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बड़े मन के लोग
सूर्य ग्रहण के समय एक दम ख़ाली था। पुरानी बातें सोच रहा था। अतीत को खंगालने के सिवाय कोई काम नहीं समझ में आ रहा था।
योगेश मिश्र
सूर्य ग्रहण के समय एक दम ख़ाली था। पुरानी बातें सोच रहा था। अतीत को खंगालने के सिवाय कोई काम नहीं समझ में आ रहा था। योग दिवस पर थोड़ी बहुत औपचारिकताएँ सुबह ही पूरी कर चुका था। कंधे और पैर में दर्द की वजह से योग करने में कंजूसी करना पड़ा।
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खैर! इस बीच गिरीश त्रिपाठी जी का फ़ोन आ गया। वह हमें ग्रहण के दौरान किन किन चीजों से दूर रहना है? क्या क्या करना है? किससे किससे बचना है? इन सारी हिदायतों के लिए फ़ोन किया था। गुरू हैं तो ज़िम्मेदारी भी बनती है उनकी। वह उसी विभाग में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं, जिस विभाग से मैंने अर्थशास्त्र में एम.ए. और डीफ़िल किया है।
ग्रहण में करने न करने के निर्देश के बीच पुरानी बातें होने लगी। कई दिलचस्प वाकयों का ज़िक्र हुआ। मसलन, इलाहाबाद पश्चिमी से जनसंघ के टिकट पर नाथू राम शिक्षक जी चुनाव लड़ रहे थे।रज्जू भइया जी अचानक शहर में आ गये। नाथूँ राम शिक्षक ने रज्जू भइया जी से कहा कि हमें पाँच सौ रूपये मिल जाते तो मैं चुनाव जीत जाता। उन दिनों पाँच सौ रूपये बड़ी बात थी।रज्जू भइया जी के पास भी नहीं थे पाँच सौ रूपये।
पर उन्होंने उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पुरुषोत्तम दास टंडन जी को एक पत्र लिखा। जिसमें नाथू राम जी को पाँच सौ रूपये देने की बात लिखी। यह भी लिखा कि यदि इन्हें पाँच सौ रूपये मिल जायेगे तो ये चुनाव जीत जायेंगे, ऐसा इनका मानना है। पत्र पाकर पुरुषोत्तम दास टंडन की क्या स्थिति हुई होगी, यह आसानी से नहीं सोचा जा सकता है। क्योंकि उनकी मदद से उनकी ही पार्टी को पराजित होना था। पर इसके बाद भी टंडन जी ने नाथूँ राम शिक्षक को पाँच सौ रूपये दिये। वह जीत भी गये।
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एक और दिलचस्प वाक़या भी यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है। एक बार इलाहाबाद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम था।इस कार्यक्रम के ठीक एक दो दिन पहले ही शहर में धारा १४४ लागू कर दी गई। कोई बड़ी वारदात हो गयी थी। रज्जू भइया जी ने पुरुषोत्तम दास टंडन जी को फ़ोन किया कि कल हमारा गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम है। आप जानते हैं यह कार्यक्रम हम लोग पार्क में करते हैं। आपने शहर में १४४ लगा रखा है। कैसे होगा हमारा कार्यक्रम । पुरुषोत्तम दास टंडन जी ने कहा १४४ तो नहीं हट सकती। आप लोग मेरे घर से गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम कर लें। दूसरे दिन गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम टंडन जी के घर से हुआ। पहले कितने बडे मन के लोग होते थे, आज यह संभव है क्या? जरा सोचिए ।
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