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बापू ने अफ्रीका से लौटकर देश को एकता सूत्र में बांधा- के. विक्रम राव

बापू जब 1915 में आए थे तो उसकी शताब्दी 2015 में मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया पर मनाई गई थी और मैं उसमें शामिल हुआ था। कितना शानदार आयोजन था । एक बगघी थी जिसमें बापू और कस्तूरबा के प्रतिरूप को बिठाया गया था।

SK Gautam
Published on: 9 Jan 2021 10:32 AM GMT
बापू ने अफ्रीका से लौटकर देश को एकता सूत्र में बांधा- के. विक्रम राव
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बापू ने अफ्रीका से लौटकर देश को एकता सूत्र में बांधा- के. विक्रम राव

प्रवासी भारतीय दिवस पर न्यूज़ट्रैक विशेष

बापू जब लंदन गए बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए और वहां से बैरिस्टर बन कर दक्षिण अफ्रीका गए तो वह साधारण वकील थे, साधारण इंसान थे । महात्मा नहीं हुए थे लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें महात्मा बना दिया। बापू ने एक नया फिलोसॉफिकल इंटरप्रिटेशन किया, एक दार्शनिक बात की । जो हेनरी डेविड थोरो ने अमेरिका में किया था सुकरात ने उससे पहले किया था प्रह्लाद ने हिरण कश्यप के खिलाफ किया था कि किस प्रकार इंसाफ के लिए संघर्ष करना है, सिविल नाफरमानी की चर्चा की थी तो बापू के जीवन से जुड़े इन दो पहलूओं पर हम चर्चा करेंगे और मैं बधाई देना चाहूंगा न्यूज़ ट्रैक को कि बापू के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर इस चर्चा को कर रहे हैं क्योंकि तीन चार पीढय़िों को याद दिलाना पड़ेगा कि बापू क्या थे और क्या नहीं थे और क्या उनके बारे में सोचते हैं ।

27 साल बाद जब बापू भारत में लौटे

यहां एक बात मैं बता दूं कि बापू को मैंने देखा है सेवाग्राम में मैंने उनके पैर छुए हैं तो मैं बहुत छोटा था तो जो कुछ है बापू के बारे में मैं एक निजी जानकारी के आधार पर और व्यवहारिक ज्ञान के आधार पर बताऊंगा। 27 साल बाद जब बापू भारत में लौटे तो अंग्रेजों को जीत चुके थे। उन्हें पराजित कर, दक्षिण अफ्रीका में जेल जाकर संघर्ष कर अपना सिक्का मनवा चुके थे। वह एक दौर था कि किस तरह टिकट कलेक्टर ने उन्हें दक्षिण अफ्रीका में फेंक दिया। वह आप जानते हैं वह इतिहास की बात है वह बापू को अगर इस तरह ना फेंक ते तो शायद भारत की आजादी में और देर हो जाती है।

बापू जब 1915 में आए थे तो उसकी शताब्दी 2015 में मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया पर मनाई गई थी और मैं उसमें शामिल हुआ था। कितना शानदार आयोजन था । एक बगघी थी जिसमें बापू और कस्तूरबा के प्रतिरूप को बिठाया गया था। उस समय उनका स्वागत करने के लिए जिन्ना और गोखले जैसे बड़े नेता वहां मौजूद थे । मैं सोचता हूं कि वह कैसा दिन रहा होगा जब इतने बड़े स्तर पर लोगों का स्वागत करने के लिए वहां पहुंचे हुए थे। ऐसा ही कुछ अनुभव मैंने 2015 के इस आयोजन में भी किया जो बापू की भारत वापसी के 100 साल की स्मृति में आयोजित किया गया था। बापू के आने से पहले उनकी प्रसिद्धि भारत पहुंच चुकी थी। उनके बारे में समाचार पत्रों में छप रहा था।

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बापू ने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों को झुकने के लिए मजबूर किया

लोगों को पता चल गया था कि बापू वह शख्स हैं जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों को झुकने के लिए मजबूर किया है । काले गोरे का भेद खत्म कराया है तो उस समय इस तरह का मीडिया नहीं था लेकिन चर्चा तब गांव गांव में फैल चुकी थी कि बापू ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने अंग्रेजों को हराया है तो उस दिन मुंबई का दृश्य अद्भुत था। तब बापू ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत में आजादी की अलख जगाई। उस दिन बापू के स्वागत के मौके पर मोहम्मद अली जिन्ना ने अंग्रेजी में भाषण दिया तो बापू ने उस समय कहा नहीं मैं भारत में लोगों से अंग्रेजी में बात नहीं करूंगा मैं टूटी-फूटी हिंदी और गुजराती में बात करूंगा ।उसी दिन बापू ने यह संदेशा दे दिया था कि इस देश का निर्माण अपनी भाषा और बोली के साथ होगा।

