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कांग्रेस का भविष्य: मोदी को ललकारने वाले राहुल या कार्यकारी अध्यक्ष
लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करने वाली कांग्रेस अब 2024 की तैयारी में जुट गई है।
लखनऊ: लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करने वाली कांग्रेस अब 2024 की तैयारी में जुट गई है। सोनिया गांधी की अस्वस्थता के बीच राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों ही कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ताओं की उम्मीद का तारा बने हुए हैं। सोनिया गांधी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए तैयार हैं तो पूर्णकालिक अध्यक्ष के तौर पर क्या कांग्रेस उन राहुल गांधी पर दांव लगाने को तैयार होगी जो भारत की मोदी राजनीति काल में अकेले ही मोदी सरकार के खिलाफ तलवार भांजते दिखाई दे रहे हैं। सोमवार को प्रस्तावित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गांधी- नेहरू परिवार से बाहर के किसी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी लाया जा सकता है।
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कांग्रेस की राजनीति के लिए सोमवार का दिन निर्णायक
कांग्रेस की भावी राजनीति के लिए सोमवार का दिन निर्णायक साबित हो सकता है। पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की लगातार बीमारी की वजह से नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की मांग तेज हुई है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गंवाने के बाद राजस्थान में जिस तरह के राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा । राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के नेता अलग-अलग सुर अलापते देखे गए हैं। संजय झा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा है । इस सब के पीछे सोनिया गांधी की बीमारी और कम सक्रियता को बड़ी वजह माना जा रहा है।
सोमवार को प्रस्तावित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सभी 24 सदस्यों के शामिल होने की संभावना है क्योंकि यह बैठक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होगी। जिसमें सभी को अपनी बात कहने का मौका मिलेगा। उत्तर प्रदेश से कांग्रेस वर्किंग कमेटी में तीन नेताओं आरपीएन सिंह जितिन प्रसाद और राज बब्बर को जगह मिली हुई है। सीडब्ल्यूसी की विशेष बैठकों में प्रदेश अध्यक्ष और विधान मंडल दल के नेता को भी बुलाया जाता है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और विधान मंडल दल के नेता आराधना मिश्रा मोना को इस बैठक में शामिल नहीं किया गया है जाहिर है कि जो भी फैसला होगा वह सीडब्ल्यूसी के 24 सदस्य ही करेंगे।
उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी के भीतर कई विचार
कांग्रेस में सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी के भीतर कई विचार जन्म ले चुके हैं। पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल ही में राहुल गांधी को के पुराने कथन - 'कांग्रेस का नया अध्यक्ष नेहरू गांधी परिवार से बाहर का होना चाहिए" को उद्धृत करते हुए अपनी मंशा जाहिर कर दी है । उनके इस बयान को कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में सत्ता के नए संघर्ष का प्रतीक माना जा रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस में किसी अन्य राज्य के पुराने कांग्रेसी नेता को अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा तेज हुई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम भी चर्चा में आया है लेकिन बताया जा रहा है कि उन्होंने राजस्थान छोड़ने से साफ मना कर दिया है।
नए अध्यक्ष की तलाश
दक्षिण भारत में अपनी मजबूत स्थिति को देखते हुए कांग्रेस अपने नए अध्यक्ष की तलाश कर्नाटक कर रही है जहां पुराने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार पर निगाहें टिकी हैं। कांग्रेस के जानकारों के अनुसार गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव आने पर पूर्णकालिक अध्यक्ष के बजाय कार्यकारी अध्यक्ष की तैनाती का फार्मूला अपनाया जा सकता है । ऐसे में सोनिया गांधी को कांग्रेस का आजीवन संरक्षक नियुक्त किया जाएगा।
