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सच किसान आंदोलन का: जाट बनाम गुर्जर नहीं देश की आवाज, आँखें खोल देगी तस्वीर
किसान आंदोलन की सफलता का राज है जाटों और गुर्जरों के जातीय गांव। अन्य जातियों के किसान ब्राह्मण और ठाकुर और अन्य जातियों में बंटे हैं। लिहाजा एक जुट नहीं हो पाते।
रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्ली। किसान आंदोलन एक बार फिर जम चुका है। आंदोलन से गुर्जरों को अलग करने की सरकार की कूटनीति फ्लॉप हो गई है। आखिर सरकार लगातार झूठ बोलते हुए किसानों के इस आंदोलन को जाट और गुर्जरों का आंदोलन क्यों बता रही है। क्यों कह रही है कि पूरे देश के किसानों का ये आंदोलन प्रतिनिधित्व नहीं करता। सच्चाई आँखें खोल देगी। इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि जाट और गुर्जर दोनों खेती किसानी से अपनी आजीविका चलाने वाला समुदाय है। जाट- गुर्जर खेती नहीं करेगा तो सेना या पुलिस में जाएगा या फिर ड्राइवरी करेगा। सरकार को यह समझना होगा कि जाट उत्तर भारत की सबसे बड़ी और ताक़तवर जाति है।
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ये है किसान आंदोलन की कामयाबी का राज
किसान आंदोलन की सफलता का राज है जाटों और गुर्जरों के जातीय गांव। अन्य जातियों के किसान ब्राह्मण और ठाकुर और अन्य जातियों में बंटे हैं। लिहाजा एक जुट नहीं हो पाते।
हैरान करने वाली बात सरकारी दावों के विपरीत एक सर्वे के मुताबिक पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश यानि पश्चिमोत्तर राज्यों के 53 फीसदी किसान खेती-किसानी को मुनाफे का धंधा नहीं मानते हैं। जबकि यूपी और बिहार के 23 फीसदी किसानों के लिए ये घाटे का सौदा है। इन राज्यों से किसानी छोड़कर नौकरी की तलाश में देश में भटकने का प्रतिशत सबसे ज्यादा है।
खैर बात शुरू करने से पहले देश में खेती किसानी से जुड़ी जाटों की आबादी पर एक नजर डालते हैं। देश में मोटे तौर पर जाटों की जनसंख्या सवा आठ करोड़ बताई जाती है। वास्तविक जनसंख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
फोटो-सोशल मीडिया
चूंकि किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ज्यादा दिख रहे हैं तो इसकी वजह यह है कि पंजाब में 35 फीसदी सिख और तीन फीसदी हिन्दू यानी कुल 38 फीसदी जाट हैं। इसी तरह हरियाणा में 31 फीसदी हिन्दू, पांच फीसद सिख, एक फीसद विश्नोई और मुस्लिम्स जाट को मिलाकर 37 जाट हैं। जिनका मुख्य पेशा खेती किसानी है।
खेती किसानी को मुख्य आजीविका
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 17 फीसद हिन्दू, दो फीसद सिख दो फीसद मुस्लिम जाट को जोड़ें तो 21-22 फीसद जाट आबादी है। राजस्थान में 20 प्रतिशत हिन्दू, दो फीसद विश्नोई, दो फीसद सिख और एक फीसद अंजना जाट यानी 25 फीसद जाट हैं। ये सभी खेती किसानी को मुख्य आजीविका मानते हैं।
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अब बात करें अन्य राज्यों की तो दिल्ली में 10-12 फीसद जाट हैं। यही जाट इस समय दिल्ली में मोर्चा ले रहे हैं। मध्य प्रदेश (4-5% जाट), गुजरात ( 2% हिन्दू जाट + 3% अंजना जाट + 3% मुस्लिम्स जाट, फकईरानी जाट = 8-9% जाट), जम्मू और कश्मीर ( तीनो धर्मो के जाट = 7-8% जाट), उत्तराखंड (सिख जाट और हिन्दू जाट = 4-5% जाट) और इसके बाद अन्य राज्यों में बिखरे हुए जाट हैं।
जाट बहुत ताक़तवर
महाराष्ट्र में जाटों के 86 गांव हैं, आँध्रप्रदेश में 42 गांव (कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी यही से है)। जाट बहुल राज्य जिन्हे मीडिया भी जाटलैंड कहती है और जाट बहुत ताक़तवर हैं।
