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झारखंड विधानसभा चुनाव के संदेश
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए एक बड़ा संदेश दे गए हैं। भाजपा को यहां भी सत्ता गंवानी पड़ गई है। महाराष्ट्र के बाद इस राज्य में भी विपक्ष के सामूहिक हमले ने भाजपा की आंधी को रोक दिया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए एक बड़ा संदेश दे गए हैं। भाजपा को यहां भी सत्ता गंवानी पड़ गई है। महाराष्ट्र के बाद इस राज्य में भी विपक्ष के सामूहिक हमले ने भाजपा की आंधी को रोक दिया है। राज्य में महागठबंधन झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राजद ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है।
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ये हाल तब है जबकि इस दरम्यान भाजपा अपने नेशनल एजेंडा को पूरा करने के क्रम में तीन तलाक, अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन बिल और एनआरसी के बाद अब एनपीआर की दिशा में आगे बढ़ रही है। यानी प्रखर राष्ट्रवाद और मंदिर मुद्दा क्षेत्रीय स्तर पर काम नहीं कर रहा है। क्षेत्रीय स्तर पर भाजपा सरकारों के काम का जनता मूल्यांकन करती दिख रही है। वास्तव में भाजपा के राज्य नेतृत्व देश में प्रचंड बहुमत को देखते हुए अपने काम को लेकर जनता पर वह छाप नहीं छोड़ पाए जिसकी जनता को अपेक्षा थी।
ये चुनाव मोदी के लिए नहीं थे
हार के करणों पर चर्चा करें तो ये चुनाव मोदी के लिए नहीं थे। इसलिए मोदी लहर कम हुई नहीं कहा जा सकता। रघुबर दास के प्रति गुस्सा था जिसे लेकर पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी। सहयोगियों के प्रति उपेक्षा का रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार कहा जा सकता है।
झारखंड में भाजपा की हार बहुत अधिक मायने रखती है, इस हार से निकले संदेश का अपना एक अलग महत्व है। वह भी तब जबकि झारखंड ऐसा पांचवां राज्य बन गया हो जहां भाजपा पिछले एक साल के भीतर अपनी सत्ता गंवा चुकी है।
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झारखंड के अलावा इसी साल भाजपा को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवानी पड़ी है।
झारखंड में सोमवार को आए नतीजों के क्रम में भाजपा दूसरे नंबर पर पहुंच गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी को यहां 30 सीटें मिली हैं, जबकि भाजपा को सिर्फ 25 सीटों से संतोष करना पड़ा है। कांग्रेस के खाते में 16 सीटें गईं। कुल मिलाकर झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन को 47 सीटें मिली हैं।
भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना सकी
जबकि महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सरकार नहीं बना सकी। महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के 105 सदस्य हैं, जबकि शिवसेना के 56, राकांपा के 54 और कांग्रेस के 44 सदस्य हैं। लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना राकांपा और कांग्रेस के महागठबंधन के हाथ बाजी लगी है। जिसके पास कुल 154 सीटें हैं। 2018 दिसंबर में छत्तीसगढ़ की सत्ता में कांग्रेस 15 साल बाद लौटी, वहीं राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को सत्ता हासिल हुई।
2017 में देश के 71 प्रतिशत हिस्सा भाजपा शासित था अब सिर्फ 35 प्रतिशत बचा
इन पांच राज्यों की सत्ता पर से नियंत्रण खोने के बाद भाजपा का देश के मात्र 35 प्रतिशत हिस्से पर नियंत्रण रह गया है, जबकि 2017 में पूरी हिंदी भाषी बेल्ट पर शासन के साथ 71 प्रतिशत हिस्से पर पार्टी का नियंत्रण था।
दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं
आने वाले समय में दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को राज्यों के बारे में अपनी नीति पर एक बार फिर गौर करना होगा। हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड में भगवा पार्टी को झटका देने के बाद एकजुट विपक्ष दिल्ली और बिहार में भाजपा पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश करेगा। 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के 62 विधायक और भाजपा के चार विधायक हैं।
बाकी सीटें अन्य दलों और निर्दलीयों के पास हैं। पिछली बार 7 फरवरी, 2015 को दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे। इस समय आप के अरविंद केजरीवाल राज्य के मुख्यमंत्री और मनीष सिसोदिया उप-मुख्यमंत्री हैं। आप से पहले कांग्रेस की शीला दीक्षित लगातार 15 वर्षों तक यहां की मुख्यमंत्री रही थीं।
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भाजपा को दोनो राज्यों में सत्ता की कुंजी थामनी है तो उसे अपनी रणनीति बदलनी होगी
इसी तरह बिहार विधानसभा में राजग के 132 विधायकों में जदयू के 71, भाजपा 52, लोजपा दो, रालोसपा दो, हम (यू) एक व निर्दलीय चार विधायक हैं। जबकि विपक्ष के 109 विधायकों में राजद 79, कांग्रेस 27 व सीपीआई एमएल तीन हैं। दो सीटें रिक्त हैं। इसलिए ऐसे में यदि भाजपा को इन दोनो राज्यों में सत्ता की कुंजी थामनी है तो उसे अपनी रणनीति बदलनी होगी। क्योंकि अच्छे प्रदर्शन से काम नहीं चलेगा उसे हर हाल में सत्ता हासिल करने के लक्ष्य पर काम करना होगा। क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दोनों ही राज्यों में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी लेकिन सत्ता से दूर रह गई।
अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत झारखंड में 55 प्रतिशत से अधिक था तो हरियाणा में 58 प्रतिशत था। लेकिन विधानसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत गिरकर क्रमश: 33 एवं 36 प्रतिशत पर आ गया।