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Budget 2021: उम्मीदों पर टिकी है सेल्युलर कंपनियां, जाने क्या मिलेगा इस बार
देश की मोबाइल कम्पनियां काफी अरसे से लाइसेंस फीस में कटौती की मांग करते आ रहे हैं। सेल्युलर ऑपरेटर एसोसियेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि इस फंड को खत्म कर दिया जाए।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ। दुनिया में विकाससील देश कहा जाना वाला भारत अब विकसित श्रेणी की दौड़ में आ रहा है। कृषि प्रधान देश भारत अब टेक्नालाजी के क्षेत्र में लगातार उंचाईयां छू रहा है। अब यहां पर कम्प्यूटर, लैपटाप, मोबाइल आदि डिजिटल इंडिया के सपने के साकार करने वाले यंत्र हैं। यह सब वस्तुएं विलासिता की चीजे न होकर पूरी तरह से लोगों की आवश्यकता बन चुकी है।
लाइसेंस फीस में कटौती की मांग
देश की मोबाइल कम्पनियां काफी अरसे से लाइसेंस फीस में कटौती की मांग करते आ रहे हैं। सेल्युलर ऑपरेटर एसोसियेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि इस फंड को खत्म कर दिया जाए। साथ ही देश की तीन बड़ी टेलीकॉम कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम यूसेज चार्जेस को 3 फीसदी कर दिया जाएं।
रियायत मिलने से क्षेत्र को मिलेगा बढावा
उनका मानना है कि यदि लाइसेंस फीस में यदि रियायत मिल जाए तो इससे इस क्षेत्र को और बढावा मिल सकता है। कम्पनियों ने जीएसटी को खत्म करने की बात भी कई बार विभिन्न फोरमों के माध्यम से कही है। मोबाइल सेवा देने वाली इन कम्पनियों को लगता है कि यदि केन्द्र सरकार अपने बजट में इस क्षेत्र पर ध्यान दे तो गावों में भी मोबाइल सेवा को बेहतरीन तरीके से कवर किया जा सकता है। कस्टम ड्युटी से राहत के साथ ही इन कम्पनियों की इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंन्डेबल की बाते उठती रही है।
कंपनियों को सहना पड़ता है घाटा
दरअसल पिछले सरकार की नीतियों के चलते मोबाइल सेवा देने वाली कम्पनियों को घाटा होता रहा है। इसी के चलते आईडिया और वोडाफोन को एक दूसरे से हाथ मिलाना पड़ा और इससे सबसे बड़ा नुकसान कर्मचारियों को हुआ। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक कम्पनियों को संयुक्त रूप से 1,20,000 करोड़ रुपए कर्ज के चलते दोनों कंपनियों को अपने 5,000 कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी।
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1,20,000 करोड़ रुपए का कर्ज
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों कंपनियां अभी काफी घाटे में हैं। उन पर संयुक्त रूप से 1,20,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। इसलिए मर्जर की प्रक्रिया को देखने वाली नोडल टीम ने दोनों कंपनियों को अगले दो महीने में 5,000 कर्मचारियों की छंटनी करने को कहना पड़ा। कम्पनियों की लगातार इस बात की मांग रही है कि देश में उनके लिए लाइसेंस फीस तीन फीसदी की जगह घटाकर एक फीसदी करने से टेलीकॉम विभाग या सरकार का एडमिन कॉस्ट कवर हो जाएगा। इनका मानना है कि कि भारत में यह दरें अंतरराष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है। टेलीकॉम कंपनियां अपने एडजेस्टेड ग्रॉस रिवेन्यू का 8 फीसदी सरकार को सौंप देती है। इसमें 5 फीसदी यूनिवर्सल पब्लिक सर्विस ऑब्लिगेशन फंड में चला जाता है।
कंपनियों को बजट से उम्मीद
कोरोना काल के दौरान अन्य उद्योगों की तरह ही मोबाइल कम्पनियों पर भी इसका असर पड़ा है। उद्योग जगत स्पेक्ट्रम ऑक्शन 5जी तकनीक के लागू करने, नेटवर्क में विस्तार और ऑप्टिकल फाइबर की वजह से कई बड़े खर्च की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कम्पनियों को लग रहा है कि बजट में यदि सरकार ने उन्हें बजट में राहत नहीं दी तो भविष्य में संचार सेवाएं देने में कंपनियों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा।
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