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गलवान पर मोदी दुविधा खत्म करें

मामले को सुलझाएं वरना जो जनता आज चीन के खिलाफ उठ खड़ी हुई है, वह कल मोदी के खिलाफ उठ खड़ी हो सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग इस समय जिस परेशानी को महसूस कर रहे हैं, क्या मोदी को उसका अंदाज है?

राम केवी
Published on: 23 Jun 2020 6:30 AM GMT
गलवान पर मोदी दुविधा खत्म करें
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

गलवान घाटी में हुए हत्याकांड पर विरोधी नेता हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे आरोप लगा रहे हैं तो चीनी अखबार उनके संयम की तारीफें पेल रहे हैं। कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने कहा है कि यह 'नरेन्दर' मोदी नहीं, 'सरेन्डर' मोदी है याने मोदी ने चीनियों के आगे आत्म-समर्पण कर दिया है।

मोदी ने जान-बूझकर भारतीय जमीन चीन को सौंप दी है। राहुल की इस जुमलेबाजी पर मुझे खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि आस-पास बैठे किसी आदमी ने जैसी चाबी भरी, गुड्डे ने वैसा नाच दिखा दिया। हां, यह तो मानना पड़ेगा कि 'नरेन्दर' को 'सरेन्डर' कहकर तुकबंदी में राहुल ने मोदी को मात कर दिया है।

नेहरू जैसी अकड़ भी नहीं दिखा पाए मोदी

बेहतर होता कि हमारे नेता सार्वजनिक रुप से इस तरह के बयान देने की बजाय इस राष्ट्रीय दुख और अपमान की घड़ी में घर में बैठकर समयानुकूल सलाह-मशविरा करते और आगे की रणनीति बनाते। यदि मोदी भी चाहते तो जवाहरलाल नेहरु की तरह अकड़ दिखा सकते थे।

जैसे नेहरु ने 1962 में श्रीलंका-यात्रा पर जाते हुए कहा था कि मैंने भारतीय फौजों को आदेश दे दिया है कि चीनियों को अपनी सीमा में से मार भगाएं। ऐसा आदेश वर्तमान सरकार दे देती तो उसके परिणाम क्या होते ? वैसा आदेश जारी करने की बजाय मोदी ने सारी कूटनीति का बोझ अपने ही कंधों पर डाल लिया है।

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उन्होंने कह दिया कि भारत की सीमा में कोई घुसा ही नहीं। भारत की जमीन पर किसी का भी कब्जा नहीं हुआ है। यदि ऐसा ही है तो यह सारा बवाल हुआ ही क्यों है ? इस संबंध में 16 जून से ही मैं कई सवाल कर चुका हूं।

दुविधा खत्म कर आगे बढ़ें मोदी

उन्हें अब दोहराने की जरुरत नहीं है लेकिन उन सवालों में से एक का जवाब तो रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने दे दिया है। उन्होंने फौज से कहा है कि अब वह सीमांत पर देख-रेख और बातचीत के लिए जाएं तो निहत्थे न जाएं। हथियारबंद होकर जाएं।

चीनियों को भी समझ में आ गया होगा कि अब वे 15 जून की रात दुबारा दोहरा नहीं पाएंगे लेकिन मोदीजी का क्या होगा ? वे तो नेहरुजी से भी ज्यादा फंस गए। नेहरु ने 1962 में इतनी हिम्मत तो दिखाई कि चीनियों को निकाल बाहर करने का आदेश उन्होंने दे दिया था, यहां तो बात करने की भी हिम्मत का अभाव है।

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चीन के सरकारी अखबारों और विदेश नीति विशेषज्ञों ने गलवान-कांड पर मोदी की नरमी और संयम की तारीफ की है। अब भी मौका है कि मोदी पहल करके इस अत्यंत दुखद कांड से आगे बढ़ें। अपनी दुविधा को खत्म करें। या तो जवाबी हमला करें या शी चिन फिंग से बात करें!

मामले को सुलझाएं वरना जो जनता आज चीन के खिलाफ उठ खड़ी हुई है, वह कल मोदी के खिलाफ उठ खड़ी हो सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग इस समय जिस परेशानी को महसूस कर रहे हैं, क्या मोदी को उसका अंदाज है?

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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