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हाथरस कांड को लेकर दलित वोटों की जंग, भाजपा और जदयू को घेरने की तैयारी

कांग्रेस और राजद दोनों की कोशिश है कि इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा कर दलित वोटों को गोलबंद किया जाए और ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित सीटों पर विजय हासिल की जाए। इसके साथ ही अन्य सीटों पर भी दलित मतदाताओं को अपने खेमे में लाने की कोशिश की जा रही है।

Newstrack
Published on: 13 Oct 2020 10:10 AM IST
हाथरस कांड को लेकर दलित वोटों की जंग, भाजपा और जदयू को घेरने की तैयारी
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कांग्रेस और राजद दोनों की कोशिश है कि इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा कर दलित वोटों को गोलबंद किया जाए और ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित सीटों पर विजय हासिल की जाए।

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हाथरस में हुई घटना को लेकर दलित वोटों की लड़ाई तेज हो गई है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर शुरू से ही आक्रामक रुख अपना रखा है और पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही मध्यप्रदेश उपचुनाव में भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने में जुट गई है। राजद की ओर से भी हाथरस की घटना को लेकर भाजपा और जदयू गठबंधन पर हमले तेज कर दिए गए हैं।

कांग्रेस और राजद दोनों की कोशिश है कि इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा कर दलित वोटों को गोलबंद किया जाए और ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित सीटों पर विजय हासिल की जाए। इसके साथ ही अन्य सीटों पर भी दलित मतदाताओं को अपने खेमे में लाने की कोशिश की जा रही है।

चुनाव में हाथरस की घटना की गूंज

बिहार विधानसभा चुनाव में सभी सियासी दल दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ऐसे में पूरे देश को झकझोर देने वाले हाथरस घटना की गूंज भी चुनाव में सुनाई पड़ रही है।

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अब यह बात तो चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगी कि हाथरस की घटना का चुनाव पर कितना असर पड़ा मगर इतना साफ है कि कांग्रेस और दूसरे दल इस मुद्दे को लेकर भाजपा और जदयू को घेरने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

Nitish Kumar-Sushil Modi

16 फ़ीसदी दलित मतदाताओं पर सबकी नजर

बिहार में 16 फ़ीसदी दलित मतदाता है और उनका वोट नतीजों को काफी हद तक प्रभावित करता है। विधानसभा की 38 सीटें आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान राजद ने इनमें से 14 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी। जदयू को 10 सीटों और कांग्रेस व भाजपा को पांच-पांच सीटों पर विजय हासिल हुई थी।

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बाकी सीटें अन्य दलों के खाते में गई थी। कांग्रेस और राजद की पूरी कोशिश है कि इस बार के चुनाव में अधिकांश सुरक्षित सीटों पर महागठबंधन को विजय हासिल हो। हालांकि इस मामले में कामयाबी हासिल करना आसान काम नहीं है।

तीखी हुई दलित वोटों की जंग

इस बार के विधानसभा चुनाव में बसपा ने लोक समता पार्टी और एआईएमआईएम के साथ गठबंधन किया है। लोजपा की नजर भी दलित वोटों पर टिकी हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के कारण लोजपा को सहानुभूति लहर का भी फायदा मिल सकता है। ऐसे में दलित वोटों की लड़ाई काफी तीखी हो गई है। सभी दलों की नजरें इस वोट बैंक पर टिकी हुई हैं।

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नीतीश कुमार ने भी उठाया दलितों का मुद्दा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दलित मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सोमवार को पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करते समय नीतीश कुमार ने दलितों की सुरक्षा और उनके विकास के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति व जनजाति के किसी भी व्यक्ति की हत्या होने पर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की व्यवस्था की गई है। सरकार के इस कदम से भी कुछ दिनों को दिक्कत हो रही है।

Rahul Gandhi-Tejashawi Yadav

नीतीश कुमार ने दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए जीतन राम मांझी की पार्टी हम के साथ गठबंधन भी किया है। इसके साथ ही उन्होंने अशोक चौधरी को बिहार जदयू का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया है।

छाया रहेगा दलितों की सुरक्षा का मुद्दा

जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस और राजद की ओर से हाथरस के मामले को जोर-शोर से उठाने की तैयारी है। इस कारण चुनाव प्रचार के दौरान दलितों की सुरक्षा का मुद्दा छाए रहने की संभावना है।

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खास तौर पर सुरक्षित सीटों पर हाथरस के मुद्दे को लेकर एनडीए गठबंधन पर जोरदार हमले की संभावना जताई जा रही है। कांग्रेस के प्रचार अभियान से जुड़े एक नेता का कहना है कि पार्टी की ओर से लोजपा के साथ भाजपा और जदयू के व्यवहार का मुद्दा भी उठाया जाएगा।

वैसे कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि कोई भी बड़ी घटना होने पर वह चुनाव में मुद्दा जरूर बनती है मगर देखने वाली बात यह होगी कि हाथरस जैसे मुद्दे का चुनाव पर कितना असर पड़ता है।

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