहुत ही मुश्किल है।
पंडित रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: सवाल किसानों की समस्याओं को लेकर केंद्र सरकार की नीयत पर शक का नहीं है लेकिन आंकड़े और हालात जो बोल रहे हैं वह तो यही कह रहे हैं कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना बहुत ही मुश्किल है।
कांग्रेस ने लगाया ये आरोप
हालांकि सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि, सहयोग एवं किसान कल्याण विभाग के राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालय समिति बनायी हुई है। यह समिति किसानों की आय दोगुनी करने से जुड़े मुद्दों पर गौर कर रही है। इसके अलावा वर्ष 2022 तक सही अर्थों में किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति कैसे हो इसके लिए एक रणनीति की सिफारिश भी करेगी।
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सरकारी प्रयासों के बावजूद कांग्रेस का आरोप है कि तीन सालों में 38 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। 35 किसान रोजाना आत्महत्या कर रहे हैं। एनडीए सरकार के कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है। हालांकि कृषि ऋण के कारण किसानों की आत्महत्या के बारे में वर्ष 2016 के बाद से कोई आंकड़ा सार्वजनिक नहीं हुआ है, क्योंकि गृह मंत्रालय ने इसके बारे में रिपोर्ट का प्रकाशन ही नहीं किया है।
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करेंगे पीएम मोदी
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रधानमंत्री ने किसानों की आय बढा़ने के लिए चार पहलुओं का उल्लेख किया था जिनमें कच्चे माल की लागत कम करना, उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करना, फसलों की बर्बादी रोकना और आमदनी के वैकल्पिक स्रोत सृजित करना शामिल था।
प्रधानमंत्री ने नए बिजनेस मॉडलों के जरिए किसानों की आय दोगुनी करने को प्रदर्शित करने और किसानों को मुश्किलों से राहत दिलाने के लिए एक कार्यदल का गठन भी किया है। लेकिन नौकरशाही की लचर कार्यशैली इस लक्ष्य को हासिल करने में लगातार बाधक बन रही है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट
ऐसा नहीं है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है। अगर हम कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बजट अनुमानों के वर्ष-वार विवरण पर नजर डालें तो 2014-15 में 31542.95, 2015-16 में 25460.51, 2016-17 में 45035.20, 2017-18 में 51576.00, 2018-19 में 58080.00 कुल 211694.66 करोड़ रुपये का बजट अनुमान रहा है। जो कि साल दर साल बढ़ता ही रहा है। इसे देखते हुए सरकार की मंशा पर शक करने की कोई वजह नहीं दिखती लेकिन किसानों की दयनीय हालत और कंगाली कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका पिछले सत्तर साल से जवाब ढूंढा जा रहा है। लेकिन जहां का तहां खड़ा नजर आया है।
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ऐसे में कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि क्या हम किसानों की समस्याओं का सही कारण खोजना चाहते थे या नहीं। अब केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का संकल्प किया तो किसान का ठहरकर इस सरकार की ओर देखना लाजमी था। लेकिन हाल के कुछ महीनों में किसानों की बढ़ती बेचैनी यह बता रही है कि किसानों का धैर्य चुकने लगा है उसे अपनी आर्थिक दशा में सुधार की कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है।
खुद को असुरक्षित मानते हैं किसानो
हालात यह हैं कि किसान खुद को बेहद असुरक्षित क्यों महसूस कर रहा है। कम आय, बढ़ती लागत और नीतिगत दुर्व्यवहार क्या हमारी कृषि संस्कृति को नष्ट कर रही है। पिछले कई सालों से खेती की लागत जिस तेजी से बढ़ी है, उस अनुपात में किसानों को मिलने वाले फसलों के दाम बहुत ही कम बढ़े हैं।
खेती छोड़ रहे हैं किसान
वर्ष 2011 की जनगणना को ही लें तो प्रतिदिन 2000 किसानों के खेती छोड़ने की बात सामने आ रही है। इतना ही नहीं, एक अध्ययन के अनुसार केवल दो फीसदी किसानों के बच्चे ही कृषि को अपना पेशा बनाना चाहते हैं।
अगर इन आंकड़ों को सही मानें तो स्थिति बहुत ही भयावह है। कई राज्यों में किसानों के विरोध प्रदर्शन होने के बाद भी किसानों की उपेक्षा अभी तक जारी है। एनसीआरबी द्वारा जारी किसानों की आत्महत्या की रिपोर्टें भी सरकार को प्रभावित करने में नाकाम रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से कोई रिपोर्ट आई ही नहीं। पुरानी कहावत है किसान कर्ज में पैदा होता है और संतान को कर्ज की विरासत सौंप कर मर जाता है। लेकिन अब यह लग रहा है कि किसान अपनी संतान को कर्ज की विरासत नहीं देना चाहता।
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वास्तव में सरकार के लिए यह सबसे चौकन्ना कर देने वाली खबर होनी चाहिए यदि घाटे का सौदा होने की वजह से रोजाना ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हों। हर दिन ढाई-तीन दर्जन किसान मौत को गले लगा रहे हों।
ये भी कारण हैं खेती छोड़ने का
खेती किसानी के धंधे के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि युवा पीढ़ी को मिट्टी में पैर सानना रास नहीं आ रहा। नौजवान पीढ़ी गांव में रहना ही नहीं चाहती। गांव का जो लड़का थोड़ा भी पढ़ लिख जाता है वह पढ़ाई-लिखाई के बाद रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भागता है। इसलिए सरकार की सबसे बड़ी चुनौती किसानों की अगली पीढ़ी तैयार करने की होनी चाहिए। अगर युवा इस किसानी को नहीं अपनाएंगे तो हम भविष्य के किसान कहां से लाएंगे।
एक सर्वे के मुताबिक देश के सत्रह राज्यों में खेती किसानी करने वाले परिवारों की औसत आमदनी सालाना बीस हजार रुपए से कम है। पिछले पचास सालों से किसानों की आय स्थिर है। खेतों का आकार लगातार छोटा होता जा रहा है।
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ऐसे में बुनियादी सवाल यही है कि किसानों की दशा कैसे सुधरेगी। क्या छह-आठ हजार रुपए से किसानों की बदहाली कैसे दूर हो जाएगी। किसान को अपनी उपज अपनी मर्जी के दाम पर बाजार में बेचने की आजादी देने के लिए हमें किसान की आमदनी फिक्स कर खेती करानी चाहिए।