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अब नई राजनीति का अखाड़ा बनेगा अमेरिका, ट्रंप खिलाएंगे गुल

ट्रम्प ने अपने विदाई संबोधन में कहा है कि ‘हम किसी न किसी रूप में वापस आएंगे।’ ट्रम्प ने ये भी कहा है कि मामला ख़त्म नहीं हुआ है और अभी तो ये शुरुआत है और बेस्ट आना अभी बाकी है।

Ashiki
Published on: 21 Jan 2021 5:07 PM GMT
अब नई राजनीति का अखाड़ा बनेगा अमेरिका, ट्रंप खिलाएंगे गुल
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अब नई राजनीति का अखाड़ा बनेगा अमेरिका, ट्रंप खिलाएंगे गुल

नीलमणि लाल

लखनऊ: डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस से बिदाई हो गयी है लेकिन ये साफ़ है कि ट्रम्प चुपचाप बैठने वाले नहीं हैं। अब वो एक नई राजनीतिक पार्टी लांच करने पर विचार कर रहे हैं जिसका नाम ‘पेट्रियट पार्टी’ होगा। ट्रम्प ने अपने विदाई संबोधन में कहा है कि ‘हम किसी न किसी रूप में वापस आएंगे।’ ट्रम्प ने ये भी कहा है कि मामला ख़त्म नहीं हुआ है और अभी तो ये शुरुआत है और बेस्ट आना अभी बाकी है। अब ट्रम्प अगर ‘पेट्रियट पार्टी’ लाते हैं तो अमेरिका के राजनीतिक पटल पर ये एक बहुत बड़ा बदलाव होगा क्यों यहाँ हमेशा से दो पार्टियों के बीच चुनाव होता आया है। बहुदलीय व्यवस्था के साथ अमेरिका भी थर्ड वर्ल्ड की राजनीति वाला देश बन जाएगा।

इस वजह से पार्टी में भी ट्रम्प विरोधियों की संख्या बढ़ी

अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के भीतर डोनाल्ड ट्रम्प को लेकर काफी खींचतान है। चुनाव में धांधली के मसले पर भी ट्रम्प को रिपब्लिकन पार्टी के भीतर से पूरा समर्थन नहीं मिला। खासतौर पर 6 जनवरी को कैपिटल बिल्डिंग में ट्रम्प समर्थकों के हल्ला बोल के बाद रिपब्लिकन पार्टी में ट्रम्प विरोधियों की संख्या बढ़ गयी है। कांग्रेस में महाभियोग आने पर भी रिपब्लिकन पार्टी के दस सीनेटरों ने ट्रम्प के खिलाफ वोट दिया था। लेकिन बहुत से रिपब्लिकन ट्रम्प के साथ मजबूती से खड़े नजर आये।

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donald trump

रिपब्लिकन पार्टी का जो हाल है उसमें मुश्किल है कि 2024 के प्रेसिडेंट चुनाव के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को पार्टी अपना प्रत्याशी बनायेगी। ट्रम्प को 2021 के चुनाव में साढ़े सात करोड़ पॉपुलर वोट मिले हैं सो वो नई पार्टी बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। पेट्रियट पार्टी के नाम से ट्विटर पर एक अकाउंट भी बन गया है जिसके फलोअर्स की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। हालाँकि ट्रम्प ने नई पार्टी के बारे में विधिवत घोषणा नहीं की है सो ऐसा माना जा रहा है कि पेट्रियट पार्टी का ट्विटर अकाउंट यूं ही किसी ने बना दिया है या फिर हो सकता है कि समर्थकों का मूड भांपने के लिए ऐसा किया गया हो।