अगर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान को मिलाएं तो जाट आबादी 25 फीसदी से अधिक है। अब राजस्थानी जाट भी ताक़तवर होता जा रहा है इसीलिए राजस्थान को भी जाटलैंड कहा जाने लगा है। राजस्थान में जाटों की आबादी 1 करोड़ 55 लाख से अधिक है।
फोटो-सोशल मीडिया
गुर्जरों की बात करें तो
बात की जाए गुर्जरों की तो जम्मू कश्मीर में 2 लाख से 4 लाख, पंजाब में 9 लाख, हरियाणा में 14 लाख, राजस्थान में 78 लाख, गुजरात में 60 लाख, महाराष्ट्र में 45 लाख, गोवा में 5 लाख, कर्नाटक में 45 लाख, केरल में 12 लाख, तमिलनाडु में 36 लाख, आँध्रप्रदेश में 24 लाख, छत्तीसगढ़ में 24 लाख, ओडिसा में 37 लाख, झारखण्ड में 12 लाख, बिहार में 90 लाख, पश्चिम बंगाल में 18 लाख, मध्य प्रदेश में 42 लाख, उत्तर प्रदेश में 2 करोड़, उत्तराखंड में 20 लाख, हिमाचल में 45 लाख, असम में दस लाख गुर्जर हैं।
इसके अलावा सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल, नागालैंड और त्रिपुरा में एक से दो लाख गुर्जर हैं। मणिपुर व मेघालय में सात से नौ लाख के बीच गुर्जर हैं।
यूपी में सबसे ज्यादा गुर्जर
सबसे ज्यादा गुर्जर उत्तर प्रदेश में हैं सबसे ज्यादा नेता गुर्जर समुदाय से हैं। प. बंगाल में गुर्जरों का वर्चस्व है। राजस्थान में बीस फीसद आबादी गुर्जर है।
सवाल ये है कि इस सबके बावजूद सरकार किस मजबूरी में देश के किसानों के आंदोलन को पंजाब व हरियाणा का बता रही है।
खुद भाजपा में बेचैनी बढ़ती जा रही है।
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एक पूर्व विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किसान आंदोलन के लंबा खिचने से राजनीतिक चुनौतियां बढ़ रही हैं। जाट, गुर्जर, ओबीसी सहित तमाम जातियों के लोग किसानी से जुड़े हुए हैं और इसका संदेश जिस तरह देश में गांव-गांव फैल रहा है। वो आने वाले समय में बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है।
किसानों में मन में विपक्ष यह बैठाने में कामयाब रहा है कि इस कानून से उद्योगपतियों का भला होना है। किसान के दिमाग से यह बात निकल नहीं पा रही है और बीजेपी की छवि किसान विरोधी बनती जा रही है।
(फोटो: सोशल मीडिया)
भाजपा को लेकर किसानों में जबरदस्त गुस्सा
कृषि कानून के खिलाफ भाजपा छोड़ने वाले मनजिंदर सिंह कांग का कहना है कि दो दर्जन से अधिक भाजपा नेताओं ने पंजाब में पार्टी छोड़ दी है और वे अकाली दल में शामिल हो गए हैं।
किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है मार्च में जब आंदोलन शुरू हुआ था तभी यदि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों से तब वार्ता की होती तो किसानों को संशोधनों तक से संतुष्ट किया जा सकता था। उस समय कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टी इसमें नहीं कूदी थीं, लेकिन इसे न तो बीजेपी की प्रदेश ईकाई और न ही सरकार ने संजीदा से लिया।
किसानों का दर्द
गुरुदासपुर के रहने वाले भाजपा नेता ने कहते हैं जब कभी घरों से बाहर निकले और सार्वजनिक सभाएं कीं तो उन्हें किसानों के प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। भाजपा को लेकर किसानों में जबरदस्त गुस्सा है, जो आगामी चुनाव में हमारे लिए चिंता बन गया है।
सर डैंजिल इब्बेटसन की जाट की परिभाषा पर गौर करें तो सब कुछ साफ हो जाएगा- जाट वो किसान होते हैं, जो खुशी-खुशी अपने कर दें। दो बड़े जाट नेता सर छोटू राम और चौधरी चरण सिंह, जिनमें चरण सिंह आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री भी बने।
जाटों में 90 फीसद तो गुर्जर समाज में 98 प्रतिशत किसान हैं जो किसानों का दर्द अच्छी तरह जानते हैं। सरकार और भाजपा किसानों को जातियों में बांटने का काम न करे। ये पार्टी के लिए आत्मघाती होगा।
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