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भीख मांगना या बच्चों का बाल श्रम कब रुकेगा?

आई पी सी की धारा 363A के तहत बच्चों के द्वारा भीख मँगवाने पर 10 साल से आजीवन कारावास के प्रावधान है । लेकिन फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है और आज भी बच्चे भीख मांगते नज़र आते है।

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Published on: 7 Dec 2020 1:38 PM GMT
भीख मांगना या बच्चों का बाल श्रम कब रुकेगा?
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बाल श्रम पर दिल्ली हाईकोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता नन्दिता झा का लेख (PC: social media)

नन्दिता झा

नई दिल्ली: अक्सर छोटे बच्चों को भीख मांगते या हाथ फैलाये रास्ते में,चौराहे पर ,पुलों पर मंदिरों में, होटलों के आगे आपने भी जरूर देखा होगा । भीख मंगवाना या बच्चों से काम करवाना अपराध है फिर भी हम बिना इस पर कुछ त्वरित कार्रवाई के आगे बढ़ जाते है । इस तरह से हम सब अपनी सामाजिक और नैतिक दायित्व की अवहेलना करते हैं।हमारे द्वारा किया गया व्यवहार अपराध को बढ़ावा देता है और अपराधी निर्भीक होकर बच्चों का शोषण करते है और उन्हें बाल श्रम करने को मजबूर भी करते हैं ।

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आई पी सी की धारा 363A के तहत बच्चों के द्वारा भीख मँगवाने पर 10 साल से आजीवन कारावास के प्रावधान है । लेकिन फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है और आज भी बच्चे भीख मांगते नज़र आते है।

जहाँ तक बाल श्रम की बात है दुनियाभर में बाल श्रम एक गंभीर समस्या है।UNICEF की माने तो दुनियाभर में करीबन 10 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लिप्त है।बाल श्रम के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता है ।जिससे उन्हें कई तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है और वे एक स्वस्थ जीवन नहीं जी पाते ।इन सब समस्या को देखते हुए और बाल संरक्षण के लिए और बाल श्रम को प्रबंधित करने का निर्णय लिया गया था ।

मूल अधिकार अध्याय के अनुच्छेद 24 में बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया है

भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकार अध्याय के अनुच्छेद 24 में बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया है जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ऐसी जगह काम पर न लगाये जाने का प्रावधान है जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है।बच्चों को संरक्षण देने के लिए और बाल श्रम निषेध के लिए 1986 में बाल श्रम प्रतिबंध कानून लाया गया।

begging begging (PC: social media)

14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम करवाने पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया

बाल- श्रम कानून 1986 की धारा 3 के अनुसार बच्चों को किसी व्यवसाय,उद्योग ,संस्थान में काम करवाना प्रतिबंधित किया गया। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करवाने पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। जैसे कालीन उद्योग ,भदोही उत्तरप्रदेश में बहुत सारे बच्चों से काम लिया जाता था, फ़िरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योगों में बच्चों से काम करवाया जाता रहा है और ईंट भट्ठों पर भी बच्चों को बंधुआ मजदूर बना कर काम लिया जाता है। जिससे उनको शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभाव झेलना पड़ता है और उनका विकास एक स्वस्थ और संतुलित नागरिक के तौर पर नहीं हो पाता है।

एशियाई वर्कर केस के नाम से भी जाना जाता है

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में जिसे एशियाई वर्कर केस के नाम से भी जाना जाता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कंस्ट्रक्शन साइट पर 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का काम करना पूरी तरह प्रतिबंधित करने का फैसला देते हुए कहा "किसी प्रकार का निर्माण कार्य मे काम करना बच्चों के लिए खतरनाक होता है"। 2016 संशोधन के बाद 14 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए भी हानिकारक उद्योगों में काम करना प्रतिबंधित किया जा चुका है।इस अधिनियम के धारा 7 में बच्चे अगर काम करते है तो उनके नियमों को तय किया गया है ।जैसे वे सिर्फ तीन घंटे ही एक बार मे काम कर सकते हैं।उन्हें साप्ताहिक छुट्टी दी जाएगी ।

शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे तक उनसे काम नहीं लिया जाएगा

शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे तक उनसे काम नहीं लिया जाएगा।कई नियम कानूनी तौर पर बनाये गए ताकि बाल श्रम को रोका जा सके और बच्चों को शोषित होने से बचाया जा सके ।नियमों के उल्लंघन करने वाले नियोजितों पर दंडात्मक करवाई करने का प्रावधान किया गया है जिसमे 6 महीनें से लेकर 2 साल तक कि सज़ा का प्रावधान किया गया है और साथ ही 20हज़ार जुर्माने के भी प्रावधान किया गया है। फिर भी बाल श्रम आज भी बदस्तूर चल रहा है ।कई लोग कम दिहाड़ी पर बच्चो का शोषण कर रहे हैं ।जरूरत है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सामाजिक दायित्व को समझे और अपने आस पास हो रहे बाल श्रम को लेकर जागरूक हो। उन बच्चों की मदद कर कानून का सहयोग करे।क्योँकि कानून आप तक नहीं पहुंचेगा आपको कानून तक पहुंचना होगा।

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कर्नाटक हाई कोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रम के बढ़ते मामले को देखते हुए इस कोविड कि परिस्थिति में राज्य सरकार को 'विद्यागम स्कीम को लागू करने को कहा।2002 में टी एम ए पाई फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा "माता पिता या अभिभावक का मौलिक कर्त्तव्य है कि वो बच्चों को शिक्षित करे।और किसी भी बच्चे का मौलिक अधिकार है शिक्षा का अधिकार ।जिसके बाद 2009 में राइट टू एडुकेशन के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चो को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गई। प्रयास ताकि बाल श्रम जैसे समस्याओं को खत्म किया जाए और बच्चों को सुरक्षित कर उनका शारिरिक और बौद्धिक विकास किया जाए। उन बच्चों की मदद कर कानून का सहयोग करे। क्योँकि कानून आप तक नहीं पहुंचेगा आपको कानून तक पहुंचना होगा।

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