प्रेसिडेंट की कुर्सी से हटने के बाद भी प्रभाव जारी रखेंगे ट्रम्प

बहरहाल, नई पार्टी बना कर डोनाल्ड ट्रम्प प्रेसिडेंट की कुर्सी से हटने के बाद भी अपना प्रभाव जारी रखेंगे। भले ही ट्रम्प के खिलाफ कई रिपब्लिकन नेता बयानबाजी कर चुके हैं लेकिन फिर भी रिपब्लिकन पार्टी और पार्टी समर्थकों में ट्रम्प लोकप्रिय हैं। ट्रम्प की लोकप्रियता इस चुनाव में उनको मिले वोटों से साफ़ दिखाई पड़ती है। सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा ट्रम्प को बैन किये जाने के बाद ट्रम्प समर्थक दक्षिणपंथी सोशल मीडिया में जिस तरह जबरदस्त भीड़ बड़ी है उससे दिखाई पड़ता है कि ट्रम्प से लोगों को अभी बहुत उम्मीदें हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने बिदाई संबोधन ने कहा कि उनका प्रशासन सबसे अलग था। ये सही बात है। ट्रम्प के काम करने का तरीका और उनकी नीतियां सामान्य राजनीति से एकदम अलग रहीं हैं। ट्रम्प ने अमेरिका में राष्ट्रवाद का नया फार्मूला लागू किया और राजनीति के स्थापित कब्जेदारों को पास फटकने नहीं दिया था। यही वजह थी कि ट्रम्प वाशिंगटन डीसी के राजनीतिक हलकों में आउटसाइडर माने जाते रहे और उनको स्वीकार नहीं किया गया।

ट्रम्प की नीतियां और बिडेन

डोनाल्ड ट्रम्प के जाने के बाद नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन की प्राथमिकता सूची तय है। बिडेन ने 15 एग्जीक्यूटिव आर्डर पर हस्ताक्षर किये हैं जिनमें ट्रम्प के महत्वपूर्ण फैसलों को पलटा गया है।

trump-biden

बिडेन ने जिन आदेशों पर हस्ताक्षर किये हैं उनमें पेरिस जलवायु समझौते में फिर शामिल होना, डब्लूएचओ से अमेरिका के हटने पर रोक लगाना, मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने का काम रोकना, 100 दिनों तक अनिवार्य रूप से मास्क पहनना और मुस्लिमों पर प्रतिबंध खत्म करना भी शामिल है। बिडेन ने पहले ही ये काम करने का वादा किया था। इन आदेशों के अलावा बिडेन ने अमेरिकी नागरिकता से सम्बंधित एक बिल कांग्रेस को भेजा है।

अब क्या रुख अपनायेगा मीडिया

डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण करने से लेकर आज तक अमेरिका मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग उनकी बुरी तरह से मुखालफत करने में जुटा रहा। इसका सबसे कारण ये है कि ज्यादातर बड़े मीडिया समूह इलीट लिबरल द्वारा संचालित किये जाते हैं। अब तक तो ये मीडिया हाउसेज दावा करते रहे थे कि वो निष्पक्ष हैं जबकि ट्रम्प इनको फेक मीडिया के नाम से बुलाया करते हैं। बहरहाल अब मीडिया पर निगाह रखें वाले लोगों और संस्थानों की नजर इस पर रहेगी कि प्रेसिडेंट जो बिडेन के प्रति मीडिया का क्या रुख रहता है। क्या मीडिया पहले की तरह आग उगलता रहेगा या शांत पड़ जाएगा, ये बहुत करीब से देखा जाएगा।

बिडेन और उनके प्रशासन को हाथों हाथ लेगा मीडिया!

लेकिन अभी तक जो संकेत हैं उससे लगता है कि मीडिया जो बिडेन और उनके प्रशासन को हाथों हाथ लेगा। बिडेन के एक सलाहकार पहले ही एमएसएनबीसी की एंकर स्टेफनी रहले को उनकी ‘मदद’ के लिए धन्यवाद दे चुके हैं, ट्विटर पहले से ही बिडेन की खिलाफत वाली पोस्ट्स को सेंसर कर रहा है, कमला हैरिस के बारे में खुशामदी लेख प्रमोट किये जा रहे हैं, वाशिंगटन पोस्ट ने व्हाइट हाउस में अब ‘जमीनी वास्तविकता वाली ब्रीफिंग’ लौटने का स्वागत किया है और सीएनएन नए प्रेसिडेंट के बारे में जबरदस्त गुणगान करने में जुटा है – ये सब बिडेन के शपथ ग्रहण से पहले ही शुरू हो चुका था।

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भारत को बिडेन से बड़ी उम्मीदें

