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यूपी की जंग ने बिहार में यूं दिखाया असर, चाहकर भी हाथ नहीं मिला सके पप्पू और उपेंद्र

बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा ने बहुजन समाज पार्टी और जाप के अध्यक्ष पप्पू यादव ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन कर रखा है। इन दोनों दलों के बीच यूपी में दलित वोटों के लिए जंग छिड़ी हुई है।

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Published on: 10 Oct 2020 5:34 PM GMT
यूपी की जंग ने बिहार में यूं दिखाया असर, चाहकर भी हाथ नहीं मिला सके पप्पू और उपेंद्र
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उत्तर प्रदेश में दो सियासी ताकतों के बीच दलित वोटों के लिए छिड़ी जंग की गूंज बिहार विधानसभा चुनाव तक पहुंच गई है।

अंशुमान तिवारी

पटना: उत्तर प्रदेश में दो सियासी ताकतों के बीच दलित वोटों के लिए छिड़ी जंग की गूंज बिहार विधानसभा चुनाव तक पहुंच गई है। दलित वोटों की इस लड़ाई के कारण ही चुनाव से पहले बिहार में बने दो चुनावी गठबंधनों में एका नहीं हो सका।

बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा ने बहुजन समाज पार्टी और जाप के अध्यक्ष पप्पू यादव ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन कर रखा है। इन दोनों दलों के बीच यूपी में दलित वोटों के लिए जंग छिड़ी हुई है। यही कारण है कि पप्पू यादव और उपेंद्र कुशवाहा के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी दोनों गठबंधनों में एका नहीं हो सका।

दलित वोट बैंक पर मायावती की पकड़

यदि उत्तर प्रदेश की सियासत को देखा जाए तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने काफी दिनों से दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनाए रखी है। दूसरी कुछ जातियों और मुस्लिम वोट बैंक के सहारे मायावती कई बार उत्तर प्रदेश जैसे सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माने जाने वाले राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।

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चंद्रशेखर दे रहे मायावती को चुनौती

अब दलित वोट बैंक को लेकर उन्हें चुनौती मिलने लगी है। भीम आर्मी बनाकर सबके बीच चर्चा का विषय बने चंद्रशेखर आजाद ने मायावती के सामने चुनौती पेश करना शुरू कर दिया है। रावण उपनाम से जाने जाने वाले चंद्रशेखर ने करीब साल भर पहले राजनीतिक दल भी बना लिया है और अब वे बिहार विधानसभा चुनाव में भी उतर गए हैं।

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आवाज उठाने में चंद्रशेखर आगे

उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड की गूंज पूरे देश में सुनी गई और इस मामले में आजाद ने हाथरस पहुंच कर खुद को दलितों के लिए आवाज उठाने वाला साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मायावती हालांकि हाथरस नहीं गईं, लेकिन उन्होंने ट्वीट के जरिए हाथरस कांड को लेकर लगातार सरकार पर हमला बोला।

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इस मामले में दोनों की सक्रियता से समझा जा सकता है कि दोनों के बीच दलित वोटों की सियासी जंग शुरू हो चुकी है। इससे पहले भी दलितों से जुड़े मुद्दों पर बुलंदी से आवाज उठाते हुए आजाद मायावती के लिए चुनौती पेश करते रहे हैं।

यूपी की जंग का असर

बसपा और चंद्रशेखर आजाद की बीच छिड़ी सियासी जंग का असर बिहार में भी दिखाई पड़ा। दोनों दलों के बीच सियासी प्रतिद्वंद्विता के कारण ही रालोसपा और जाट की अगुवाई वाले दोनों गठबंधन के बीच एका नहीं हो सका। हालांकि पप्पू यादव ने आखरी समय तक इस बात की कोशिश की कि दोनों गठबंधन एकजुट होकर विधानसभा चुनाव में उतरें।

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बातचीत का नहीं निकला असर

उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव के बीच बंद कमरे में काफी देर तक बातचीत भी हुई मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकल सका। सियासी जानकारों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि बसपा चंद्रशेखर से जुड़े किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हुई।

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उधर मायावती पर लगातार हमला करने वाले चंद्रशेखर बसपा को घेरने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। यही कारण था कि उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव के चाहने के बावजूद दोनों गठबंधनों के बीच दोस्ती नहीं कायम हो सकी।

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सभी की नजर दलित वोट बैंक पर

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान विभिन्न सियासी दल दलित वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। बिहार में दलितों की आबादी करीब 16 फ़ीसदी है और हर सियासी दल की नजर दलितों पर लगी हुई है।

2011 की जनगणना को आधार माना जाए तो राज्य में दलित मतदाताओं की संख्या करीब एक करोड़ 65 लाख से अधिक है। जानकारों का कहना है कि पिछले 9 वर्ष के दौरान दलित मतदाताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है।

यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में दलित वोटों के लिए सियासी दलों के बीच जंग शुरू हो चुकी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि कौन सा सियासी दल दलितों का समर्थन पाने में कामयाब होता है।

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