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किसानों की ताकत का राज: जानें झकझोर देने वाला सच, आखिर क्यों डटे हैं बॉर्डर पर
खुले आसमान तले गुजार देने वाले किसान अपने घरों से फालतू नहीं हैं जो खेती बाड़ी घर बार छोड़कर अपनी हड्डियों को गला रहे हैं। ये संघर्ष कर रहे हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
कोरोना महामारी और कड़ाके की शीतलहर को खुले आसमान तले गुजार देने वाले किसान अपने घरों से फालतू नहीं हैं जो खेती बाड़ी घर बार छोड़कर अपनी हड्डियों को गला रहे हैं। ये एक वाजिब बात को लेकर संघर्ष कर रहे हैं जिसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है या फिर वह जवाब देना नहीं चाहती है। बिका हुआ गोदी मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने की पुरजोर कोशिश में लगा है लेकिन वह कुछ भी नहीं कर पा रहा है ऐसे में एक सवाल उठना लाजिमी है कि किसान की ताकत क्या है। किसान कितने शक्तिशाली या कमजोर हैं। पूरी सरकारी मशीनरी मिल कर किसानों को बरगला नहीं पा रही तो कितने मजबूत हैं किसान।
किसानों की ताकत के बारे में जानें
किसानों की ताकत के बारे में अगर आप जानना चाहेंगे तो पूरा देश किसानों का कर्जदार है। आज की तारीख में 20-25 रुपये किलो के हिसाब से गेहूं का पिसा आटा लेकर एक आम आदमी अपना और अपने परिवार का पेट भर लेता है। लेकिन जनता ये समझ रही है कि जब यही गेहूं का आटा सौ रुपये किलो होगा तो कितने लोग अपना पेट भर पाएंगे। भूखों मर जाएगी बड़ी आबादी। यही बात हर कृषि उपज पर लागू होती है।
इसलिए सब हैं अन्नदाता के कर्जदार। उसकी इस पीड़ा को देश देख रहा है। समझ रहा है आसन्न संकट को जिसके बीच की दीवार हैं किसान। यही किसान देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर बीते दो से अधिक महीने से लाठी डंडे खाकर भी भारी तादाद में जमे हुए हैं।
26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का डेरा
किसान 26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। ऐसे में कुछ लोगों के जेहन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि खेतीबारी का काम छोड़ सड़कों पर उतरे इन किसानों के आंदोलन को ताकत रूपी ईंधन आखिर कहां से मिल रहा है। इस सवाल पर तरह-तरह के कयास लगाए जा चुके हैं।
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मगर, सचाई यह है कि किसानों का जज्बा और भाईचारा ही इस आंदोलन को ताकत दे रहा है। चाहे पंजाब का किसान हो या हरियाणा का या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश। किसान के लिए उसका गांव उसका कुटुम्ब होता है।
जाट और गुर्जर परिवारों के लड़के करते हैं खेती या सेना में भर्ती
किसान खेती इसलिए करता है क्योंकि वह और कुछ नहीं कर सकता। किसी की चाकरी करना उसे कबूल नहीं। उत्तर भारत के जाट और गुर्जर परिवारों में या तो खेती किसानी होती है या फिर इन के कसरती लड़के सेना या पुलिस में जाते हैं।
हरियाणा पंजाब या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कहीं भी चले जाएं शाम को खेतों को निहारते किसान और कच्चे-पक्के रास्तों पर दौड़ते जवान नजर आएंगे। यहां किसानों के बेटे सेना या पुलिस में जाने की तैयारी करते हैं। और भर्ती होते हैं।
आंदोलन से जुड़े एक किसान का कहना है कि हम खेतों में अपनी ड्यूटी करते हैं और हमारे बच्चे फौज में। ये जो सरकार ने किसानों के हक पर डाका डालने की कोशिश की है ये सरकार को बहुत महंगी पड़ सकती है। फौज में भी तो किसान के ही बेटे हैं। यदि उन्होंने हथियार डाल दिए तो क्या होगा। कौन इस देश को बर्बाद होने से रोक पाएगा? जिस जवान के बाप, भाई, ताऊ चाचा आत्महत्या कर लेंगे, क्या उसमें सेना के लिए हथियार चलाने का आत्मबल रह पाएगा?’
खेती में आमदनी ही नहीं, तो कोई मेहनत क्यों
एक दूसरा किसान कहता है ’जब खेती में आमदनी ही नहीं बचेगी तो कोई मेहनत क्यों करेगा? खेती की आमदनी कम होगी तो किसान का बेटा खेत में जाने के बजाए अपराध की ओर जाएगा।’
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आंदोलन चलाने के लिए धन कहां से मिल रहा है तो एक किसान ने बताया कि हर किसान दिल्ली आंदोलन में अपना योगदान दे रहा है। गांवों से जब कोई दिल्ली आंदोलन के लिए रवाना होता है गांवों के लोग उनके साथ अपने सामर्थ्य के मुताबिक अपना आर्थिक योगदान भी भेजते हैं। इन किसानों के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है। वह शान से कहते हैं हमारे बेटे कमा रहे हैं। वह घर सम्हाल रहे हैं हमें खेती बचानी है।
कुछ किसान कहते हैं कि सरकार चाहे जितना खींच ले। किसानों का मनोबल नहीं तोड़ पाएगी। आंदोलन मांगें पूरी होने तक चलता रहेगा।
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