अमेरिका के नए प्रेसिडेंट जो बिडेन प्रशासन से भारत को बड़ी उम्मीदें हैं। अमेरिका के साथ 6 अरब डालर के व्यापार की बहाली, वीजा पर लगी बंदिशों को हटाया जाना, पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती और चीन से टक्कर में मजबूत मदद ये सब तो चाहिए ही। साथ में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में एंट्री के लिए अमेरिका कि मदद चाहिए, एटमी सप्लायर्स ग्रुप में भी भारत को एंट्री चाहिये।

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बिडेन ने अपने चुनाव अभियान में भारत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख ही दिखाया था और वादा किया था कि ट्रम्प प्रशासन के समय लगे सभी प्रतिबन्ध हटा लिए जायेंगे। बिडेन प्रशासन में ज्यादातर लोग बराक ओबामा के कार्यकाल वाले ही हैं सो भारत को वही उम्मीद करनी चाहिए जो ओबामा के समय में मिला था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अब समय बदल चुका है। कोरोना के कारण स्थितियां नार्मल नहीं हैं, अमेरिकी समाज बहुत बंटा हुआ है, आर्थिक संकट है, अमेरिका में ट्रम्प द्वारा लाया गया राष्ट्रवाद हावी है। ऐसे में बिडेन के लिए ट्रम्प की नीतियों को पूरी तरह पलट पाना मुश्किल है। जब तक कोरोना के साथ आया आर्थिक संकट दूर नहीं हो जाता तबतक आर्थिक मोर्चे पर भारत को बहुत उम्मीदें नहीं हैं।

वीजा का मसला :

बिडेन ने अभी तक यही रुख अपनाया है कि वीजा के नियम आसान किये जायेंगे। बिडेन चाहते हैं कि हाई स्किल वाले वीजा की संख्या बढ़ा दी जाये। बिडेन के चुनाव अभियान की वेब साईट में कहा गया था कि विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में डॉक्टरेट करने के लिए अमेरिका छात्रों को तत्काल ग्रीन कार्ड देगा। लेकिन मेरिका में अभी जिस तरह की बेरोजगारी का आलम है उसमें बिडेन के लिए एच१बी वीजा नियमों को आसान नहीं करने का दबाव रहेगा।

व्यापार :

डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापर के मसले पर बहुत सख्त रुख अपना रखा था और भारत को 6 अरब डालर के लाभ रोक दिए थे। ये मसला अब भी लटका हुआ है। बिडेन ने सीमा शुल्क के मसले पर अपनी पोजीशन साफ़ नहीं की है। कोरोना के कारण अमेरिका पर आर्थिक संकट का काला साया है और नए प्रेसिडेंट को इससे अभी बहुत जूझना बाकी है। बिडेन ने ट्रम्प की तरह अमेरिकी कंपनियों के साथ खड़े होने का वादा किया है। सो भारत को बिडेन से व्यापार के मोर्चे पर कोई मदद या नरमी की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

डेमोक्रेट्स भले ही सोशलिस्ट रुख रखते हों लेकिन फ्री ट्रेड अग्रीमेंट यानी एफटीए के मसले पर तत्काल कोई नरमी नहीं दिखने वाली है। इसकी वजह ये है कि भारत श्रम और पर्यावरण सम्बन्धी अमेरिकी मानकों को पूरा करने से बहुत पीछे है और बिडेन भी पहले कह चुके हैं कि वो एफटीए पर पुनर्विचार नहीं करेंगे।

चीन से टक्कर :

भारत और अमेरिका, दोनों के लिए चीन एक बड़ी चिंता का विषय है। भारत-अमेरिका के रिश्तों में चीन का मसला बड़ी भूमिका निभा सकता है। वैसे तो बिडेन और कमला हैरिस सोशलिस्ट विचार रखते हैं सो देखना होगा कि चीन के प्रति उनका क्या रवैया होगा। चीन के रुख से लग रहा है कि वो बिडेन के प्रेसिडेंट बनने से खुश है। वैसे तो बिडेन ने कहा है कि वो मानवाधिकार के मसले पर चीन के खिलाफ हैं। चीन के राष्ट्रपति को बिडेन ‘ठग’ तक कह चुके हैं। ऐसे में ट्रम्प की सख्त एंटी चीन नीतियों को पलट पाना मुमकिन हैं लगता। अब चीन के खिलाफ भारत के साथ बिडेन क्या रुख अपनाएंगे ये देखने वाली बात होगी।

