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महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष- परम कल्याणकारी 'भगवान शिव'

ऊँ नमः शिवाय या फिर अपनी जिव्हा पर शिव मात्र का स्मरण करने से व्यक्ति संसारिक चिंताओं से मुक्त हो सकता है। पूरे भारत वर्ष में भगवान शिव के मंदिर विराजमान हैं। जहां भगवान शिव व उनके दरबार का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।

SK Gautam
Published on: 9 March 2021 1:05 PM GMT
महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष- परम कल्याणकारी भगवान शिव
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महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष- परम कल्याणकारी 'भगवान शिव'-(courtesy-social media)

Mrityunjay Dixit

मृत्युंजय दीक्षित (Mrityunjay Dixit)

महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुदर्र्शी को मनाया जाने वाला एक महान पर्व है। इस पवित्र दिन लगभग पूरा भारत शिवभक्ति में तल्लीन हो जाता है और भगवान शिव के चरणों में अपने आप को अर्पित कर पुण्य अर्पित करना चाहता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि 16 तिथियों के अग्नि देवता स्वामी होते हैं अतः जिस तिथि का जो देवता स्वामी होता है उस देवता का उस तिथि में व्रत पूजन करने से विषेश लाभ की प्राप्ति होती है। ईशान संहिता के अनुसार ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के नाम से लोकप्रिय हुआ। इस व्रत को हिंदू धर्म को मानने वाला प्रत्येक नागरिक करता है। संपूर्ण मध्य भारत व उत्तर भारत में भगवान षिव की आराधना व पूजा की जाती है।

उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में हर वर्ष शिव भक्तों की महा भीड़ उमड़ती है। यही मनोरम दृष्य हर बड़े व छोटे शिव मंदिर का रहता है। कश्मीरी ब्राहमणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है । यह शिव और पार्वती के विवाह के रूप में हर घर में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का पर्व आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में भव्य रूप से मनाया जाता है। भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के शिव मंदिरों में भी यह पर्व मनाया जाता है। नेपाल के पषुपतिनाथ मंदिर में यह पर्व व्यापक रूप में मनाया जाता है तथा भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। भारत में हर जगह भगवान शिव के छोटे-बड़े मंदिर विद्यमान हैं।

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शिवरात्रि व्रत व भगवान शिव की महिमा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। जबकि भगवान शिव की महिमा वेदों में की गयी है। उपनिषदों में भी शिव जी की महिमा का वर्णन मिलता है। रूद्रहृदय, दक्षिणामूर्ति , नीलरूद्रोपनिषद आदि उपनिषदों में शिवजी की महिमा का वर्णन मिलता है । भगवान शिव ने अपने श्रीमुख से व्रत की महिमा का वर्णन स्वयं ब्रहमा, विष्णु और पार्वती जी को किया है। निष्काम तथा सकाम भाव से सभी व्यक्तियों के लिए यह महान व्रत परम हितकारक माना गया है।

शिव की महिमा

शिव महिमा है कि जिनकी जिहवा के अग्रभाग पर भगवान शंकर का नाम शिव विराजमान रहता है वे धन्य तथा महात्मा पुरूष हैं। महादेव जी थोड़ा सा बेलपत्र पाकर भी संतुष्ट हो जाते हैं । वे सभी के कल्याण स्वरूप हैं। इसलिए सभी को शिवजी की पूजा करनी चाहिये। शिव जी सभी को सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं भगवान शिव कार्य और करण से परे हैं। ये निर्गुण, निराकार, निर्बाध, निर्विकल्प निरीह, निरंजन, निष्काम, निराधार तथा सदा नित्यमुक्त हैं। भगवान शिव पंचाक्षर और षडाक्षर मंत्र हैं तथा केवल ऊँ नमः शिवाय कहने मात्र से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव का पूजन करने के लिए शिवलिंग की प्रतिष्ठा करनी चाहिये। भगवान शिव सर्वोपरि देव हैं। सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। सम्पूर्ण विष्व शिवकृपा से ही पाप मुक्त हो सकता है। भगवान श्री शिव की उपासना के बिना साधक अभीष्ट लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। षिवोपासना के द्वारा ही परम तत्व षिवत्त्व की प्राप्ति संभव है।

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जब से सृष्टि की रचना हुई, तब से भगवान शिव

जब से सृष्टि की रचना हुई हैं तब से भगवान शिव की आराधना व उनकी महिमा की गाथाओं से भण्डार भरे पड़े हैं। स्वयं भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण ने भी अपने कार्यों की बाधारहित सिद्धि के लिये उनकी साणना की और शिव जी के शरणागत हुए। भगवान श्रीराम ने लंका विजय के पूर्व भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव के भक्तों व उनकी आराधना की कहानियां हमारे पुराणों व धर्मग्रथों में भरी पड़ी है। राक्षसराज हिरण्यकष्यप का पुत्र प्रहलाद श्री वष्णु की पूजा में तत्पर रहता था।

