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सिखों पर तालिबानी जुल्मः अफ-पाक में गुजर मुश्किल, भारत क्यों नहीं आ जाते

अफगानिस्तान में राक्षसी प्रवृति वाले तेजी से पनप रहे तालिबानियों के चंगुल से आजाद होने के बाद सिखों का एक जत्था दिल्ली पहुंच गया है। अब भारत में नागरिकता संशोधन कानून के तहत इन्हें नागरिकता मिले में आसानी हो जायेगी।

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Published on: 29 July 2020 8:30 AM GMT
सिखों पर तालिबानी जुल्मः अफ-पाक में गुजर मुश्किल, भारत क्यों नहीं आ जाते
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आर.के. सिन्हा

अफगानिस्तान में राक्षसी प्रवृति वाले तेजी से पनप रहे तालिबानियों के चंगुल से आजाद होने के बाद सिखों का एक जत्था दिल्ली पहुंच गया है। अब भारत में नागरिकता संशोधन कानून के तहत इन्हें नागरिकता मिले में आसानी हो जायेगी। अफगानिस्तान में हिन्दू और सिखों का रहना वैसे भी अब पूरी तरह नामुमकिन हो गया है। इन पर तालिबानी गुंडे बेहिसाब जुल्मों-सितम करते ही रहते हैं। इन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित करते हैं। इनकी कन्याओं का अपहरण करके जबर्दस्ती विवाह करवाकर उन्हें इस्लाम कुबूल करवाया जाता है।

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अगानिस्तान में हिन्दू मंदिर तो अब शायद ही कोई बचा हो। कुछ गुरुद्वारे अवश्य बचे हैं। वहां पर आये दिनों हिन्दू और सिखों का कत्लेआम जारी है। कुछ दशकों के अंतराल के दौरान ही अफगानिस्तान तालिबान के बढ़ते असर के कारण तबाह हो गया। यकीन मानिए कि वह पाकिस्तान के विपरीत एक सामान्यतः उदारवादी देश था। सत्तर के दशक तक तो रेडियो काबुल से हिन्दी भजन तक सुनने को मिल जाते थे । उस वक़्त तक अफ़ग़ानिस्तान और ईरान बहुत हद तक आधुनिक राष्ट्र हुआ करते थे । आज जैसी भयानक मज़हबी कट्टरता इन देशों में तब नहीं थी । काबुल में तब हिन्दू और सिख भी अच्छे-भले रहते थे । भले ही बहुत कम संख्या में थे पर म्क्मोबेश ठीकठाक हालात में ही थे । ईरान तो रज़ा पहलवी के शासनकाल में एकदम आधुनिक देश था । अफ़ग़ानिस्तान में बादशाह ज़हीर शाह के अपदस्थ होने के बाद वहां कभी शान्ति आई ही नहीं । कहते हैं न कि कब अकबर के ख़ानदान में कोई औरंगज़ेब पैदा हो जाये, कहा नहीं जा सकता । वक़्त पलटा और कट्टरता ने उदारवाद के परखच्चे उड़ा दिये । कभी औरंगज़ेब ने भारत में संगीत साहित्य और कला को बहुत गहरे में दफ़ना दिया था। तालिबानियों ने वही अफ़ग़ानिस्तान में किया है ।

राजधानी दिल्ली में पहले से ही सैकड़ों अफगानी सिखों ने शरण ली हुई हैं। इन सिखों का एक दिल्ली में काबुली गुरुद्वारा भी है। इन्हें तुरंत ही इनकी अफगानी वेशभूषा के चलते पहचाना जा सकता है। सबने सलवार–कमीज पहनी होती है। ये आपस में पश्तो में ही बात कर रहे होते हैं। अफगानिस्तान में जब 1992 में रूस के समर्थन वाली सरकार गिरी और देश में गृह युद्ध छिड़ा तो सैकड़ों सिख दिल्ली और देश के दूसरे शहरों में जान बचाकर भारत वापस आ गए थे।

अफगानी सिखों की चाहत है कि उन्हें जल्द से जल्द भारत की नागरिकता मिल जाए। केन्द्र में मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून को पारित करने के बाद इन्हें उम्मीद है कि ये जल्दी ही भारत के नागरिक हो जायेंगे। आपको राजधानी में गुरुद्वारा सीसगंज, गुरुद्वारा बंगला साहिब और अन्य प्रमुख गुरुद्वारों में अफगानी सिख मिल जाएंगे। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अफगानिस्तान के बचे हुए सारे हिन्दू- सिख भारत आ जाएं। यहां वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से चालू करें। कारण यह है कि इन्हें तो अफगानिस्तान में देर-सवेर मार ही दिया जाएगा अगर ये मुसलमान नहीं बनते। आखिर इनका कसूर क्या है । जब धर्म के नाम पर देश का बंटवारा हो ही गया तो धर्म के आधार पर आबादी के लेन-देन में किसने कोताही की। आज इन प्रताड़ित हिन्दू-सिखों का श्राप तो उन्हीं को और उनके खानदान को लगेगा ।