उन दिनों आजादी पाने के लिए लोग अंग्रेजों को मेमोरेंडम देते थे, मिन्नत करते थे । इन तरीकों से आंदोलन किया जा रहा था लेकिन बापू ने आकर सबको बगावत का मंत्र दिया और कहा कि अब हम मिन्नत नहीं करेंगे अब हम मांग करेंगे । अब हम अपना अधिकार मांगेंगे । हेनरी डेविड थोरो ने लिखा था सिविल सिविल डिसऑबेडिएंस , उन्होंने अमेरिकी तानाशाही के खिलाफ लड़ाई की। बापू का सत्याग्रह सिविल डिसऑबेडिएंस से अलग था हालांकि बाद में लोहिया ने इसे सिविल नाफरमानी कहा लेकिन बापू ने इसे सत्याग्रह कहा। उन्होंने कहा कि आज से हम सत्य का आग्रह करेंगे, हम झूठ नहीं बोलेंगे, हम सत्य का सहारा लेंगे, हम जेल में कोई रियायत नहीं मांगेंगे, हम कोई हिंसा नहीं करेंगे, हम सत्याग्रह में नियमों का पालन करेंगे, आप देखेंगे इस देश में जिस तरह राजनीतिक आंदोलन हो रहे हैं, कितनी हिंसा हो रही है, सार्वजनिक बसों को जला देना। बापू इसके समर्थक नहीं थे।

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नमक ना हिंदू था ना मुसलमान था

उनके हिंदुस्तान में आने के बाद आजादी के संघर्ष का स्वरूप बदला। बापू के तीन आंदोलन बड़े जबरदस्त रहे जिन्होंने पूरे भारत में फिर से जवानी ला दी । आजादी के आंदोलन को जवानी के जोश से भर दिया । उनका नमक आंदोलन था । वह प्रकृति प्रदत्त अधिकार वायु और रोशनी के साथ ही नमक के अधिकार को लेकर था। नमक ना हिंदू था ना मुसलमान था। वह उन्होंने उस समय देश को यह संदेश दिया कि यह समुद्र हमारा है यह देश हमारा है और नमक बनाने के लिए हमें अंग्रेजों को टैक्स देना पड़े । उन्होंने इसके लिए आंदोलन शुरू किया और वह 132 किलोमीटर दांडी गए तो एक अंग्रेज महिला ने कहा कि क्या मुठ्ठी भर सोडियम क्लोराइड के लिए लोग लड़ रहे हैं मैं तो इन्हें खरीद कर दे सकती हूं । इतना घमंड था उसमें । लेकिन एक ब्रिटिश कमांडर था उसने कहा कि बापू को साबरमती आश्रम में गिरफ्तार कर लेना चाहिए था उन्हें जो 132 किलोमीटर चलने दिया । उसने एक जीते हुए जनरल को अपनी जीती हुई भूमि पर कब्जा करते हुए दिखाया है।

बापू जब दांडी मार्च में निकले तो एक-एक लोगों से मिले और उन्होंने नव क्रांति कर दी. इसने हिंदुस्तानियों को भी अंग्रेजों को हराने का मंत्र दिया और यह आत्मविश्वास पैदा किया कि वह अपना अधिकार हासिल कर सकते हैं। नमक के बारे में उन्होंने पहले ही सोच लिया था। पोरबंदर में वह समुद्र के किनारे बैठे थे तो उन्होंने सोच लिया था कि हमें नमक का अधिकार लेना होगा। दांडी मार्च से पहले भारत के आजादी आंदोलन में जमीदार और बड़े लोग शामिल थे लेकिन इस आंदोलन के बाद इसमें आम आदमी जुड़ा और उसमें अंग्रेजों को पराजित करने का जज्बा पैदा हुआ। हम लखनऊ वाले बहुत खुश होते हैं कि 1916 में बापू लखनऊ आए।

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वह चंपारण चलें वहां उनकी जरूरत है

मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक हुई। तब तक हिंदू मुस्लिम बटे नहीं थे अंग्रेज इन्हें तोडऩे में कामयाब नहीं हुए थे और तब बिहार के एक राजकुमार शुक्ला है और उन्होंने लखनऊ में आकर बापू से मुलाकात की। उनसे कहा कि वह चंपारण चलें वहां उनकी जरूरत है। चंपारण का उदाहरण एक गजब का उदाहरण था जो दक्षिण अफ्रीका के बाद ऐसा आंदोलन बना जिसमें सीधी भागीदारी आम आदमी की थी। यह बहुत दुखद बात है कि बापू के बारे में भारत में किताबों में जो पढ़ाया जाता है वह कई निर्जीव तरीके से है गद्य की तरह से पढ़ाया जाता है । यह गद्य नहीं, पद्य है। यह भारतीय जंगे आजादी एक कविता है। किसान आंदोलन के बारे में हम लोग सोचते हैं ।

गेहूं, धान,ज्वार, बाजरा यह सब जरूरी फसलें हैं इनकी जरूरत हर आदमी को है। गन्ना और नील यह सब कैश क्रॉप हैं इनसे उद्योग का विकास होता है। जब गांधी जी चंपारण पहुंचे तो उनके विरोध करने पर अंग्रेजों ने कहा कि आप जुर्माना दीजिए । उन्होंने कहा कि मैं जुर्माना नहीं दूंगा। तो अंग्रेजों ने कहा कि हम आप को जेल भेज देंगे। उन्होंने कहा कि आप जेल भेज दीजिए तो अंग्रेज डर गए। यह पहली बार लोगों ने देखा कि अंग्रेज भी बापू के जेल जाने से डरते हैं. पहले लोगों को अनाज उत्पादन का अधिकार नहीं था 1944 में जब बंगाल में हजारों लोग मरे पाए गए थे भूख से । उनके पेट की आंतें चिपकी मिलीं तो उसकी वजह था देश का बहुत सारा अनाज विदेश भेज दिया गया था सैनिकों के लिए और भारत में लोगों को अपनी जरूरत के लिए अनाज उगाने की छूट नहीं थी. शर्म आती है आज कुछ लोगों पर कि चंपारण का क्रांतिकारी किसान नेता बापू ,आप उसके मूर्ति तोड़ेंगे । बापू से बढक़र किसान नेता कोई दूसरा इस देश में नहीं है । बिहार की भुखमरी में बंगाल की भुखमरी में हाल यह रहा कि आप वह अनाज उगा नहीं सकते जिस की आपको जरूरत है । आपको केवल वही अनाज उगाना होगा जो अंग्रेज चाहते थे।

हम अपना कपड़ा खुद बनाएंगे-बापू

बापू के सूत कातकर कपड़ा तैयार करने का प्रकरण कुछ ऐसा है कि दक्षिण भारत में कृष्णा सदानीरा नदी है। वहां बापू गए थे उन्होंने देखा कि नदी के पास एक खेत में किसान काम कर रहा है और उसने अपने शरीर पर केवल एक घुटने तक धोती पहन रखी है। तो बापू ने देखा कि एक औसत भारतीय के पास नाभि से लेकर घुटने तक का ही कपड़ा है इससे ज्यादा बड़ा कपड़ा नहीं है तो बापू ने कहा कि हम अपना कपड़ा खुद बनाएंगे। तकले और चर्खे के आधार पर उन्होंने अंग्रेजों के टेक्सटाइल एंपायर को तोड़ दिया । उसके बाद जब खुद सूत कातना, चरखा चलाना और अपना बुना हुआ खादी का कपड़ा बापू ने पहना, पूरे देश ने पहना तो उन्होंने देशवासियों को ऐसा हथियार दिया जिसने अंग्रेजों को हरा दिया।

आंध्र प्रदेश में एक तेलुगू भाषी छोटा बच्चा बापू के पास गया उसने कहा कि मेरी मां कहती है कि आप के लिए वह एक कुर्ता- पाजाम सिल देंगी । तो बापू ने जवाब दिया कि ठीक है मैं तुम्हारी मां का सिला कुर्ता-पाजाम पहन लूंगा लेकिन मैं अकेला नहीं हूं। 40 करोड़ भारतीय हैं और उन्हें सब के लिए कुर्ता पजामा बनाना होगा। क्या इतने कुर्ता पजामा सिल पाएंगी । तो मैं तब तक नहीं पहनूंगा जब तक कि हर भारतीय को को पूरा कपड़ा नहीं मिल जाएगा। वह जन आंदोलन की शुरुआत थी।

