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कमलनाथ के बाद दिग्विजय के लिए मुसीबत बने सिंधिया, राज्यसभा सीट पर संकट

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ की सीएम की कुर्सी लेने के बाद अब दिग्विजय सिंह की राज्यसभा सीट के लिए खतरा पैदा कर दिया है। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मध्यप्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों पर होने वाला चुनाव स्थगित हो गया है मगर इसके साथ ही कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया की मुश्किलें भी बढ़ गई है।

Shivani Awasthi
Published on: 26 March 2020 2:01 PM GMT
कमलनाथ के बाद दिग्विजय के लिए मुसीबत बने सिंधिया, राज्यसभा सीट पर संकट
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भोपाल: मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ की सीएम की कुर्सी लेने के बाद अब दिग्विजय सिंह की राज्यसभा सीट के लिए खतरा पैदा कर दिया है। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मध्यप्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों पर होने वाला चुनाव स्थगित हो गया है मगर इसके साथ ही कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया की मुश्किलें भी बढ़ गई है। दिग्विजय सिंह को राज्यसभा जाने से रोकने के लिए कांग्रेस में उनकी विरोधी लॉबी काफी सक्रिय हो गई है।

हाईकमान को भेजा संदेश

कांग्रेस में दिग्विजय सिंह विरोधी गुट ने शीर्ष नेतृत्व के पास एक ऐसा संदेश भेजा है जिससे पता चलता है कि दिग्विजय सिंह की राज्यसभा सीट पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। दिग्विजय सिंह के विरोधी गुट ने शीर्ष नेतृत्व के पास संदेश भेजा है कि यदि पार्टी फूल सिंह बरैया को प्रथम वरीयता देती है तो इससे पार्टी को अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय को साधने का बड़ा सियासी फायदा मिल सकता है।

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हालांकि फूल सिंह बरैया कहते हैं कि मुझसे ज्यादा दिग्विजय सिंह का राज्यसभा जाना जरूरी है। दिग्विजय सिंह विरोधी गुट के इस संदेश से समझा जा सकता है कि उनके विरोधी इन दिनों काफी सक्रिय हैं।

बदल गए हालात

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से पहले की स्थितियों में कांग्रेस को दो राज्यसभा सीटें मिलती दिख रही थी मगर सिंधिया की बगावत के बाद स्थितियां पूरी तरह बदल गई है। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब राज्यसभा चुनाव का गणित पूरी तरह बदल गया है।

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बदले हुए सियासी समीकरण के मुताबिक अब कांग्रेस को एक और भाजपा को दो राज्यसभा सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है। सूबे की बदली हुई सियासत के बीच दिग्विजय सिंह का विरोधी गुट उन्हें राज्यसभा जाने से रोकने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गया है और उसने अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं।

ये है मुसीबत का कारण

सिंधिया की बगावत के बाद कांग्रेस के जिन 22 विधायकों ने इस्तीफा दिया है उनमें से अधिकांश सिंधिया के दुर्ग ग्वालियर चंबल संभाग क्षेत्र वाले हैं। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से उतारे गए फूल सिंह बरैया भी इसी चंबल इलाके के रहने वाले हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।

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दरअसल यह पूरा इलाका दलित बहुल माना जाता है और कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से रिक्त हुई विधानसभा सीटों पर आगे चलकर उपचुनाव होने हैं।

सियासी फायदा उठाने की कोशिश

उपचुनाव में सियासी फायदा उठाने के लिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस की एक लाबी पार्टी के हाईकमान को उपचुनाव में दलित और आदिवासियों के वोट के गणित का फायदा बताने में जुटी हुई है। यह लाबी राज्यसभा उम्मीदवार फूल सिंह बरैया के लिए खुलकर सामने आ गई है।

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सूबे के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता अखंड प्रताप सिंह ने शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिखकर मांग की है कि फूल सिंह बरैया को राज्यसभा में भेजने के लिए प्राथमिकता में पहले प्रत्याशी के रूप में वोट दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि कांग्रेस के इस कदम से आने वाले उपचुनाव में पार्टी को बड़ा फायदा मिल सकता है।

बरैया ने कही यह बात

दूसरी ओर कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार फूल सिंह बरैया का कहना है कि हमें भी सुनने में आया है कि कांग्रेस के कुछ लोगों ने कहा है कि मेरे से राज्यसभा जाने से उपचुनावों में दलित आदिवासी वोटों का फायदा पार्टी को मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस बारे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का जो भी फैसला होगा उसे हम सभी स्वीकार करेंगे। वैसे उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में हम से कहीं ज्यादा दिग्विजय सिंह का जीतना जरूरी है।

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दिलचस्प है यह तथ्य

इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि दिग्विजय सिंह के लिए खतरा बन गए फूल सिंह बरैया को वे खुद ही पार्टी में ले आए थे। बरैया ने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ की मौजूदगी में अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थामा था। बरैया पहले बहुजन समाज पार्टी में भी रह चुके हैं।

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अब कांग्रेस की एक लॉबी उनके कंधों पर सवार होकर दिग्विजय सिंह को सूबे की सियासत में किनारे लगाने की कोशिश में जुटी हुई है। अब हर किसी की नजर इस बात पर है कि पार्टी में चल रही इस उठापटक से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कैसे निपटता है।

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