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रिवरफ्रंट मामला : जांच रिपोर्ट से पहले सिंघल बेदाग तो रंजन को इंतजार
दीपक सिंघल और आलोक रंजन के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गई। हैरतंगेज यह है कि इस परियोजना के निर्माण के दौरान प्रमुख सचिव वित्त और मुख्य सचिव दोनों पदों पर तैनात रहने वाले राहुल भटनागर को जांच में जिम्मेदार नहीं पाया गया।
योगेश मिश्र
रिवरफ्रंट मामले की सीबीआई जांच भले ही अभी लंबित हो लेकिन इस मामले में इस परियोजना के निर्माण के दौरान सिंचाई महकमे के प्रमुख सचिव और सूबे के मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को राज्य सरकार की ओर से क्लीनचिट मिल गई है। हालांकि इन्हीं आरोपों की जद में आए पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन राज्य सरकार की क्लीनचिट का इंतजार कर रहे हैं।
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अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना रिवरफ्रंट अपने निर्माण के समय से ही विवाद का सबब रही है। राजधानी के गोमती तट पर बनी इस परियोजना पर अनाप-शनाप धन खर्च करने के आरोप शुरू से लगते आए हैं। ब्लैक लिस्टेड कंपनी को ठेका देने और मानक से अधिक धनराशि खर्च करने की बात भी उठती रही है।
उन दिनों शिवपाल के पास था सिंचाई महकमा
सिंचाई महकमा उन दिनों शिवपाल सिंह यादव के पास भले ही था। लेकिन इसी महकमे के मार्फत तैयार कराई जा रही रिवरफ्रंट परियोजना का सीधा रिश्ता तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से था। जिस दिन मुख्यमंत्री कार्यालय में इस परियोजना का पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन था उस दिन भी शिवपाल सिंह यादव वहां नहीं थे।
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जब यह योजना शुरू हुई थी तो प्रमुख सचिव वित्त के रूप में राहुल भटनागर की तैनाती थी। मुख्य सचिव के पद पर आलोक रंजन थे। दीपक सिंघल सिंचाई महकमे के प्रमुख सचिव थे। इस योजना पर खर्च होने वाली धनराशि को दीपक सिंघल ने बाकायदा व्यय वित्त समिति से पास कराया था।
रिपोर्ट में बेहद विरोधाभासी तथ्य दिए
जिन महंगे सामानों के इस परियोजना में इस्तेमाल की बात की जा रही है या परियोजना में निर्माण की लागत की दर सब व्यय वित्त समिति से पास हुए थे। इसी लिए जब राज्य में योगी सरकार आई और उसने इस परियोजना पर सवाल उठाया तो उसकी जद में मुख्य सचिव राहुल भटनागर भी आ गये। हालांकि जब सरकार ने इस परियोजना की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश आलोक कुमार सिंह की अगुवाई वाली समिति से कराई तब उस समिति ने राहुल भटनागर को क्लीनचिट देते हुए मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन को पर्यवेक्षणीय शिथिलता का दोषी माना।
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इस समिति में आईआईएम लखनऊ के प्रो. एके गर्ग और आईआईटी बीएचयू के यूके चौधरी भी थे। इस समिति ने तो अपनी रिपोर्ट में बेहद विरोधाभासी तथ्य दिए। एक ओर कमेटी ने कहा कि पूर्व मुख्य सचिव का दायित्व बनता है। मगर कमेटी ने उस समय के मुख्य सचिव राहुल भटनागर को क्लीनचिट थमा दी, वह भी तब जब पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के पूरे कार्यकाल में इस परियोजना पर छह सौ करोड़ रुपये खर्च हुए थे और राहुल भटनागर के कार्यकाल में रिवरफ्रंट पर नौ सौ करोड़ रुपये खर्च हुए।
दूसरी कमेटी बनी
आलोक सिंह समिति की रिपोर्ट के परीक्षण के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अगुवाई में एक दूसरी कमेटी बनी। जिसमें आईएएस अफसर प्रवीर कुमार और अनूप पांडेय भी थे। इस कमेटी ने कहा कि जिन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कृत्य बनता है उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई जाए और पर्यवेक्षणीय दायित्व की शिथिलता जिन्होंने बरती हो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए। आठ अभियंताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई।
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दीपक सिंघल और आलोक रंजन के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गई। हैरतंगेज यह है कि इस परियोजना के निर्माण के दौरान प्रमुख सचिव वित्त और मुख्य सचिव दोनों पदों पर तैनात रहने वाले राहुल भटनागर को जांच में जिम्मेदार नहीं पाया गया। प्रमुख सचिव सिंचाई और मुख्य सचिव दोनों पदों पर रहने के बावजूद दीपक सिंघल को राज्य सरकार ने विभागीय कार्रवाई से छूट प्रदान कर दी।