सिखों का कत्लेआम पाक में भी जारी

अफगानिस्तान की तरह पाकिस्तान में भी सिखों का कत्लेआम होना अब आम सी बात हो गई है। इनके कत्लेआम के बाद कुछ दिन तक प्रायोजित चौतरफा निंदा के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। पाकिस्तान में पेशावर से लेकर लाहौर तक के सभी शहरों में सिखों पर आये दिन हमले होते ही रहते हैं। इनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाता है। सच में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के लिए कोई जगह नहीं रह गई है । पाकिस्तान में कुछ वर्ष पहले ही हजारों साल पुरानी भगवान बुद्ध की मूर्ति को तोड़ा गया। पाकिस्तान के उत्तरी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में मरदान के तख्तबाई इलाके में एक प्राचीन और विशाल बुद्ध मूर्ति को नष्ट करना सच में बेहद कष्टकारी था। यह मूर्ति 1700 साल पुरानी थी और गांधार सभ्यता से ताल्लुक रखती थी। समझ नहीं आया बुद्ध की मूर्ति को तोड़कर इन जालिमों को क्या मिला। इससे पहले पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बुद्ध से जुड़ी आर्किलॉजिकल साइट पर भी तोड़फोड़ के मामले सामने आए थे।

हम पीछे मुड़कर देखें तो जरा

तालिबान ने ही बामियान की मशहूर बुद्ध प्रतिमा में विस्फोटक लगाने का हुक्म दिया था। तबतक बामियान की बुद्ध की वह बलुआ पत्थर से बनी प्राचीन प्रतिमा विश्व भर में सबसे ऊंची बुद्ध की मूर्ति मानी जाती थी। जब बुद्ध की उस प्रतिमा का अनादर हो रहा था तब ही समझ आ गया था कि आने वाले समय में अफगानिस्तान किस रास्ते पर चलेगा। उस बुद्ध प्रतिमा पर टैंक और भारी गोलियों से हमला किया गया था। उसके बाद उसे नष्ट करने के लिए उसमें विस्फोटक लगाए थे। जरा समझ लें कि कितने जालिम हैं दुष्ट तालिबानी।

कहना न होगा कि ऐसे अंधकार युग में जीने वाले देश में गैर-मुसलमानों के लिए कोई जगह हो ही नहीं सकती। इसलिए उन्हें वहां से निकल ही जाना चाहिए। उनके लिए भारत के अलावा दूसरा कोई देश बचा भी नहीं है। इस बीच,पाकिस्तान ने अपनी पिछली मतगणना में भी सिखों के साथ घोर भेदभाव किया था। यह जनगणना 2018 में हुई थी। सिखों का जनगणना फॉर्म में जिक्र ही नहीं था। उन्हें एक तरह से अन्य की कैटेगरी में धकेल दिया गया था। उसके विरोध में पेशावर के सिखों ने प्रदर्शन किया तो उन्हें न्याय एने की जगह हर तरह से प्रताड़ित किया गया। इसे ही तो कहते हैं घाव पर नमक छिड़कना।

हमला ननकाना साहिब पर

आपको याद ही होगा कि इस साल के शुरू में पाकिस्तान के ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर हमले हुए। गुरु नानक की जन्मस्थली ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर हुए हमले के बाद भारत में सिखों ने अपना कड़ा विरोध जताया था। कई सिख समूहों ने हमले की पाकिस्तान के उच्चायुक्त के सामने विरोध प्रदर्शन भी किया था। ननकाना साहिब हमला 1955 के भारत-पाकिस्तान समझौते का उल्लंघन था, जिसके तहत भारत और पाकिस्तान को यह सुनिश्चित करना था कि वे हर संभव प्रयास करेंगे ताकि ऐसे पूजा स्थलों की पवित्रता को संरक्षित रखें, जिनमें दोनों देशों के लोग जाते हैं।

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क्या आप यकीन करेंगे कि ननकाना साहिब के अधिकतर होटलों में सिखों को अलग बर्तनों में भोजन परोसा जाता है। कहने का मतलब यह है कि अब भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सिखों को भारत का रुख कर लेना चाहिए । अगर उन्होंने देरी की तो उनकी जान तक जा सकती है।

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