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पंजाब में जोड़-तोड़ का खेलः चुनाव में बाकी है डेढ़ साल पर सरगर्मियां शुरू
शिअद नेतृत्व से नाराज चल रहे पार्टी के पुराने टकसाली नेता राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा की नवगठित पार्टी नया आकली दल में जाने लगे हैं। ऐसे में शिअद के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं।
नील मणि लाल
अमृतसर। हालांकि पंजाब विधानसभा चुनाव को कमोबेश अभी डेढ़ साल का समय है लेकिन यहां राजनितिक सरगर्मियां अभी शुरू हो गई हैं। इसीबीच शिरोमणि अकाली दल को दो साल के भीतर दूसरा बड़ा झटका लगा है। शिअद नेतृत्व से नाराज चल रहे पार्टी के पुराने टकसाली नेता राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा की नवगठित पार्टी नया आकली दल में जाने लगे हैं। ऐसे में शिअद के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। वैसे, पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि ढींडसा के नई पार्टी बनाने से शिअद पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
पिछले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले शिअद के सबसे पुराने नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने अपनी नई पार्टी ' शिरोमणि अकाली दल टकसाली' बनाकर चुनाव लड़ा था। यह बात दिगर है कि टकसाली अकाली दल का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया था, लेकिन अकाली दल टकसाली ने शिरोमणि अकाली दल को नुकसान जरूर पहुंचाया था।
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नया शिरोमणि अकाली दल
पिछले दिनों शिरोमणि अकाली दल से बगावत कर वरिष्ठ अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा ने अपनी नई पार्टी ' नया शिरोमणि अकाली दल' का गठन कर लिया। इस पार्टी में न केवल शिअद से नाराज चल रहे नेता ही शामिल हुए बल्कि शिअद को छोड़ करीब दो साल पहले शिरोमणि आकाली दल टकसाली में जाने वाले नेता भी अब नए अकाली दल में शामिल होने लगे हैं।
ये नेता शामिल
इससे नाराज आकली दल टकसाली के प्रधान रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने ऐसे नेताओं को पीछ में खंजर घोपने वाला नेता कहा है। नया शिरोमणि अकाली दल में शामिल होने वाले नेताओं में शिअद के कद्दावर नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, डीएसजीएमसी के पूर्व अध्यक्ष मनजीतह जीके, बलवंत सिंह रामूवालिया, रजिंदर आदि नेता शामिल हैं।
एसजीपीसी को मुक्त कराना है
नई पार्टी का गठन करने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा ने कहा कि वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को सुखबीर बादल से मुक्त करवाना चाहते हैं। एसजीपीसी पंजाब की राजनीति को काफी हद तक प्रभावित करती है। मौजूदा समय में शिरोमणि अकाली के समर्थन वाले एसजीपीसी सदस्य इस समय वहां के पदाधिकारी हैं। इसलिए कांग्रेस हो या नव गठित पाटियां सबकी नजर एसजीपीसी पर अपना वर्चस्व कायम करने रहती है।
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कही ये बात
इधर, शिरोमणि आकाली दल के प्रवक्ता डॉ: दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि ढींडसा द्वारा अपनी पार्टी का नाम अकाली दल रखना गैर कानूनी है। उन्होंने कहा कि कोई भी गली-मोहल्ला स्तर की बैठक कर सौ साल पुरानी पार्टी को बदलने का दावा नहीं कर सकता।
ढींडसा के साथ आए शिअद के वरिष्ठ नेता बीर दविदर सिंह ने कहा कि सुखबीर बादल अकाली दल की रीतियों नीतियों को छोड़ चुके हैं। इस लिए पार्टी को छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि शिअद छोड़ कर जो कोई भी हमारी नई पार्टी में आएगा उसका स्वागत है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के सलाहकार महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल ने ढींडसा को मौका परस्त बताया।
पंजाब में शिअद का अपना वोट बैंक
पंजाब की सियासत में सौ साल पुरानी शिरोमणि अकाली बादल का अपना वोट बैंक हैं। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सुखदेव सिंह ढींडसा शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल और उनकी पार्टी को चुनौती दे सकते हैं। उधर, ढींडसा का शिअद की सहयोगी पार्टी भाजपा से नजदीकी रिश्ते हैं।
कयास यह भी लगाया जा रहा है कि ऐसे ही रहा तो आगामी विधानसभा चुनावों में ढींडसा भाजपा का समर्थन कर उसे शिअद के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। जब 1999 में शिरोमणि अकाली दल बादल सत्ता में था तो पार्टी के दिग्गज नेता जत्थेदार गुरचरन सिंह टोहड़ा भी पार्टी से बगावत करके अलग हो गए थे।
सौ साल में 21 बार टूटा शिअद
14 दिसंबर 1920 को गठित हुआ शिरोमणि अकाली दल अपने गठन के बाद से यह 21 बार टूट चुका है। सौ साल पुरानी इस पार्टी के पहले अध्यक्ष सुखमुख सिंह झब्बाल और बाबा खड़क सिंह दूसरे और मास्टर तारा सिंह पार्टी के तीसरे अध्यक्ष हुए। कहा जाता है कि इनके नेतृत्व में पार्टी का आधार बढ़ा और वह पंजाब में मजबूत हुई।