भगवान शंकर ने ही नृसिंह का अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। जो भी व्यक्ति चाहे वह कैसा भी हो या फिर किसी भी दृष्टि से उसने भगवान शिव की आराधना की हो भगवान शिव ने आराधना से प्रसन्न होकर सभी को आषीर्वाद दिया । यदि उन्होनें भूलवश किसी को गलत आषीर्वाद दिया या फिर किसी ने उनके आषीर्वाद का गलत उपयोग किया तो उन्होनें उसका उसी रूप में निराकरण भी किया। सभी कहानियों का सार यही है कि भगवान शिव अपने भक्तों की आवाज अवश्य सुनते हैं। भगवान शिव ने देवराज इंद्र पर कृपादृष्टि डाली तो उन्होनें अग्निदेव, देवगुरू, बृहस्पति और मार्कण्डेय पर भी कृपादृष्टि डाली। भगवान शिव की महिमा अर्वणनीय है।

भगवान शिव की स्तुति व महिमा का गुणगान

हिंदी कवियों ने भी भगवान शिव की स्तुति व महिमा का गुणगान किया है। हिंदी के आदि कवि चंदवरदाई ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो के प्रथम खंड आदिकथा में भगवान शिव की वंदना की है। महान कवि विद्यापति ने भी अपने पदों में भगवान शिव का ही ध्यान रखा है। महान कवि सूरदास ने भी शिवभक्ति प्रकट की है। सिख धर्म के अंतिम गुरू गोविंद सिंह महाराज द्वारा लिखित दषम ग्रंथ साहिब में भी शिवोपासना का विशेष वर्णन मिलता है। भगवान शिव परम कल्याणकारी है। जगदगुरू हैं। वे सर्वोपरि तथा सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं।

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उन्होंने इस समस्त संसार व सांसारिक घटनाओं का निर्माण किया है। सांसारिक विषय भेागों से मनुष्य बंधा है तथा शिवकृपा से ही वह पापमुक्त हो सकता है। भगवान शिव जब प्रसन्न होते हैं तो साधक को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान करते हैं जिससे अविद्या के अंधकार का नाश हो जाता है और साधक को अपने इष्ट की प्राप्ति होती है।इसका तात्पर्य यह है कि जब तक मनुष्य शिव जी को प्रसन्न करके उनकी कृपा का पात्र नहीं बन जाता तब तक उसे ईष्वरीय साक्षात्कार नहीं हो सकता।

गोस्वामी तुलसीदास ने भी किया है भगवान शिव की महिमा का वर्णन

भगवान शिव की महिमा का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने भी किया है। अतः कहा जा सकता है कि अस्तु ज्ञान और भक्ति इन तीनों के परमार्थ तथा सभी विद्याओं, शास्त्रों, कलाओं और ज्ञान- विज्ञान के प्रवर्तक आशुतोष भगवान शिव की आराधना के बिना साधक अभिष्ट लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। शिवपासना के द्वारा ही परम तत्व अथवा शिवतत्व की प्राप्ति संभव है। भगवान शिव अपने भक्त की आराधना से भी प्रसन्न होकर उसका तत्क्षण परम कल्याणकर देते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शिव पूजन और व्रत करना चाहिये।

भगवान शिव में ही विश्व का विकास संभव है।

परात्पर सचिचदानंद परमेश्वर शिव एक है। वे विश्वातीत विश्वमय हैं। वे गुणातीत और गुणमय भी हैं। भगवान शिव में ही विश्व का विकास संभव है। भगवान शिव शुद्ध, सनातन, विज्ञानानन्दघन, परब्रम्ह हैं उनकी आराधना परम लाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिये। सांसारिक हानि-लाभ प्रारब्ध होते हैं इनके लिए चिंता करने की बात नहीं । शिव जी की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जायेंगे। अत: किसी भी प्रकार के कर्मों की पूर्णता के लिये न तो चिंता करनी चाहिये और नहीं भगवान से उनके नाषार्थ प्रार्थना ही करनी चाहिये।

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ऊँ नमः शिवाय

ऊँ नमः शिवाय या फिर अपनी जिव्हा पर शिव मात्र का स्मरण करने से व्यक्ति संसारिक चिंताओं से मुक्त हो सकता है। पूरे भारत वर्ष में भगवान शिव के मंदिर विराजमान हैं। जहां भगवान शिव व उनके दरबार का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। दक्षिण में रामेश्वरम, गुजरात में सोमनाथ मंदिर व काशी में मदिरों की अपनी ही महिमा है। जबकि झारखंड राज्य में बाबा बैद्यनाथ धाम को कौन नहीं जानता। जम्मू - कश्मीर में भगवान शिव के मंदिरों का कहना ही क्या ।

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एक ऐतिहासिक भव्य, गौरवशाली परम्परा व संस्कृति है भगवान शिव की आराधना। जब महाशिवरात्रि का पर्व आ जाता है तब कांवड़ियों का रेला अलग दृष्य प्रस्तुत करता है। अतः परम कल्याणकारी सृष्टिकर्ता व पूरे विश्व के नीति नियंतक भगवान शिव की आराधना पूरे तन, मन, धन व एकाग्रचित होकर करनी चाहिये क्योंकि वे ही हर प्रकार के दुखों व चिंताओं का हरण करने में सक्षम है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और टिप्पणीकार हैं )

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