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वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल का कहना है कि कांग्रेस आज जिस मुकाम पर खड़ी है ऐसे में नए अध्यक्ष का चुनाव तो अनिवार्य हो गया है लेकिन राहुल गांधी और कार्यकारी अध्यक्ष के बीच में फैसला होना बाकी है। कांग्रेस में राहुल गांधी के समर्थक नेताओं की तादाद भी बड़ी है जो मानते हैं कि राहुल गांधी ही कांग्रेस का ऐसा चेहरा है जिन पर किसी तरह का भ्रष्टाचार या कोई अन्य आरोप फिट नहीं बैठता है और वह मोदी से सीधे दो-दो हाथ करने का माद्दा रखते हैं। इसके बावजूद कांग्रेस आज राहुल को नेता मानने और ना मानने वालों के बीच में विभाजित है।
राहुल का मूड करेगा फैसला
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में होने वाले निर्णय का दारोमदार बहुत कुछ राहुल गांधी के मूड पर निर्भर करेगा। राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का एक बड़ा वर्ग बेहद सकारात्मक राय रखता है ऐसे वर्ग का मानना है कि कांग्रेस की कमान हर हालत में राहुल गांधी को संभालनी चाहिए। लोगों का यह भी मानना है कि अगर राहुल गांधी ने बैठक में अपने अध्यक्ष बनने के प्रस्ताव का बहुत विरोध नहीं किया तो ज्यादातर कांग्रेसी उन्हें अपना नेता मान लेंगे।
राहुल समर्थक नेताओं का कहना है कि पिछले सालों में कांग्रेस ने भले ही मोदी लहर के सामने कई चुनावों में शिकस्त खाई है लेकिन राहुल गांधी ही हैं जिन्होंने अपने नेतृत्व में राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार बनवाई और नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गढ़ गुजरात में जाकर भाजपा को कड़ी टक्कर दी।
कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी में चोर दरवाजे से सरकार बनाई है ऐसे में राहुल गांधी का नेतृत्व कांग्रेस को आगे ले जाएगा। कांग्रेस में अकेले वही नेता हैं जो नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर खुलकर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का साहस करते हैं। उनकी बेदाग छवि और भ्रष्टाचार रहित राजनीतिक जीवन ही है जिसकी वजह से आज तक उन्हें मोदी सरकार या भारतीय जनता पार्टी कटघरे में नहीं खड़ा कर सकी है।
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ट्वीट कर राहुल के समर्थन में अपनी भावना का इजहार
उन पर हमला करने के लिए भाजपा और संघ को चुटकुलों का सहारा लेना पड़ता है। उत्तर प्रदेश कांग्रेश के प्रशासन प्रभारी सिद्धार्थ प्रिय श्रीवास्तव ने वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले ट्वीट कर राहुल के समर्थन में अपनी भावना का इजहार किया है- "देश अनगिनत झंझावतों से जूझ रहा है, हर वक्त अंधेरे की दहलीज लांघ रहा है। ऐसे समय में कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व की ओर युवा पीढ़ी देख रही है। आदरणीय राहुल गांधी जी भारत के भविष्य हैं CWC की बैठक में नेताओं को अध्यक्ष पद हेतु पहल करनी चाहिए।" इस तरह के कई अन्य संदेश सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहे हैं, जिसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए वकालत कर रहे हैं।
नेहरू-गांधी परिवार से बाहरी नेतृत्व पर गहरा सकता है संकट
नेहरू गांधी परिवार को छोड़कर किसी बाहरी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने का सवाल कांग्रेस के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बेचैन कर रहा है। कांग्रेस के लोगों का ही मानना है कि जब कभी गांधी नेहरू परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को नेता बनाने की कोशिश की गई है तो पार्टी की एकजुटता पर संकट आसन्न हो उठा है। सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसी स्थितियां उत्पन्न की जिसमें उन्हें जबरन हटाना पड़ा।
नेहरू गांधी परिवार के नेतृत्व की डोर ढीली पढ़ते ही कांग्रेस के दिग्गज नेता शरद पवार ने अपनी अलग पार्टी "एनसीपी" और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने "तिवारी कांग्रेस" का गठन कर लिया था। गांधी नेहरू परिवार की शक्ति ही है जिसने राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक साथ आने के लिए विवश किया है ।
अगर गांधी- नेहरू परिवार नहीं होता तो दोनों ही नेता अपनी अलग अलग पार्टी बना चुके होते। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि "राहुल गांधी ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इकलौती उम्मीद हैं। देश के सभी कांग्रेसी कार्यकर्ता चाहते हैं कि वह ऐसे मौके पर कांग्रेस की बागडोर संभाले और नेतृत्व को मजबूती दें। वह इसके लिए खुद तैयार नहीं है लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भावनाओं को देखते हुए कांग्रेस पार्टी के हित में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व स्वीकार करना चाहिए।
रिपोर्ट: अखिलेश तिवारी
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