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भारतीय एकता को राजनीति के लिए ना बांटा जाए

सम्पूर्ण विश्व में भारत की संस्कृति, सभ्यता, मूल्य, विविधता में एकता की धरोहर एक पहचान स्वरूप है, भारत को इसपर गर्व है। सम्भवतया विश्व में कोई ही ऐसा देश होगा।

Shivani
Published on: 26 Sept 2020 11:04 PM IST
भारतीय एकता को राजनीति के लिए ना बांटा जाए
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योगेश मोहनजी गुप्ता

सम्पूर्ण विश्व में भारत की संस्कृति, सभ्यता, मूल्य, विविधता में एकता की धरोहर एक पहचान स्वरूप है, भारत को इसपर गर्व है। सम्भवतया विश्व में कोई ही ऐसा देश होगा, जहाँ हर 200 किलोमीटर के पश्चात, खान-पान, रहन-सहन, भाषा-बोली, जलवायु में परिवर्तन होता हो परन्तु भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ ऐसा होना सम्भव है, यहाँ तक कि भारत देश में ईश्वर के विविध रूपों का भी आधिक्य है इतना सब होने पर भी भारत देश में भारत देश में परस्पर प्रेम, सौहार्द का भाव समाप्त नहीं होता, यही भारत देश की एकता की शक्ति है।

विविधता में एकता भारत की धरोहर

भारत के राजनैतिक परिदृश्य पर यदि दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होता है कि यहाँ पर दो प्रकार की राजनीतिक पार्टियाँ हैं - (1) राष्ट्रीय पार्टी (2) क्षेत्रीय पार्टी। इनमें कुछ जाति विशेष की पार्टियाँ हैं, जिनके नेतागण अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार के नारे-प्रलोभन अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में देते रहते हैं, परन्तु भारत का मतदाता अत्यधिक जागरुक एवं समझदार है, इस तथ्य को यहाँ की जनता ने वर्ष 2014 तथा 2019 के चुनाव में मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में चयनित कर प्रमाणित कर दिया।

इसका एक अर्थ यह भी है कि राष्ट्रीय पार्टी का एक अपना गौरव व सिद्धान्त होता है, जो सम्पूर्ण देश में एक समान रूप में क्रियान्वित होता है। इनकी तुलना क्षेत्रीय पार्टियों से नहीं की जा सकती और ना ही कोई क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय पार्टियों की नीति पर चल सकती है। इन दोनों पार्टियों के मध्य मुख्य अंतर यह है कि क्षेत्रीय पार्टियों का दृष्टिकोण संकीर्ण होता है, जबकि राष्ट्रीय पार्टियों का वृहद होता है।

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मध्य प्रदेश में घटित एक घटना यह है कि वहाँ पर भाजपा का शासन है। वहाँ के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि वे सम्पूर्ण भारत का नेतृत्व करें, परन्तु पार्टी का अन्तिम निर्णय मोदी जी के पक्ष में आया, फलस्वरूप शिवराज सिंह चौहान का सपना टूट गया। निर्विवाद रूप से वह राष्ट्रीय नेता कल भी थे और आज भी हैं। अब उनके पास मध्य प्रदेश की बागडोर है।

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मध्य प्रदेश की बागडोर सम्भालने के पश्चात् उनसे यह आपेक्षित था कि वह जो भी कार्य करेंगे वह देश के प्रति वृहद दृष्टिकोण को अपनाकर करेंगे, न कि क्षेत्रीय संकीर्ण दृष्टिकोण को अपनाकर, परन्तु उनके द्वारा अभी लिया गया यह निर्णय कि मध्य प्रदेश की सरकारी नौकरी केवल मध्य प्रदेश के निवासियों के लिए ही उपलब्ध होंगी। यह उनकी निजी संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करता है, यह भाजपा की कदापि नहीं हो सकती। शिवराज सिंह चैहान जैसे राष्ट्रीय नेता से यह आशा नहीं कि जा सकती थी। यदि परिवार का कोई सदस्य गलत कार्य करता है तो देश हित में परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा विरोध होना ही चाहिए।

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यदि भारत के अन्य मुख्यमंत्रियो में भी ऐसी संकीर्ण मानसिकता उत्पन्न हो जाती है तो निश्चिततः भारत देश का अदृश्य बंटवारा हो जाएगा। आईटी के क्षेत्र में मुम्बई, बैगलुरु, हैदराबाद व दिल्ली विश्व प्रसिद्ध हैं। ऐसी संकीर्ण सोच होने पर वहाँ के छात्र किसी अन्य प्रदेश में जा नहीं पायेंगे। इसी प्रकार भारत के प्रत्येक प्रदेश के युवा की कोई न कोई विशिष्ट पहचान है।

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यदि ऐसी सोच उत्पन्न हो गई तो सभी अपने-अपने क्षेत्रों में सीमित होकर, कुठिंत हो जायेंगे। बिहार का श्रमिक वर्ग सम्पूर्ण देश को क्रियान्वित करता है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई तो महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश में स्थापित उद्योगों की प्रगति अवरुद्ध हो जायेगी। भाजपा के भारत रत्न से सम्मानित स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी कि निम्न पंक्तियाँ राष्ट्रहित का स्मरण कराती हैं - सत्ता रहे, या ना रहे, मगर देश रहना चाहिए।

निश्चिततः भाजपा राष्ट्रीय पार्टी इसी का अनुगमन कर रही है और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से भी यह अपेक्षा है कि वे राष्ट्रहित को क्षेत्रीय हित से अधिक वरीयता दें, तभी भारत देश की उन्नति व आर्थिक विकास सम्भव हो पायेगा। देश विकसित होगा तो प्रदेश स्वयं विकसित हो जायेंगे। प्रदेशों से ही देश का निर्माण होता है।

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