×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

चुनाव की विविधा ! सियासत में दांवपेंच !!

Karnataka Assembly Election 2023: उसी लहजे में वे कह देतीं कि “सोनिया गांधी नागिन है।” शाब्दिक हिसाब बराबर हो जाता। जोड़ीदारी भी। मगर मोदी का खड़गे को जवाब उम्दा व्यंग है। खड़गे बोले कि वे कांग्रेस सरकार की गारंटी लेते हैं, मतलब पक्का वादा।

K Vikram Rao
Published on: 29 April 2023 1:38 AM IST
चुनाव की विविधा ! सियासत में दांवपेंच !!
X
Karnataka Assembly Election 2023 (Pic: Social Media)

Karnataka Assembly Election 2023: भाजपाइयों में व्यंगबोध ओझल हो रहा है। कल 27 अप्रैल, 2023 जब कर्नाटक चुनाव अभियान में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने नरेंद्र मोदी को नाग कह दिया तो बिफर कर निर्मला सीतारमन ने बवाल मचाया। अरे ! उसी लहजे में वे कह देतीं कि “सोनिया गांधी नागिन है।” शाब्दिक हिसाब बराबर हो जाता। जोड़ीदारी भी। मगर मोदी का खड़गे को जवाब उम्दा व्यंग है। खड़गे बोले कि वे कांग्रेस सरकार की गारंटी लेते हैं, मतलब पक्का वादा। व्यापारी प्रदेश गुजरात के मोदी बोले : “आपकी तो वारंटी ही खत्म हो गई। गारंटी का सवाल कहां रहा है ?” लेकिन प्रतीत होता है कि अटल बिहारी वाजपेई के महाप्रस्थान के साथ ही भाजपा में शुष्कता, कर्कषता उग आई है। कटाक्ष, फबती, छींटाकशी, दिल्लगी, ठिठोली, चुटकियां सब खत्म हो गए।

अटलजी का ही एक उदाहरण है। तब (मई 1975) में गुजरात विधानसभा का मध्यावर्ती निर्वाचन हो रहा था। कांग्रेस बनाम अन्य के बीच संग्राम था। अटल बिहारी वाजपेई ने तब बरगद के वृक्ष (सोशलिस्ट पार्टी) के लिए वोट मांगे, तो जॉर्ज फर्नांडिस दीपक (जनसंघ) के लिए। दोनों मिलकर सूत-कातती महिला (संस्था कांग्रेस) के लिए। उस समय अहमदाबाद के रूपाली सिनेमा के सामने ही एक जनसभा हुई। जनता मोर्चा वाली, 1977 की जनता पार्टी का प्रथम अवतार थी। अटल जी के भाषण के अंत में मैंने पूछा : “कुछ संजय गांधी की मारुति छोटी कार्य योजना पर बोलिए।” तब मैं “टाइम्स ऑफ इंडिया” का रिपोर्टर था। अपने चिरपरिचित शैली में अटलजी बस तीन शब्द बोले : “मां रोती है।” सारे श्रोता हंस दिये। यह पैना, अर्थभरा कटाक्ष था। मिलता जुलता एक और वाकया हुआ।

जब 2014 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस की संख्या घट कर 44 रह गई थी। तो एक भाजपायी नेता ने कहा : “सिर्फ एक वोल्वो लायक रह गये।” इस बस में 45 ही बैठ सकते हैं। उसी चुनावी दौर में कांग्रेस अध्यक्षा तथा प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी अभियान पर गुजरात आईं। एक सभा में बोलीं : “मैं गुजरात की बहू हूं।” आधार था कि उनके पति स्व. फिरोज जहांगीर गांधी दक्षिण गुजरात के नवसारी शहर से इलाहाबाद बसने आए थे। इस पर सोशलिस्ट नेता मधु लिमए ने पूछा : “तो आप रोम जाएंगी चुनाव प्रचार में, तो दावा करेंगी कि आप इटली की सास हैं ?” जसपाल भट्टी इसीलिए कहा करते थे : “व्यंग बड़ा गंभीर विषय है। दिमाग की कारीगरी।”

