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उत्तराखंड तो बस एक शुरुआत, बेफिक्र मुख्यमंत्रियों का शुरू हुआ फाइनल राउंड

जिन राज्यों में मुख्यमंत्री अब असंतोष को संभाल नहीं पाएंगे उन्हें विकल्प दिए जा सकते हैं। फिलहाल तो उत्तराखंड से शुुरुआत हो रही है लेकिन आने वाले समय में हरियाणा समेत अन्य राज्य भी इस लाइन में आ सकते हैं जहां मुख्यमंत्री की छवि कमजोर नेता की बन चुकी है।

Shreya
Published on: 9 March 2021 3:20 PM IST
उत्तराखंड तो बस एक शुरुआत, बेफिक्र मुख्यमंत्रियों का शुरू हुआ फाइनल राउंड
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उत्तराखंड तो बस एक शुरुआत, बेफिक्र मुख्यमंत्रियों का शुरू हुआ फाइनल राउंड

अखिलेश तिवारी

लखनऊ: मुख्यमंत्रियों को शासन चलाने के लिए पांच साल का मौका देने वाली भाजपा क्या अपने काम-काज का अंदाज बदल रही है। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार की अवधि पूरी होने से एक साल पहले हो रही विदाई ने दूसरे राज्यों में भी खतरे की घंटी बजा दी है। जो मुख्यमंत्री अब तक बेफिक्र होकर मनमानी शासन चला रहे हैं और विधायकों व पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रहे हैं उनका फाइनल राउंड शुरू हो गया है। भाजपा नेतृत्व ने तय कर लिया है कि मुख्यमंत्रियों के बेअंदाज तौर-तरीकों का नुकसान अब पार्टी नहीं भुगतेगी।

राज्यों में स्थिर नेतृत्व की नीति को प्रमुखता

भारतीय जनता पार्टी में सात साल पहले जब मोदी युग की शुरुआत हुई तो नेतृत्व ने प्रभावकारी शासन के लिए राज्यों में स्थिर नेतृत्व की नीति को प्रमुखता दी। राज्यों में मुख्यमंत्री पद पर नेता का चयन करने के बाद बदलाव का चैप्टर ही बंद कर दिया गया। इसका फायदा भी हुआ कि राज्यों में आंतरिक राजनीति और गुटबाजी को बढ़ावा नहीं मिल सका बल्कि कई राज्यों में गुटबाजी ने दम तोड़ दिया।

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manohar lal khattar (फोटो- सोशल मीडिया)

इन मुख्यमंत्रियों को नेतृत्व ने दिया मौका

हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ विधायकों व पार्टी में असंतोष के स्वर उठने के बावजूद उन्हें दूसरी बार भी मुख्यमंत्री पद सौंपा गया। हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर को प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने पर मौका दिया गया और वह अब तक सरकार चला रहे हैं। इसी तरह असम के मुख्यमंत्री पद पर सर्वानंद सोनोवाल प्रदेश में भाजपा सरकार गठन के बाद से बने हुए हैं।

गुजरात में विजय रूपानी को 2016 में मुख्यमंत्री का ओहदा मिला और उन्हें भी अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर दिया जा रहा है। झारखंड में भी रघुवरदास को कार्यकाल पूरा करने का मौका दिया गया और चुनाव भी उनके नेतृत्व में ही लड़ा गया। यह अलग बात है कि झारखंड में पार्टी की वापसी नहीं हो पाई। तमाम शिकायतों के बावजूद कर्नाटक में बीएस येदिुयुरप्पा ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को दोबारा मौका दिया गया।

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छत्तीसगढ़ में रमन कुमार और राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया को भी शासन करने का पूरा मौका दिया गया। छत्तीसगढ़ में भी रमन कुमार के खिलाफ नाराजगी सतह पर थी। राजस्थान में पहले से ही संकेत मिल रहे थे कि मुख्यमंत्री वसुंधरा से मतदाता खासे नाराज हैं। इसके बावजूद पार्टी ने दोनों को अभयदान दे रखा था।

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस पर लगाया दांव

महाराष्ट्र में भी पार्टी ने देवेंद्र फडणवीस पर ही दांव लगाया और शिवसेना से दोस्ती तोड़ना स्वीकार किया लेकिन फडणवीस को हटाने का प्रस्ताव कुबूल नहीं किया। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपना चार साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं हालांकि एक बार उनके सैकड़ों विधायकों ने सदन के अंदर बगावत कर दी थी तब भी नेतृत्व ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

cm trivendra rawat (फोटो- सोशल मीडिया)

उत्तराखंड ने बदला पार्टी नेतृत्व का मन

उत्तराखंड की राजनीति और विधायकों की बगावत ने भाजपा नेतृत्व को जैसे सोते से जगा दिया है। भाजपा नेतृत्व के कृपापात्र बनकर जो मुख्यमंत्री अपनी मनमानी हुकूमत चला रहे हैं। भाजपा संगठन और विधायकों की अनदेखी कर रहे हैं उनके बारे में अब पार्टी नेतृत्व सख्त हो चला है। भाजपा नेतृत्व ने मान लिया है कि सत्ता की चाबी उसे कार्यकर्ताओं की मेहनत और समपर्ण भावना से मिली है।

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इसे ऐसे राजनेताओं की महत्वाकांक्षा की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता है जो लोकतांत्रिक तरीकों से दूर रह कर चंद नेताओं व अधिकारियों के जरिये मनमानी सरकार चला रहे हैं। भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय सूत्रों का कहना है कि किसान आंदोलन समेत अन्य मुद्दों पर भी राज्यों में नेतृत्व अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाया है। लोगों की नाराजगी बढऩे की वजह से अब नेतृत्व ने सख्त रुख अपना लिया है।

bjp (फोटो- सोशल मीडिया)

उत्तराखंड से हो रही शुरुआत

जिन राज्यों में मुख्यमंत्री अब असंतोष को संभाल नहीं पाएंगे उन्हें विकल्प दिए जा सकते हैं। फिलहाल तो उत्तराखंड से शुुरुआत हो रही है लेकिन आने वाले समय में हरियाणा समेत अन्य राज्य भी इस लाइन में आ सकते हैं जहां मुख्यमंत्री की छवि कमजोर नेता की बन चुकी है।

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