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ऐसा था ढाके का मलमल

बापू ने कपड़ों और नमक के बारे में भारत को स्वावलंबन का मंत्र आजादी के पहले ही दे दिया था। लोहिया ने जो दाम बांधों की बात की थी वो केवल इसलिए कि जो पांच-दस प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो विलासिता पर खर्च करते हैं। उस पर रोक लगनी चाहिए। बापू ने विदेशी कपड़ों को आग लगाना शुरु क्यों किया। बापू ने कहा कि जब लोग विदेशी कपड़ा मंगा लेंगे तो अपने उद्योगों को सहारा नहीं मिलेगा। ढाके के मलमल का क्या हुआ । औरंगजेब की बेटी जब सात परत में मलमल की साड़ी लपेटकर औरंगजेब के सामने पहुंची तो उसने कहा कि तुमने कपड़े क्यों नहीं पहने हैं। जाओ पूरे कपड़े पहन कर आओ। ऐसा था ढाके का मलमल जिसे तैयार करने वाले कारीगरों के अंग्रेजों ने नाखून कटवा दिए । क्योंकि वह अपने नाखून की मदद से मलमल तैयार करते थे।

मुझे इस मौके पर भगत सिंह की याद आती है कि कई लोगों ने दुष्प्रचार किया कि भगत सिंह और बापू आपस में साथ नहीं थे, विरोधी थे. यह पूरी तरह झूठ बात है। बापू ने भगत सिंह के बारे में कहा था जो किसी ने नहीं कहा कि मैं भगत सिंह को सलाम करता हूं कि उस आदमी ने मौत पर जीत पाली है...यह कहते हुए अत्यंत भावुक हो उठे राव साहब और भर्राये गले से बोले बापू के बारे में दुष्प्रचार करने वाले आज कहते हैं कि बापू ने माफी नहीं मंगवाई । वह बताते हैं कि कई जगह है जहां विदेशी कपड़ों को जलाने में अंग्रेजों और मुस्लिमलीग के गुंडों ने सत्याग्रहियों के साथ बदतमीजी की, बदसलूकी की। तब भगत सिंह और उनके साथी लोग कानपुर में उतरे और मार कर उन गुंडों को भगाया । तो यह हिंसा नहीं थी आत्मरक्षा थी। भगत सिंह ने गांधी का साथ दिया।

अन्नदाता देश का भाग्य विधाता

कपड़ों के अलावा बापू ने देश को अन्न उत्पादन में भी स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया। उनकी दूरदृष्टि का परिणाम है कि बाद में हरित क्रांति आई और देश का अन्नदाता देश का भाग्य विधाता बना। इस देश का दुर्भाग्य मुस्लिम लीग है। बापू की दूरदृष्टि थी कि जब तक हिंदू और मुसलमान दोनों एक साथ नहीं आएंगे तब तक हम अंग्रेजों से लड़ नहीं सकते हैं। अंग्रेजों ने तुर्की में खलीफा के पद को खत्म कर दिया तो बापू ने देखा कि भारत का मुसलमान ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है इसलिए उन्होंने खिलाफत का समर्थन किया ।

कई कम पढ़े लिखे लोग यह कहते हैं कि बापू ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन कर भारत के आजादी आंदोलन को कमजोर कर दिया वह नासमझ है । वह नहीं जानते हैं कि बापू ने बेपढ़े-लिखे धार्मिक लोगों की भावनाओं के साथ खुद को जोडक़र और उन्हें आजादी के आंदोलन से जोड़ा । बापू ने जगाया मुसलमानों को फिर क्या हुआ कि आगे लोग मोहम्मद अली जिन्ना ऐसे लोग आ गए जिन्होंने अंग्रेजों का खेल खेलते हुए मुसलमानों को हिंदुओं से अलग किया। मौलाना शौकत अली व मौलाना मोहम्मद अली जो कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे उन्होंने गांधी से कहा कि आप हम लोगों के साथ हैं । हम अपील करना चाहते हैं कि आज से देश में गौवध नहीं होगा। कोई मुसलमान गाय का मांस नहीं खाएगा तो बापू ने कहा नहीं यह वक्त नहीं है। वक्त आएगा तो हम गौ मांस के खिलाफ अभियान करेंगे अभी तो हम आपके संघर्ष में आपके साथ हैं। ऐसी राजनीतिक ईमानदारी किसी जननायक में बाद में देखने को नहीं मिली।

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बापू जिंदा हो गए

इसके बाद दूसरा उदाहरण आया पूना पैक्ट का । आजकल के अंबेडकरवादी दलित लोग फिर विकृति करते हैं। बापू ने क्या किया था लोग अध्ययन करें कि पूना पैक्ट क्या है । ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड दुर्भाग्य से सोशलिस्ट प्राइम मिनिस्टर था । लोहिया और जयनारायण का गुरु था । उसने प्रस्ताव किया कि भारत में चुनाव आने वाले हैं तो पांच तरह के वोटर होंगे। हिंदू, मुसलमान, सिख ,ईसाई और दलित। अगर वह कम्युनल अवार्ड लागू होता तो आज भारत पांच हिस्सों में बंट चुका होता।

