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केजरीवाल से क्यों डर रहे हो ?
यह प्रावधान क्यों है ? इसलिए है कि हमारे राजदूतावास यह पता लगाने की कोशिश पहले से करते हैं कि इन यात्रा के दौरान हमारे महत्वपूर्ण व्यक्ति को कोई खतरा तो नहीं होगा, उसके साथ कोई धोखा तो नहीं होगा या वह कार्यक्रम भारत-विरोधियों ने तो आयोजित नहीं किया है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को डेनमार्क के एक विश्व-सम्मेलन में आज भाग लेना था लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें वहां जाने की अनुमति नहीं दी। वे क्या करते ? वे दिल्ली में ही बैठे हैं। किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि को चाहे वह विधायक हो, सांसद हो, मंत्री हो, मुख्यमंत्री हो, यदि विदेश के किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लेना हो तो उसे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति लेनी पड़ती है।
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कोपेनहेगन में आयोजित पर्यावरण-शिखर सम्मेलन में भाग लेनेवाले थे
यह प्रावधान क्यों है ? इसलिए है कि हमारे राजदूतावास यह पता लगाने की कोशिश पहले से करते हैं कि इन यात्रा के दौरान हमारे महत्वपूर्ण व्यक्ति को कोई खतरा तो नहीं होगा, उसके साथ कोई धोखा तो नहीं होगा या वह कार्यक्रम भारत-विरोधियों ने तो आयोजित नहीं किया है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री की अनुमति का प्रावधान ठीक है लेकिन केजरीवाल जिस कार्यक्रम में जानेवाले थे, उसमें तो इस तरह की कोई शंका थी ही नहीं। वे तो कोपेनहेगन में आयोजित पर्यावरण-शिखर सम्मेलन में भाग लेनेवाले थे।
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प्रतिनिधि मंडल दूसरों के अनुभवों का लाभ भी उठाता
दुनिया के लगभग 100 शहरों के महापौर इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। दिल्ली में इस साल प्रदूषण में जो 25 प्रतिशत की कमी आई है, उस पर वे बोलते तो भारत की प्रतिष्ठा बढ़ती और हमारा प्रतिनिधि मंडल दूसरों के अनुभवों का लाभ भी उठाता लेकिन केंद्र सरकार ने इस यात्रा में टांग अड़ाकर भारत का नुकसान तो किया ही है, अपनी छवि भी गिराई है। मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने कितने देशों की यात्राएं की हैं।
क्या कांग्रेसी सरकार ने कभी टांग अड़ाई ? दिल्ली की ‘आप’ सरकार के प्रति इस छोटी मानसिकता के शिकार पहले दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी हो चुके हैं जबकि इसी डेनमार्क शिखर सम्मेलन के लिए प. बंगाल के एक मंत्री और कोलकाता के महापौर को प्रधानमंत्री की अनुमति मिल चुकी है।
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सरकार राहुल से कम और केजरीवाल से ज्यादा डरती है
यदि नरेंद्र मोदी को यह डर है कि केजरीवाल वगैरह विदेशों में जाकर उनके विरुद्ध विष-वमन करेंगे तो उन्हें पहले ही चेता दिया जाना चाहिए था। राहुल गांधी ने विदेशों में मोदी के खिलाफ बोला। फिर भी राहुल को ‘हां’ और केजरीवाल को ‘ना’ कहने का अर्थ क्या है ? यह सरकार राहुल से कम और केजरीवाल से ज्यादा डरती है ? सरकार को चाहिए कि वह जिनको विदेश-यात्रा की अनुमति नहीं देती है, उन्हें चुपचाप या सार्वजनिक तौर पर असली कारण बताए।
वरना सभी जन-प्रतिनिधियों की हैसियत निजी नौकरों- जैसी हो जाती है। मैं कल एक गांधी—सम्मेलन को संबोधित करने लंदन जा रहा हूं। उस प्रवासी संगठन ने हमारे पांच केंद्रीय मंत्रियों से संपर्क किया। सबने घुटने टेक दिए। मुझे लगा कि मैं अपना संप्रभु (मालिक) स्वयं हूं।
मैं सचमुच स्वतंत्र हूं। किसी के मातहत नहीं हूं। मुझे किसी की अनुमति की जरुरत नहीं है। यही सच्चा लोकतंत्र है। www.drvaidik.in