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BJP में टिकट पर कयासों का दौर, इन विधायकों पर दांव लगाने के मूड में नहीं पार्टी

आगामी यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ महीनों में सभी राजनैतिक दलों में टिकट को लेकर घमासान शुरू हो जाएगा लेकिन सबसे अधिक दिलचस्पी भाजपा को लेकर है।

Shivani Awasthi
Published on: 1 March 2021 6:06 PM GMT
BJP में टिकट पर कयासों का दौर, इन विधायकों पर दांव लगाने के मूड में नहीं पार्टी
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सीतापुर- यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। बस कुछ महीने बाद सभी राजनैतिक दलों में टिकट को लेकर घमासान शुरू हो जाएगा लेकिन सबसे अधिक दिलचस्पी भाजपा को लेकर है। सीतापुर में नौ विधानसभा सीटें हैं। इनमें तीन सीटें एससीएसटी के लिए आरक्षित हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को नौ में से सात सीटें मिलीं थीं।

यूपी विधानसभा चुनाव में सीतापुर से 9 सीटें

खास बात ये है कि सुरक्षित सीटों में से भी दो पर भगवा लहराया था। भाजपा ने सभी सात सीटों पर भारी अंतर जीत अर्जित की थी, जबकि सिधौली और महमूदाबाद में मामूली वोटों से हार का सामना करना पडा था।

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वह दौर नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी लहर का ही था। यही परिद्रष्य कमोवेश अभी भी है, अगर मंहगाई का मसला नजरंदाज कर दिया जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ का फैक्टर हर नुक्कड पर चर्चा का विषय रहता है।

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2022 में भाजपा उम्मीदवारों के नामों पर मंथन शुरू

अब भाजपा के सामने दिक्कत और पशोपेश ये है कि 2022 में जीते हुए चेहरों पर ही दांव लगाया जाए अथवा नये चेहरे उतारे जाएं। इसे लेकर भाजपा और आरएसएस के थिंक टैंकर मंथन करने में जुट गए हैं। अंदरखाने जो चर्चा है इसके मुताबिक नौ में से पांच सीटों पर भाजपा के नये चेहरे देखने को मिल सकते हैं। इसमें एक सुरक्षित सीट भी शामिल है।

भाजपा विधायक सुरेश राही ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई

हरगांव सुरक्षित सीट से भाजपा विधायक सुरेश राही और सेवता सीट से भाजपा विधायक ज्ञान तिवारी चुनाव जीतने के बाद से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। कई बार सरकार और प्रशासन के सामने असहज की स्थित रही।

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विधायक ज्ञान तिवारी ने भी सरकारी मशीनरी पर साधा निशाना

ज्ञान तिवारी आए दिन विकास कार्यों का स्थलीय निरीक्षण कर सरकारी मशीनरी पर नकारा भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते रहते हैं। दूसरी तरफ सुरेश राही तो अभी पिछले माह ही धान खरीद में धांधली के मसले को लेकर धरने पर बैठ गए। प्रशासन ने मनाने की हर कोशिश की लेकिन वे नहीं माने। धांधलीबाजों के खिलाफ केस दर्ज करना पडा। इन दोनों विधायकों के तेवर से सीएम के उन दावों को झूठलाया जिसमें कहा जाता रहा है कि धान खरीद में धांधली नहीं हुई और विकास कार्यों में गुणवत्ता का ध्यान रखा गया।

जिले की प्रभारी मंत्री स्वाती सिंह से विधायक कर चुके सवाल

सुरेश राही के मामले को लेकर जिले की प्रभारी मंत्री स्वाती सिंह से भी सवाल किया गया तो वे भी असहज हुईं, कहा था कि आपस में समझ लेंगे। अब इन दोनों विधायकों पर सरकार की किरकिरी कराने का आरोप तो लगना स्वाभाविक है, जबकि दूसरा पहलू ये रहा कि जनता की आवाज बनकर जनता के बीच रहे। टिकट फाइनल करते समय किन बातों पर गौर किया जाएगा यह तो समय बताएगा लेकिन इन्हें लेकर सवाल कायम हैं।

सदर विधायक राकेश राठौर भी बेहद खफा हैं...

भाजपा के सदर विधायक राकेश राठौर तो चुनाव जीतने के बाद से ही भाजपा से खफा हैं। यूं कहिए सीएम योगी से ही खफा हैं। इसलिए पार्टी और सरकार की ओर से भी उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। वे बेहद खफा हैं। उनसे सरकार को लेकर कोई भी सवाल करिए, जवाब अच्छे शब्दों में नहीं सुनने को मिलेगा। इधर काफी समय से कांग्रेसी नेता उन्हें ज्ञापन सौंपने जा चुके हैं। इशारा काफा है।

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महोली से भाजपा विधायक शशांक त्रिवेदी पर दांव लगामा मुश्किल दिख रहा

राकेश राठौर बसपा से भी चुनाव लड चुके हैं। उनके सामने विकल्प कई हैं। यह पक्का हो चला है कि सदर सीट से भाजपा कोई नया चेहरा उतारेगी। यह भी पक्का है कि वह पिछडी जाति से होगा। इसके अलावा महोली से भाजपा विधायक शशांक त्रिवेदी पर दांव लगाना मुश्किल दिख रहा है।

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पार्टी के अंदर जो सुगबुगाहट चल रही है उसके मुताबिक त्रिवेदी को कोई और बडी जिम्मेदारी दी जा सकती है। यहां भी पिछडा वर्ग से उम्मीदवार की तलाश करने पर विचार चल रहा है लेकिन इस पर सहमति सीमित दायरे तक है। जबकि ब्राम्हण कार्ड खेलने पर जोर देने की रणनीति है।

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सीतापुर की विधानसभा सीटों पर मौजूदा MLA के ये हाल

मिश्रिख से भाजपा विधायक रामक्रष्ण के परिवार से अगर जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए लाया जाता है तो फिर रामक्रष्ण को फिर से टिकट न मांगने के लिए कहा जा सकता है। क्योंकि यहां भाजपा के पास कई विकल्प हैं।

लहरपुर से सुनील वर्मा पहली बार चुनाव लडे थे, जीत गए। कम उम्र में यह मौका कम लोगों को ही मिलता है। वे सांसद राजेश वर्मा के नजदीकी हैं। इसलिए उनका टिकट कटना मुश्किल है।

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सिधौली और महमूदाबाद में भी भाजपा उम्मीदवार बदले जा सकते हैं क्योंकि पिछली बार जो लडे थे उनका नाम भी लोग भूलने लगे हैं। वैसे भी 2017 में इन उम्मीदवारों पर भाजपा का फैसला हैरत करने वाला था।

अब 2022 में भी जाहिर है विकास कोई मुददा नहीं होगा। धर्म, राष्ट्रवाद, जातिवाद, आतंकवाद, लवजिहाद पर चुनाव सिमटेगा। बेरोजगारी, मंहगाई, सडक पानी बिजली जैसे मुददे नजर नहीं आएंगे, जैसाकि अतीत के चुनाव में देखा जा चुका है।

पुतान सिंह, सीतापुर

Shivani Awasthi

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