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अस्पताल की इमरजेंसी में भी रोगी को कानून से प्राप्त है जीवन रक्षा अधिकार
कोर्ट ने कहा है कि भारत वेलफेयर स्टेट है और वेलफेयर स्टेट में सरकार का कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखे।स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए व्यक्ति को जरूरी स्वास्थ्य सुविधा यानी अस्पताल मुहैया कराएं वर्ना यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।
नंदिता झा
कोरोना महामारी की इस विषम परिस्थिति ने इस बारे में सोचने के लिए जरूर मजबूर कर दिया कि भारत में बुलेट ट्रेन और चांद पर जाने से ज्यादा जरूरी स्वास्थ्य केन्द्रों की समुचित व्यवस्था करने की है। सिविल हॉस्पिटल और स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था को देख कर मरीज़ों में भय पैदा हो गया है और उनका मनोबल गिर चुका है।वे अपना इलाज करवाने से कतराने लगे है।निजी अस्पताल इलाज के नाम पर मुँह मांगी कीमत वसूलने का काम करने लगे है। ऐसे में सामान्य वर्ग के लोगों के लिए परिस्थितियां विषम होती जा रही है।
हाईकोर्ट ने हॉस्पिटल को लगाई फटकार
गरीब वर्ग भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों से वंचित रह जाते है। गुजरात हाईकोर्ट ने वहां के सिविल हॉस्पिटल को "काल कोठरी' की संज्ञा देते हुए प्रशासन को फटकार लगाई और कहा कि "हम कभी भी औचक निरीक्षण के लिए आ सकते हैं। इसके लिए प्रशासन तैयार रहे। सिविल हॉस्पिटल की बेहद खराब व्यवस्था को लेकर की गयी याचिका की सुनवाई के दौरान ये कहा गया।
कोविड-19 के दौरान कई मामले ऐसे भी आए जब आपातकालीन स्थिति में भी मरीज़ों और गर्भवती महिलाओं को हॉस्पिटल ने एडमिट करने से मना कर दिया।जब कि 1992 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू हेल्थ के अंतर्गत भर्ती किये जाने को लेकर निर्देश जारी किए थे ।जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि इमरजेंसी और एक्सीडेंट केस में मरीजों को भर्ती करना अनिवार्य होगा साथ ही उनको एम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध तुरंत होनी चाहिए।कोई भी हॉस्पिटल यह कह कर मना नहीं कर सकता कि उनके पास तत्काल में बेड भर्ती करने के लिए नहीं था यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा।चाहे वे ज़मीन पर व्यवस्था कर ट्रॉली पर व्यवस्था करे लेकिन इमरजेंसी मामलों में तत्काल भर्ती कर इलाज करें।।
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अस्पतालों को निर्देश
कोर्ट ने कहा है कि भारत वेलफेयर स्टेट है और वेलफेयर स्टेट में सरकार का कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखे।स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए व्यक्ति को जरूरी स्वास्थ्य सुविधा यानी अस्पताल मुहैया कराएं वर्ना यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। 2005 में पर्वत कुमार केस में सरकारी अस्पतालों के साथ -साथ निजी अस्पतालों के लिए भी निर्देश दिए गए।
स्वास्थ्य का अधिकार मानवाधिकार है और डॉक्टर और मरीज के बीच का संबंध "कॉन्ट्रैक्ट ऑफ अटमोस्ट फेथ'" पर चलता है यानी डॉक्टर मरीज़ों के लिए भगवान का रूप होते है।ऐसे में डॉक्टरों द्वारा लापरवाही और व्यवसायीकरण पर ज़ोर दिये जाए तो वो मरीज़ों के हितों को नुकसान पहुँचाती है ।इस तरह की समस्या से बचाव के लिए डॉक्टर द्वारा किये गए इलाज को उपभोक्ता कानून में दी गयी परिभाषा' सेवा' की परिधि में लाया गया ताकि इलाज के दरम्यान की गई लापरवाही से मरीज़ों को सुरक्षा दी जा सके साथ ही होने वाले नुकसान के लिए मुआवजे का प्रावधान कर मरीज़ों के हितों की रक्षा की जा सके।
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2018 में मरीजों के हितों के लिए मानवाधिकार द्वारा 'चार्टर ऑफ पेशेंट राइट ' लाया गया जिसमें मरीज़ों के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में दिया गया।
मरीज़ों को पूरी जानकारी लेने का अधिकार
राइट टू इन्फॉर्मेशन के तहत मरीज़ों को पूरी जानकारी लेने का अधिकार दिया गया।
राइट टू रिकॉर्ड एंड रिपोर्ट्स का अधिकार दिया गया जिसमें भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज होने तक सभी तरह के रिपोर्ट और जानकारी मरीज़ को या रोगी के रख रखाव करने वाले यानी तीमारदार को देना अनिवार्य है।
राइट टू सेफ्टी एंड क्वालिटी का अधिकार दिया गया।
अस्पताल साफ सफाई का पूरा ख्याल रखे ,साफ पानी की सुविधा हो,समुचित सेनेटशन की व्यवस्था हो,ताकि मरीज़ों की सुरक्षा और ख्याल मरीज़ों का अधिकार है।
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राइट टू डिस्चार्ज के अंतर्गत किसी कारणवश अगर मरीज़ का देहांत हो जाता है तो उनके परिवार को या उनके रख रखाव करनें वालों को डेथ बॉडी दे दिए जाएं। पेमेंट आदि के कारण रोका न जाये।।
इस तरह से इस चार्टर ऑफ पेशेंट राइट में इस तरह के अधिकार दिए गए है जो मरीजों को जीवन रक्षा के साथ अस्पताल के अनिवार्य उपचार को सुनिश्चित करते हैं। वहीं दूसरी तरफ़ मरीज़ों के कर्तव्यों का भी विवरण दिया गया है।ताकि मरीज़ भी अपने कर्तव्य का निर्वहन कर खुद की सुरक्षा कर सके और अपने वातावरण को अनुकूल बना सके।
मरीज़ों को अस्पताल के परिसर को साफ और सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभानी होगी।
मरीज़ों को डॉक्टर के समक्ष बीमारी की जानकारी पारदर्शिता के साथ रखनी होगी।
मरीज़ों को अस्पताल में काम कर रहे कर्मचारियों को सम्मान देना होगा उनके साथ दुर्व्यवहार से बचना होगा।
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अस्पताल की संपत्ति की सुरक्षा करनी होगी।
अस्पताल प्रशासन और मरीज़ आपस मे परस्पर सामंजस्य स्थापित कर एक दूसरे के हितों की रक्षा कर सकते है।
बेहतर और स्वस्थ देश और समाज बनाने के लिए जरूरी है कि एक दूसरे के हितों की रक्षा की जाए और सभी के अधिकारों प्रति जागरुक होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया जाए।
(लेखिका विधिवेत्ता होने के साथ दिल्ली हाई कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता भी हैं।)