बापू ने मुसलमानों को दलितों को सभी को रोकने की कोशिश की लेकिन अंबेडकर नहीं माने तब बापू ने यरवदा जेल में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की । इस भूख हड़ताल में बापू मर गए थे तब बंगाल के विधान चंद्र राय ने बापू का निरीक्षण किया और उन्होंने ऐलान किया कि बापू का निधन हो चुका है । मैं भगवान पर भरोसा करता हूं । ईश्वर ने ऐसा किया कि बापू जिंदा हो गए। तब अंबेडकर ने समझौता किया। उन्होंने बापू से पूछा कि क्या होना चाहिए तो बापू ने कहा कि दलित हिंदुओं के हिस्से हैं उन्हें अलग नहीं किया जा सकता तो यह पूना पैक्ट था अगर बापू ने ऐसा ना किया होता तो केवल 3 स्वर्ण जातियां ही भारत में हिंदू होती है अपने ही देश में हिंदू कुल मिलाकर 18 से 20 पर्सेंट होते और आजादी का आंदोलन उसी समय पटरी से उतर जाता।

बापू ने देश उत्थान के लिए काम किया

आज राजनीतिक दल किसी आर्थिक या सामाजिक मांग को लेकर आंदोलन करते हैं लेकिन बापू देश के सर्वांगीण विकास के लिए आंदोलन चलाते थे बेसिक तालीम शिक्षा के बारे में जन स्वास्थ्य के बारे में राजनीतिक आजादी के बारे में ग्राम पंचायत के बारे में बोलने की आजादी के बारे में बापू का एक सर्वांगीण दृष्टिकोण था सेवा गृह में क्या किया। बुनियादी तालीम चलाया । डॉक्टर जाकिर हुसैन उसके इंचार्ज थे । इस प्रकार अगर आप गौर करें केवल एक आंदोलन नहीं बापू ने देश उत्थान के लिए काम किया। यहां दुखद स्थिति क्या है कि बापू ने जवाहरलाल नेहरू को एक चिठ्ठी लिखी कि आप प्रधानमंत्री के तौर पर जो योजना बना रहे हैं देश के लिए । यह ठीक नहीं है। यह सब चिट्टियां हैं यह सब दस्तावेज के तौर पर मौजूद हैं कि बापू ने कहा कि हमें देश के सर्वांगीण विकास के बारे में गौर करना होगा। बापू की बात नहीं मानी गई इसका नतीजा क्या हुआ कि आज भी देश के 70 साल बाद इस देश के प्रधानमंत्री को गांव में शौचालय बनाने के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है यह सब 1947 में बनना चाहिए था तब बापू की बात नहीं मानी गई।

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बापू ने सबसे पहले लोगों का अहंकार खत्म किया

राजनीतिक शास्त्र का छात्र होने के नाते मेरा यह मानना है कि बापू अपने वक्त से बहुत आगे थे । चौरी -चौरा में क्या हुआ जब लोगों ने चौकी को जला दिया तो बापू ने आंदोलन वापस ले लिया क्यों भारत तब अहिंसा के लिए तैयार नहीं था । जिस प्रकार सबको धीरे-धीरे बाद में लोगों ने समझा। डॉ राधाकृष्णन ने बहुत अच्छी बात कही है कि अभी भारत तैयार नहीं हुआ । विचारों के लिए सुकरात को जहर दिया गया । डेविड थोरो को जेल में रखा गया । ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया। बापू को भी मरना होगा। उनकी मौत से संदेश जाएगा । अगर बापू दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 2015 को लौटकर भारत न आते तो भारत के आजादी का कैलेंडर और लंबा खिंचता। यहां एक और बात बताएं आपको बापू ने लोगों का गर्व तोड़ा । मैंने सेवा आश्रम में देखा कि जो भी बड़े-बड़े नेता आ गए थे , पट्टाभिसीतारमैया, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य कृपलानी सभी लोग वहां जाकर आश्रम में पाखाना साफ करते थे । तो बापू ने सबसे पहले लोगों का अहंकार खत्म किया। ऊंच-नीच का भेद खत्म किया और लोगों को भारतीय बनाया।

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वरिष्ठ पत्रकार श्री के विक्रमराव ने महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से वापसी को लेकर अखिलेश तिवारी के साथ बातचीत में जो कहा, वह जस का तस प्रस्तुत है।

( वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव के साथ अखिलेश तिवारी की बातचीत)

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