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पेशावरियों ने जब जिन्ना का पर्दा हटा दिया था!

पख्तून मुसलमान, खासकर पेशावरी, सब गांधीवादी थे। अहिंसक थे। भारतसंघ में ही रहना चाहते थे। अत: आज वहां हो रहे तशद्दुद से हर भारतीय को वेदना होना स्वाभाविक है। गत दिनों हिमालयी नगर पेशावर खराब कारणों से सुर्खियों में रहा।

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Published on: 17 Nov 2020 2:41 PM GMT
पेशावरियों ने जब जिन्ना का पर्दा हटा दिया था!
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पेशावरियों ने जब जिन्ना का पर्दा हटा दिया था!

पख्तून मुसलमान, खासकर पेशावरी, सब गांधीवादी थे। अहिंसक थे। भारतसंघ में ही रहना चाहते थे। अत: आज वहां हो रहे तशद्दुद से हर भारतीय को वेदना होना स्वाभाविक है। गत दिनों हिमालयी नगर पेशावर खराब कारणों से सुर्खियों में रहा। महाभारतीय जनपद पुरुषपुर के संस्थापक गांधार नरेश, कौरवों के मातुल शकुनि से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना की सल्तनतों का भूभाग रहे आधुनिक पेशावर में पाकिस्तानी तालिबानियों ने हाल ही में 180 आस्थावान मुसलमानों को भून डाला।

आखिर क्यों जर्जर हवेलियों को संरक्षित करने में जुटे पाकिस्तानी पुरात्वविद ?

अत: अचरज होता है कि क्यों गत माह इसी शहर की दो ऐतिहासिक जर्जर हवेलियों को संरक्षित करने हेतु पाकिस्तानी पुरातत्व निदेशालय ने व्यापक प्रयास शुरु कर दिया। ये कभी सांसद और नाट्यशास्त्री स्व. पृथवीराज कपूर तथा 97—वर्षीय फिल्मी हीरों रहे मोहम्मद यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार के पुराने आवास किस्सा ख्वानी बाजार में थे, जहां उन्होंने अपना यौवन बिताया था।

पेशावर की एक पुरानी घटना

पेशावर की ही एक पुरानी मशहूर घटना थी कि इस्लाम के नाम पर एक प्राचीन राष्ट्र को खण्डित करने वाले गुजराती हिन्दु बनिया जीणाभाई के पोते मोहम्मद अली जिन्ना को यहां की मुगलाई मस्जिद (शाहजहां द्वारा निर्मित) में नमाज अता करने हेतु हार्दिक नागरिक आमंत्रण दिया गया था। मगर इस्लाम का यह ''अकीदतमंद'' पुरोधा भाग गया, नदारद रहा। सहनमाजी घण्टों उसकी प्रतीक्षा करते रहे।

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पेशावर का भारत राष्ट्र से आत्मीय लगाव था क्योंकि यह सीमांत गांधी, शेरे—अफगन, उतमंजायी जाति के स्वाधीनता सेनानी, सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के खुदाई खिदमतगार (लालकुर्ती वाले) का कार्यस्थल था। अंग्रेज साम्राज्यवादी यहां केवल जेल के विस्तारीकरण में व्यस्त रहे। क्योंकि स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों, सत्याग्राहियों की संख्या अपार थी।

ओपिनियन लेखक- के. विक्रम राव

सोमनाथ शिवलिंग को लूटने के पहले पेशावर को लूटा

अंग्रेजी उपनिवेशवादियों तथा देश—विभाजक मोहम्मद अली जिन्ना के उद्भव के दशकों पूर्व पेशावर (खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी) समृद्ध थी। यहां यूनान के सिकंदर का सेनापति सेल्युकस निकाटोर हारा था। उसकी पुत्री हेलेन मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त (पटना वाले) की व्याहता हो गई थी। मशहूर कनिष्क स्तूप यही का है। ठीक हजार वर्ष पूर्व (1024) तुर्की शासक गुलाम सुबुक्तगिन के पुत्र महमूद गजनी ने सोमनाथ शिवलिंग को लूटने के पहले पेशावर को लूटा था।

साहित्य प्रेमियों के लिए बतादूं संस्कृत भाषा के अष्टाध्यायी नामक प्रसिद्ध सूत्रबद्ध व्याकरण ग्रंथ के रचयिता शिवभक्त मुनि पाणिनी की यह तपोभूमि थी। अपनी अभिनयकला को पृथ्वीराज कपूर यहीं विकसित करते थे। प्राचीन यूनान के नाट्यकार सोफोक्लिस की चर्चित त्रासद नाट्यकृति एंटिगोन पेशावर में शिलापट्ट पर लिखी मिली थी। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की परम्परा में इसका भी अध्ययन होता रहा है।

बादशाह खान का अधिक समय पेशावर जेल में बीता

आधुनिक पेशावर को भारतीय इतिहास में ख्याति मिली जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के युवा नेता लोग स्वाधीनता संघर्ष में जनसभायें करते थे। बापू भी यहां आ चुके है। बादशाह खान का अधिक समय यहीं अंग्रेजों और पाकिस्तानी मुस्लिम लीग द्वारा संचालित पेशावर जेल में बीता था। उनके अग्रज डा. खान अब्दुल जब्बार खान (डा. खान साहेब) इस प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे। उनके पुत्र और कांग्रेस नेता खान अब्दुल वली खान ने पाकिस्तान में अपनी इस मातृभूमि के जबरन विलय का पुरजोर विरोध किया था। वली ने सीमांत प्रांत में राष्ट्रीय आवामी पार्टी बनायी थी।

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