हास्य, विडंबना, अतिशयोक्ति या लोगों की मूर्खता और कुरीतियों को उजागर करने और उनकी आलोचना करने के लिए उपहास का ही उपयोग व्यंग में होता है। “राजनीतिक परिदृश्य में तो व्यंग्य में विडंबना उग्रवादी होती है”, साहित्यिक आलोचक नॉर्थरोप फ्राइ ने कहा था। उदाहाणार्थ (मनमोहन सिंह के दौर में) कांग्रेसी मंत्रियों से घरेलू नाई अक्सर पूछते थे स्विस बैंक और काले धन के बारे में। एक बार किसी मंत्री ने डांटा, तो नाई बोला : “सर आपके रोयें खड़े हो जाते हैं तो उस्तुरा चलाने में चुभीता होता है।” किसी गुजराती ने बंगाली से पूछा कि प्रधानमंत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री में क्या फर्क है ? जवाब में बंगाली बोला : “बस सूती साड़ी और रेशमी कुर्ता पैजामा का।” भोपाल के एक पत्रकार ने दिग्विजय सिंह की तुलना गांधार नरेश शकुनी से की थी क्योंकि दोनों खानदानी सत्ता के हिमायती रहे और युवराज को राज दिलाने के पक्षधर रहे।

यूपी के एक वोटर से एक मलयाली पत्रकार ने पूछा कि राहुल गांधी वायनाड में जीते, अमेठी से हारे क्यों ? तो जवाब मिला : “यही तो अंतर है साक्षरता में और समझ में।” किसी ने पूछा कि मुख्यमंत्री बनने पर भगवंत सिंह मान में क्या परिवर्तन दिखा ? जवाब था : “पहले वे जोकर के रोल में मजाक करते थे। अब मुख्यमंत्री के रूप में।” ऑस्कर फिल्म एवार्ड के लिए एक भारतीय राजनेता का नामांकन मांगा गया। सरदार मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित हुआ। कारण ? वे दस वर्ष तक प्रधानमंत्री का अभिनय करते रहे। तो किसी ने पूछा कि राजनेता और डाइपर (शिशुओं वाला) में क्या समानता है ? बताया गया कि दोनों को बदलते रहना चाहिए। किसी सुनसान स्थान पर एक रहजन ने किसी व्यक्ति को छूरा दिखाकर कहा : “सारे रूपये दे दो।” वह व्यक्ति बोला : “मैं सांसद हूं।” तो उस लुटेरे ने कहा : “तो अब तक हमसे लूटे गए रूपये वापस करो।”

श्रेष्ठतम राजनीतिक कटाक्ष था अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर। वे बड़े रूपवान और पौरुषग्रंथि वाले रहे। दुबारा नामांकन कर रहे थे। एक सर्वेक्षण में महिलाओं से पूछा गया कि “क्लिंटन के साथ कौन-कौन यौनाचार करना चाहेंगी।” नब्बे प्रतिशत महिलाओं का (इस मोनिका लेविंस्की के प्रेमी के बारे में) जवाब था : “अब दुबारा नहीं।”

कर्नाटक के ताजा आरोप-प्रत्यारोप के संदर्भ में एक खासियत है। कांग्रेस और भाजपा के विचार में विलक्षण समानता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही बने रहें। पार्टी में वंशावली बनी रहेगी। भाजपा के लिए भी माकूल रहेगा। दूसरा कूटनीतिक वृतांत। रोमानिया के निर्दयी कम्युनिस्ट तानाशाह निकोलाई चेचेस्कू फ्रेंच अभिनेत्री ब्रिगेटा वार्दोत के गहरे इश्क में पड़ गए। एक आत्मीय क्षण में अभिनेत्री ने अर्चना की : “राष्ट्रपति जी आप अपनी जनता को विदेश जाने की अनुमति दे दीजिए।” इस पर चेचेस्कू बोले : “प्रिये तुम कितनी रोमांटिक हो ! तुम्हारी इच्छा है कि रोमानिया में केवल तुम और मैं ही एकाकी रहें ?”

अब कर्नाटक चुनाव के संदर्भ में एक और वाकया। तब जोसेफ स्टालिन का युग था। एक रूसी मतदाता ने किसी अमेरिकी वोटर से कहा : “तुम्हारे देश में तो तुम लोगों को महीनों लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है चुनाव परिणाम के लिए। सोवियत रूस में हम मतदान के पूर्व ही जान जाते हैं कि परिणाम क्या है।” अर्थात भारत में अभी लोकतंत्र हैं, परमात्मा उसे सलामत रखे !



\
K Vikram Rao

K Vikram Rao

Next Story