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किसान आंदोलनः अब क्या करेंगे किसान, सब हैं पर नेतृत्व का सवाल खड़ा
किसान आंदोलन में नेतृत्वहीनता की स्थिति बनती जा रही है। विरोध जारी है लेकिन आगे की रणनीति को लेकर असमंजस है। क्या आंदोलन दिशाहीन और नेतृत्वहीन हो गया है।
राम कृष्ण वाजपेयी
नई दिल्लीः 26 नवंबर से चल रहे किसान आंदोलन में एक बार फिर तेजी लाने की कवायद शुरू हो गई है। सब बोल रहे हैं लेकिन किसान नेता मौन हैं। भावी कार्यक्रम कोई नहीं है। नेतृत्वहीनता की स्थिति बनती जा रही है। हालांकि दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघू, टिकरी, औचंदी, पियू मनियारी और सबोली और मंगेश सीमाओं पर यातायात ठप है। यातायात पुलिस लोगों की घूम कर जाने की सलाह दे रही है। लेकिन आगे की रणनीति को लेकर असमंजस है। क्या आंदोलन दिशाहीन और नेतृत्वहीन हो गया है। क्या सरकार इसी स्थिति का इंतजार कर रही है। ये आज अहम सवाल हो गए हैं।
किसान आंदोलन में नेतृत्वहीनता की स्थिति बनी
तीन नये कृषि कानूनों पर गतिरोध जारी है। इस बीच भाकियू नेता धर्मेंद्र मलिक उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा गठित पैनल से इस्तीफा दे चुके हैं, उनका आरोप है कि यह पैनल किसानों के लिए कुछ भी करने में असमर्थ रहा है। इस बीच दलित कांग्रेस के नेता सांसद उदितराज भी किसानों के विरोध प्रदर्शन में पहुंचे उन्होंने कहा कि दलित और किसान नये कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए एकजुट हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कल ही किसानों के लिए करो या मरो की बात कर चुके हैं।
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किसान आंदोलन अब यूपी पंजाब में बंट चुका
ये तो हुए ताजा हालात लेकिन असल सचाई कुछ और ही दिखाई दे रही है। ऐसा लग रहा है कि किसान आंदोलन अब यूपी पंजाब में बंट चुका है। किसानों के मन में ऊहापोह है कि आखिर कब तक ऐसे चलेगा। सरकार के नकारात्मक रुख से और बातचीत के दरवाजे बंद हो जाने के बाद किसानों को अब भविष्य की चिंता सताने लगी है। हालांकि अभी वह यही कह रहे हैं कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी आंदोलन जारी रहेगा लेकिन कल क्या होगा ये सवाल मुंह बाए खड़ा है।
सरकार अपनी जिद के आगे किसानों की उपेक्षा के मूड में आ चुकी
वस्तुतः केंद्र सरकार ब्रिटिश सरकार की नीतियों पर चल रही है। जिसने आयरिश आंदोलन के समय कहा था कि हम अवायड करेंगे। केंद्र सरकार भी अपनी जिद के आगे किसानों की उपेक्षा के मूड में आ चुकी है। मुश्किल यह है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले देश का किसान बिखरा हुआ है। छोटी जोत का किसान है या खेतिहर मजदूर है। उसके लिए एमएसपी का भी कोई मायने नहीं है क्योंकि उसकी उपज इतनी कम होती है कि वह निकटवर्ती बाजार में बेचकर जल्द से खाली होना चाहता है।
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किसान आंदोलन पंजाब और हरियाणा के किसानों ने शुरू किया। इसको अखिल भारतीय स्वरूप देने के लिए 40 यूनियनों का मंच बना संयुक्त किसान मोर्चा जिसके प्रवक्ता बने भाकियू नेता राकेश टिकैत। लेकिन राकेश टिकैत जिस तरह से मीडिया में किसान नेता बनकर उभरे ये बात कुछ किसान नेताओं को रास नहीं आयी। इसी वजह से टिकैत का विरोध शुरू हो चुका है। पंजाब में पिछले दिनों लख्खा द्वारा आहूत पंचायत में पंजाबी किसान को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनाने की जो बात उठी वह इसी के एक झलक थी।
किसान आंदोलन पर सब बोल रहे, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा मौन
सबसे बड़ी बात यह है कि किसानों के आंदोलन पर सब बोल रहे हैं लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा मौन है। राकेश टिकैत भी महापंचायतों के जरिये किसानों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन किसानों को जोड़े रखने के लिए भावी कार्यक्रम की रूपरेखा नहीं दे पा रहे हैं। दरअसल टिकैत ने संसद घेरने की बात कही जिसका विरोध हो गया। बंगाल में प्रदर्शन की बात कही इसका विरोध हो गया।
सूत्रों का कहना है कि किसान आंदोलन वर्तमान में सर्वमान्य नेता के अभाव में नेतृत्वहीन हो गया है। यह वह बड़ा जहाज बन गया है जो समुद्र में तैर रहा है लेकिन इसके कप्तान का पता नहीं है दिशाहीन होने से यह भटकाव की ओर बढ़ रहा है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं। )