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सम्मान-जनक अंत्येष्टि मौलिक अधिकार का हिस्सा

हाथरस में हुई घटना में पीड़िता के शव को रातों-रात जला देने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए व्यक्ति के मृत्यु के बाद सम्मानजनक अंत्येष्टि को अधिकार मानते हुए मामला दर्ज किया है

Newstrack
Published on: 14 Oct 2020 11:01 AM GMT
सम्मान-जनक अंत्येष्टि मौलिक अधिकार का हिस्सा
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नंदिता झा

लखनऊ: हाथरस में हुई घटना में पीड़िता के शव को रातों-रात जला देने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए व्यक्ति के मृत्यु के बाद सम्मानजनक अंत्येष्टि को अधिकार मानते हुए मामला दर्ज किया है और उत्तरप्रदेश राज्य सरकार से पूछा- अगर वह अमीर की बेटी होती तो भी क्या उसे रातों-रात बिना परिजनों की उपस्थिति के जला दिया गया होता। यह प्रश्न इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जब पूछा तो हाथरस जिला प्रशासन ने शव को रातों -रात जलाने के निर्णय की पूरी जिम्मेवारी लेते हुए अदालत के समक्ष अपनी बात रखी।

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न्यायशास्त्र में कानून का एक स्रोत यह है जिसके आधार पर फैसले होते है

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंदर भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त है। समय-समय पर न्यायाधीशों ने अपने फैसलों में गरिमामयी जीवन की व्याख्या और इसका दायरा बढ़ाया है। न्यायाधीश कई बार न्यायबुद्धि के सिद्धांत से भी फैसले लेते हैं यानी सेंस ऑफ फेयरनेस एंड जस्टिस। न्यायशास्त्र में कानून का एक स्रोत यह है जिसके आधार पर फैसले होते है। इसी सिद्धान्त के तहत गरिमामयी जीवन जीने के अधिकार के साथ-साथ गरिमामयी अंत्येष्टि का अधिकार माना गया है। व्यक्ति की गरिमा उसके जीवित रहने के साथ तो होगी ही लेकिन उसके मृत्यु के बाद भी होती है।

नागरिक अधिकार के अंतर्गत व्यक्ति की गरिमा न उसके जीते जी छीनी जा सकती है ना उसके मरने के बाद

नागरिक अधिकार के अंतर्गत व्यक्ति की गरिमा न उसके जीते जी छीनी जा सकती है ना उसके मरने के बाद। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने पंडित परमानंद कटारा द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सहमति जतायी कि गरिमा और न्यायपूर्ण उपचार का अधिकार केवल एक जीवित व्यक्ति को ही नहीं बल्कि उसकी मृत्यु के बाद उसके शरीर को भी मिलता है। शव की सभ्य अंत्येष्टि या दाह संस्कार धार्मिक मान्यताओं के सम्मान और एहसास बनाये रखता है । व्यक्ति के मृत शरीर के शवदाह या अंत्येष्टि को मौलिक अधिकारों का हिस्सा समझा जा सकता है।

यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी

2002 में आश्रय अधिकार अभियान के एक सदस्य द्वारा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लिखे शिकायत को याचिका मानते हुए बेघर लोगों की मृत्यु के बाद उनके शवों को समानित तरीके से अंत्येष्टि न करने को लेकर सुनवाई करते हुए जे बी पटनायक और ब्रजेश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि -यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी कि किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसके धर्म के अनुसार सम्मानजनक तरीके से उसका अंतिम संस्कार किया जाए।

मद्रास हाई कोर्ट ने जयललिता के मृत्यु के बाद उनके शरीर को समाधि से निकलकर डी एन ए टेस्ट करने के सवाल पर कहा था कि- डेड हैव राइट टू प्राइवेसी। इसका अर्थ है कि निजता का अधिकार मृतक को भी होता है और पुराण से उद्धरित करते हुए कि- मृतक की आत्मा को परेशान न किया जाए क्योंकि मृत्यु के बाद भी आत्मा का जीवन होता है।

कोरोना के दौर में संक्रमित मरीजों की मृत्यु के बाद परिजनों को शव न मिलने देने के संबंध में दायर की गई याचिका

कोरोना महामारी के दौर में संक्रमित मरीजों की मृत्यु के बाद परिजनों को शव न मिलने देने के संबंध में दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और उचित व्यवहार का अधिकार न केवल जीवित व्यक्ति के लिए उपलब्ध है बल्कि यह मृत्यु के बाद भी बना रहता है। मानव शरीर का निस्तारण चाहे कोविड 19 से मरा हो या नहीं ,चाहे दफन किया जाए या जलाया जाए,सम्मान और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। मृतक के निकट और प्रिय व्यक्तियों को मृतक के अवशेषों पर अंतिम रूप से देखने का अवसर दिया जाना चाहिए था । उन्हें दिवंगत आत्मा को अंतिम सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए था।

पीठ ने कहा कि -हमारे देश मे पारंपरिक विश्वास यह है कि दफन/दाह से पहले जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तब तक मृतक की आत्मा को शान्ति नहीं मिलती।

परिजनों को अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। कोविड संक्रमित शवों के दाह संस्कार के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए गए ।

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1. अस्पताल की औपचारिकता के बाद शवों को सुरक्षित बैग जिसका चेहरा पारदर्शी हो सेनेटाइज कर परिजनों को सौंपा जाए।

2.मृत शरीर को संभालने वाले लोग मानक सावधानी बरतेंगे जैसे मास्क ,दस्ताने, पीपीई इत्यादि अनिवार्य होगा।

3.शव ले जाने वाले वाहन सेनेटाइज हों।

4.शमशान/अंत्येष्टि के बाद परिवार के सदस्यों और वहां के कर्मचारियों को उचित रूप से खुद की सफाई करनी चाहिए।

5. कोविड 19 संक्रमित मृतक का शरीर लावारिश है तो राज्य के खर्च से अंतिम संस्कार किया जा सकता है।

व्यक्ति की सम्मान जनक अंत्येष्टि उसका मानवाधिकार है। शासन और प्रशासन तथा संगठन और संस्थाओं को इन नीतिगत फैसलों के संदर्भ में ही कदम उठाने चाहिए । मृतक की अंत्येष्टि सम्मान जनक हो यह नागरिक अधिकारों ,मानवाधिकारों के साथ ही मौलिक अधिकार का हिस्सा है। सभी धर्मों केअनुयायियों को इसे मानना चाहिए चाहे हिन्दू,हो, मुसलमान हो,सिख हो ,ईसाई हो, सभी के लिए मान्य है।

- (लेखिका हाईकोर्ट दिल्ली की अधिवक्ता और स्तंभकार हैं। )

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