इस बीच 1984 में अकाली दल दो गुटों में विभाजित हो गया। पहला गुट अकाली दल लोंगोवाल और दूसरा आकली दल यूनाइटेड हो गया। लोगांवाल गुट का नेतृत्व संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के पास था, जबकि यूनाइटेड अकाली का प्रतिनिधित्व बाबा जोंगिंदर सिंह ने किया।
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शिरोमणि अकाली दल फिर से तीन धड़ों में बंट गया
इसके ठीक एक साल बाद यानी, 20 अगस्त 1985 में लोंगोंवाल के निधन के बाद सुरजीत सिंह बरनाला ने पार्टी की कमान संभाली।इसके एक साल बाद ही आठ मई 1986 को शिरोमणि अकाली दल दो धड़ों में फिर बंट गया। ये धड़े थे अकाली दल बरनाला और अकाली दल बादल।
फिर एक साल बाद ही शिरोमणि अकाली दल फिर से तीन धड़ों में बंट गया। और ये तीन धड़े हुए सुरजीत सिंह बरनाला का, दूसरा प्रकाश सिंह बादल और तीसरा धड़ा बना जोगिंदर सिंह का। इसी साल 5 फरवरी 1987 को अकालीदल बादल, यूनीफाइड आकली दल सिंमरजीत सिंह मान और जोगिंर सिंह गुट का विजय अकाली दल बादल में हो गया।15 मार्च 89 तक शिअद के तीन गुट अकाली दल लोंगोवाल, अकाली दल जगदेव सिंह तलवंडी और मान गुट राजनीति में सक्रिय रहे।
जत्थेदार उमरानंगल ने अकाली दल उमरानंगल का गठन किया
इसके बाद अकाली दल सिमरजीत सिंह मान ने अकाली दल अमृतसर का गठन कर शिअद से अलग हो गए।जसबरी सिंह रोडे और उनके साथियों ने भी शिअद से अलग हो अकाली दल पंथक का गठन किया।इसी तरह जत्थेदार गुरचन सिंह टोहड़ा ने भी अकाली इंडिया अकाली दल का गठन किया। इसके बाद जत्थेदार उमरानंगल ने अकाली दल उमरानंगल का गठन किया।
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आतंकवाद के दौर में भी टूटा शिअद
शिअद में टूट का सिलसिला जारी रहा। आतंकवाद के दौ में भी निरीह हिंदुओं की हत्या से नाराज हो अकाली दल महंत का गठन हुआ जो लगातार हिंदुओं की हत्या का मामला उठाता रहा। इसी बीच शिरोमणि अकाली दल बब्बर का भी गठन हुआ जो आगे चल कर बब्बर खाला के रूप में जाने जाने लगा। इस बीच पंथक कमेटी के प्रमुख वस्सन सिंह जफरवाल ने अकाली दल जफरवाल का गठन किया।
दिल्ली और हरियाणा में भी टूटा शिअद
दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के पूर्व अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना ने अकाली दल पंथक बनाया। शिरोमणि अकाली दल में दिल्ली के कुछ नेताओं ने अकाली दल नेशनल का गठन किया। इसी तरह पूर्व कैबिनेट मंत्री आकली नेता रवि इंदर सिंह ने भी अलग अकाली दल बनाया। इसका नाम अकाली दल 1920 रखा। यह दल राजनीति में अभी भी सक्रिय है। हरियाणा में भी एसजीपीसी सदस्य रहे जगदीश सिंह झींडा ने शिरोमणि आकली दल का गठन किया।
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2018 और 2020 में टूटा दल
शिरोमणि अकाली दल में टूट का क्रम जारी रहा। साल 2018 में 14 दिसंबर यानी पार्टी के स्थापना दिवस के दिन ही रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने अकाली दल टकसाली का गठन किया। अब जुलाई 2020 में राज्य सभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा ने शिरोमणि अकाली दल के नाम से एक नया दल बनाया। इसके अध्यक्ष भी वह खुद हैं।
शिअद में अब तक के अध्यक्ष
शिरोमणि अकाली दल के गठन से लेकर अब तक पार्टी 21 अध्यक्ष हुए हैं। सुखबीर बादल 21वें अध्यक्ष हैं। पार्टी के अध्यक्षों में गोपाल सिंह कौमी, तारा सिंह, तेजा सिंह, बाबू लाभ सिंह, ऊधम सिंह, ज्ञानी करतार सिंह, प्रीतम सिंह, हुकम सिंह, फतेह सिंह, अच्छर सिंह, भूपिंदर सिंह, मोहन सिंह तुड़, जगदेव सिंह तलवंडी, हरचरण सिंह लोंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला, सिमरजीन सिंह मान, प्रकाश सिंह बादल और अब सुखबीर बादल हैं।
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कांग्रेस ने साधी चुप्पी
अंतरकलह से जूझ रही शिरोमणि अकाली दल बादल के टूट पर फिलहाल कांग्रेसी नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। इस बारे में न तो कांग्रेस का कोई बड़ा लीडर कोई बयान दे रहा है और ना ही जिला और ब्लॉक स्तर के नेता। क्योंकि खुद्ध नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से कांग्रेस अंदर खाते परेशान चल रही है।
भाजपा की निगाहें शिअद के बिखराव पर
शिरोमणि अकाली दल के बिखराव पर भाजपा बेशक खामोश है पर निहागें उसकी वहीं टिकी हैं। इस बीच भाजपा के प्रदेश प्रभारी प्रभात झा ने पंजाब की नई कार्यकारिणी और कोर कमेटी की बैठक की। इस दौरान पार्टी ने जिला अध्यक्षों से फीडबैक ली कि उनके जिले में शिरोमणि अकाली दल के कितने प्रभावशाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के साथ गए हैं। भाजपा इस बात से संतुष्ट है कि ढींडसा के साथ वही लोग गए हैं जो लोकसभाचुनाव से पहले शिअद को छोड़ कर गए थे। इसका कोई बड़ा नुकसान न तो भाजपा को होगा और ना ही शिअद को होने वाला है।
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