US President Joe Biden not removing Trump tariffs china trade deal

पाक के प्रति सख्त :

पाकिस्तान के प्रति भी नीतियों में बदलाव नहीं होगा। बिडेन प्रशासन की ओर से पाकिस्तान को आतंकियों को मदद करने के खिलाफ आगाह किया गया है। अमेरिका के भावी रक्षा मंत्री जनरल (रिटायर्ड) लॉयड ऑस्टिन ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान को अपना रवैया बदलना होगा। लश्कर ए तोयबा और अन्य भारत विरोधी आतंकियों को मदद पहुंचाने की नीयत से बाज आना होगा। ऑस्टिन ने साफ किया कि मेरा उद्देश्य भारत के साथ रक्षा संबंधों के लिए साझेदारी को जारी रखना होगा। ऑस्टिन ने सीनेट सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों को बताया कि वे अमेरिका और भारतीय साझा सैन्य हितों के सहयोग के लिए प्रयास करेंगे।

इस वजह से पाकिस्तान के प्रति गहरी नाराजगी

उन्होंने सदस्यों को बताया कि वे पाकिस्तान से साफ तौर पर कहेंगे कि वह हिंसक चरमपंथी संगठनों और आतंकवादियों को अपनी जमीन का इस्तेमाल करने से रोके। उन्होंने आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई न करने पर पाकिस्तान के प्रति गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि भारत विरोधी आतंकी संगठनों लश्कर और जैश ए मोहम्मद के खिलाफ पाकिस्तान सख्त कार्रवाई नहीं कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि बिडेन प्रशासन की ओर से पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया गया है।

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ऑस्टिन ने कहा कि 2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद आतंकी हमलों की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पाकिस्तान आतंकियों पर लगाम लगाने में मदद नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान को अपना रवैया बदलना होगा और आतंकियों पर नकेल कसनी होगी। हमें आतंकियों के साथ नरम रवैया की नीति मंजूर नहीं है। उन्होंने भविष्य में भी भारत के साथ रक्षा सहयोग जारी रखने का एलान करते हुए कहा कि हम क्वाड के जरिए रक्षा सहयोग के दायरे को और बढ़ाने की कोशिश करेंगे। क्वाड में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत भी शामिल है।

टोनी ब्लिंकन से भी उम्मीदें

अमेरिका के नामित विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन ने भी भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की नीति जारी रखने का संकेत दिया है। ब्लिंकन ने सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के सामने रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत नीति का समर्थन किया। चार घंटे से भी ज्यादा समय तक चली इस बैठक में उन्होंने कहा कि भारत के साथ सहयोग की नीति क्लिंटन प्रशासन के आखिरी दिनों में शुरू हुई थी। ओबामा प्रशासन के दौर में रक्षा खरीद और सूचना साझेदारी में सहयोग बढ़ा। ट्रंप प्रशासन ने इसे आगे बढ़ाकर हिंद प्रशांत सहयोग की रणनीति पर काम किया।

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भारत का आन्तरिक मामला :

भारत के आन्तरिक मामलों पर डोनाल्ड ट्रम्प ने कभी कोई विपरीत रुख प्रदर्शित नहीं किया था। लेकिन कमला हैरिस पहले से ही भारत की कश्मीर नीति की सार्वजानिक तौर पर निंदा करती रहीं हैं। डिप्लोमेसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिडेन प्रशासन में भारत की ‘राष्ट्रवादी’ नीतियों पर सख्त रुख अपनाया जाएगा। 2015 में जब तत्कालीन अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा भारत आये थे तब उन्होंने भारत में धार्मिक असहिष्णुता की बात कही थी। भले ही बिडेन प्रशासन अब खुले तौर पर कुछ न कहे लेकिन डिप्लोमेटिक तरीके से ये मसला उठाये जाने की आशंका रहेगी। सीएए के मसले पर डेमोक्रेट्स नेता भी भारत विरोधी बयानबाजी कर चुके हैं। अब देखने वाली बात होगी कि आगे बिडेन प्रशासन क्या रुख प्रदर्शित करता है।

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