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खूब गिरी हैं केन्द्र और राज्यों में अल्पमत की सरकारें

आखिरकार महाराष्ट्र में पिछले चार दिनों से चल रहे राजनीतिक ड्रामे का अंत देवेन्द्र फडनवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही हो गया। महाराष्ट्र कोई पहला राज्य नहीं है जहां इस तरह से इतने अल्प समय में राज्य सरकार बहुमत के अभाव में धडाम हो गयी हो।

Dharmendra kumar
Published on: 26 Nov 2019 11:02 PM IST
खूब गिरी हैं केन्द्र और राज्यों में अल्पमत की सरकारें
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श्रीधर अग्निहोत्री

नई दिल्ली: आखिरकार महाराष्ट्र में पिछले चार दिनों से चल रहे राजनीतिक ड्रामे का अंत देवेन्द्र फडनवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही हो गया। महाराष्ट्र कोई पहला राज्य नहीं है जहां इस तरह से इतने अल्प समय में राज्य सरकार बहुमत के अभाव में धड़ाम हो गयी हो। इसके पहले भी देश में कई अन्य राज्यों में भी अल्पमत की सरकारें कुछ ही दिनों में गिरती रही है। यही नहीं राज्यों के अलावा केन्द्र में भी अल्पमत की सरकारें धड़ाम होती रही हैं।

महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस ने अभी शनिवार सुबह आठ बजे ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन इसके सिर्फ चार दिन के भीतर ही फडणवीस ने गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। अभी एक साल पहले ही तो कुछ इसी तरह का हाल कर्नाटक विधानसभा में भी हुआ था। जब भाजपा के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने 17 से 19 मई तक राज्य की बागडोर संभालने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा को 2018 के अलावा साल 2007 में भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 8 दिन बाद राज्य की बागडोर छोड़नी पड़ी।

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यूपी में 1992 में मुलायम सिंह यादव ने चन्द्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर अपनी नई पार्टी समाजवादी पार्टी बनाई और बाबरी ढांचा गिरने के बाद जब 1993 में विधानसभा के चुनाव हुए तो मुलायम सिंह ने काशीराम की पार्टी बहुजन समाज पार्टी से गठबन्धन कर लिया। दोनों ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन पांच साल पूरे होने के पहले ही बसपा ने अपना समर्थन वापस लिया और साझा सरकार गिर गयी।

जबकि 1998 में उत्तर प्रदेश में एक और अल्पमत की सरकार के चलते जगदम्बिका पाल को भी तीन दिन के भीतर अपना इस्तीफा तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भण्डारी को देना पड़ा था। पाल ने 21 फरवरी को रात 10 बजे शपथ ली और 23 फरवरी को शाम 5:30 बजे अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

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हरियाणा में 1990 में जनता दल की ओम प्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्रित्व वाली राज्य सरकार छह दिन बाद ही गिर गयी थी। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी साल 2000 में 3 से 10 मार्च तक सत्ता की बागडोर संभाली और आठवें दिन उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। मेघालय में सीएस मारक भी 1998 में 27 फरवरी से 10 मार्च तक 12 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत के जरूरी विधायक न होने के कारण बाद में इन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

गिरती रही है केन्द्र में भी अल्पमत की सरकारें

जहां तक केन्द्र सरकार की बात है तो वहां पर भी इस तरह के कई मामले सामने आए हैं जिसमें चौ चरण सिंह से लेकर अटल विहारी वाजपेयी तक की सरकारों का गिरना शामिल रहा है। 1977 में जब 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ और कांग्रेस से निकले हुए नेताओं और विपक्ष के कई दलों से मिलकर बनी जनता पार्टी की सरकार बनी।

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जनता पार्टी की इस सरकार में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह सरकार आपसी कलह के चलते जल्द ही गिर गयी। जिसके बाद कांग्रेस और सीपीआई की मदद से 28 जुलाई 1979 में चरण सिंह के प्रधानमंत्रित्व में सरकार का गठन हो गया, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने चौधरी चरण सिंह को बहुमत साबित करने के लिए 20 अगस्त तक का समय दिया तो फलोर टेस्ट के एक दिन पहले यानी 19 अगस्त को ही इंदिरा गांधी ने अपना समर्थन वापस ले लिया। फ्लोर टेस्ट के बिना ही चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद से अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया।

लगभग 9 वर्षो तक देश में कांग्रेस का शासन रहा लेकिन 1987 में हुए बोफोर्स कांड के कारण कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गयी और देश में एक बार फिर जनता दल की सरकार बनी जिसके प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह बने। वीपी सिंह को भाजपा और वामपंथी दलों का बाहर से समर्थन मिला हुआ था। इसके बाद वीपी सिंह के मंडल और आडवाणी के कमंडल के टकराव के चलते वीपी सिंह सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया जिसके कारण देश में एक बार फिर केन्द्र सरकार गिर गयी।

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जनता दल से अलग हुए धड़े समाजवादी जनता पार्टी को कांग्रेस ने अपना समर्थन देकर चन्द्रशेखर को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। लेकिन अभी सात महीने ही हुए थे कि पूर्व प्रधानमत्री राजीव गांधी के घर की जासूसी की बात सामने आने के बाद 2 मार्च 1991 को दो पुलिस वालों को उनके घर की जासूसी करते पकड़ा गया जिसे लेकर खूब राजनीतिक शोरशराबा हुआ। कांग्रेस ने चन्द्रशेखर से अपना समर्थन वापस ले लिया और सदन में बहुमत साबित करने की स्थिति आने से पहले ही चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

1998 में लोकसभा चुनाव हुए तो किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन अन्नाद्रमुक की मदद से भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के तहत केंद्र में सरकार बनाई, लेकिन 13 महीने बाद अन्नाद्रमुक ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई। विपक्ष की मांग पर राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने को कहा, लेकिन संसद में जब बहुमत साबित करने का अवसर आया तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई।



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