×

भारत कहीं फिसल न जाए

अमेरिकी दूत बार-बार भारत क्यों आता है ? क्या भारत के बिना काबुल का झगड़ा निपटाया नहीं जा सकता ? अब से पहले तो भारत को कोई घास भी नहीं डालता था।

Newstrack
Published on: 17 Sep 2020 7:47 AM GMT
भारत कहीं फिसल न जाए
X
अफगान-संकट को हल करने के लिए नियुक्त विशेष अमेरिकी दूत जलमई खलीलजाद कुछ घंटों के लिए भारत आए, यह अपने आप में महत्वपूर्ण बात है लेकिन इस आवागमन का उद्देश्य क्या हो सकता है ?

कतर की राजधानी दोहा में चल रही अफगान-वार्ता में भारत भाग ले रहा है, यह शुभ-संकेत है। अफगान-संकट को हल करने के लिए नियुक्त विशेष अमेरिकी दूत जलमई खलीलजाद कुछ घंटों के लिए भारत आए। यह अपने आप में महत्वपूर्ण बात है लेकिन इस आवागमन का उद्देश्य क्या हो सकता है ? वैसे भी पिछले पौने दो साल में खलीलजाद पांच बार भारत आ चुके हैं। दोहा में चल रही वार्ता के बीच उनका पहले पाकिस्तान जाना और फिर भारत आना, इसका मतलब क्या है ?

उनका पाकिस्तान जाना तो इसलिए जरुरी है कि तालिबान की चाबी वहीं है। तालिबान पर पाकिस्तान जितना दबाव डाल सकता है, कोई और देश नहीं डाल सकता। लेकिन अमेरिकी दूत बार-बार भारत क्यों आता है ? क्या भारत के बिना काबुल का झगड़ा निपटाया नहीं जा सकता ? अब से पहले तो भारत को कोई घास भी नहीं डालता था।

इसलिए भारत को मिल रही तवज्जो

India-Afgan अफगान वार्ता में भारत ले रहा हिस्सा (फाइल फोटो)

पिछले दो-तीन वर्ष से भारत की ज्यादा पूछ इसलिए हो रही है कि अमेरिका अपनी बंदूक भारत के कंधे पर रखना चाहता है। उसकी रणनीति यह हो सकती है कि उसके अफगानिस्तान से पिंड छुड़ाने के बाद वह भारत के गले पड़ जाए। यदि समझौते के बाद तालिबान तंग करें तो भारत अपनी सेनाएं काबुल भेज दे। ऐसा अंदाज मैं क्यों लगा रहा हूं ?

ये भी पढ़ें- कांप उठे आतंकी: सुरक्षाबलों ने ढेर किए 177 आतंकवादी, अब तक इतने मारे गए

जनवरी 1981 में जब अफगान प्रधानमंत्री बबरक कारमल से मेरी तीन लंबी भेटें हुईं तो उन्होंने कहा कि आप इंदिरा जी से कहकर रुसी फौजों की जगह भारतीय फौजें भिजवा दीजिए। वे अफगान मुजाहिदीन से भी लड़ेंगी और पाकिस्तान की काट भी करेंगी। मैंने अपने घनिष्ट मित्र बबरक को साफ-साफ कहा कि भारत यह खतरा कभी मोल नहीं लेगा। इस बारे में इंदिरा जी से पहले ही मेरी बात हो चुकी थी।

कहीं अमेरिका की बातों में न आ जाए भारत

Modi-Trump अफगान वार्ता में भारत ले रहा हिस्सा (फाइल फोटो)

मैं यह मानता हूं कि यदि भारत और पाकिस्तान आज इस तरह के सहयोग का कोई कदम मिलकर उठाएं तो वह जरुर सफल हो सकता है। इस वक्त ऐसे कदम के आसार तभी होंगे जबकि दोनों देशों में परिपक्व नेतृत्व हो। उनके बीच सीधा संवाद हो। ऐसी स्थिति में भारत को अमेरिकी प्रलोभनों में फंसने से बचना होगा।

ये भी पढ़ें- इसरो अगले साल चंद्रयान-3 करेगा लांच, जानिए पहले के मुकाबले ये क्यों हैं ज्यादा खास

डर यही है कि भारत कहीं ट्रंप की फिसलपट्टी पर फिसल न जाए। बेहतर तो यह होगा कि भारत का विदेश मंत्रालय इस समय का सदुपयोग दो कामों के लिए करे। एक तो काबुल सरकार के सभी धड़ों से उत्तम संपर्क बनाए रखे और दूसरा यह कि विभिन्न तालिबान संगठनों से भी सीधा संवाद कायम करे ताकि दक्षिण एशिया के महादेश के रुप में वह अफगानिस्तान में शांति कायम करवा सके।

Newstrack

Newstrack

Next Story