×

स्टार्टअप्स को कोरोना का झटका, संकट में शेयरिंग इकनॉमी

इन दुस्साहसी सीईओ के लिए पहला झटका पिछले सितंबर में आया जब ई-सिगरेट से दुनिया भर में कई मौतें दर्ज की गईं। इससे ई-सिगरेट स्टार्टअप कंपनी जुल की नींव हिल गई।

Aradhya Tripathi
Published on: 12 Jun 2020 10:34 AM GMT
स्टार्टअप्स को कोरोना का झटका, संकट में शेयरिंग इकनॉमी
X

नीलमणि लाल

लखनऊ: ज्यादा समय नहीं हुआ है। कोई दस साल पहले एक नई इकॉनमी का उदय हुआ। ये शेयरिंग इकॉनमी थी जिसमें ऊबर, ओला, ओयो, एयरबीएनबी जैसे तमाम खिलाड़ी शुमार थे जिनको स्टार्टअप नाम से जाना गया। लेकिन कोरोना ने इस सभी को संकट में डाल दिया है। जिस उबर के साथ जुड़ कर लाखों कार वालों ने बढ़िया कमाई की वो उबर अब 4 हजार कर्मचारियों को हटा रहा है। शेयर्ड घरों का कांसेप्ट लेकर आए एयरबीएनबी ने खूब नाम कमाया लेकिन अब वह 25 फीसदी स्टाफ घटा रहा है। शेयर्ड आफिस स्पेस वाली कंपनी वी वर्क अब सरवाइवल मोड में है। फूड डिलिवरी कंपनी ग्रबहब का धंधा बैठता दिखाई दे रहा है।

मिला मोटा निवेश

नए बिजनेस आइडिया ले कर धमाकेदार एंट्री करने वाली इन कंपनियों में अमेरिका की सिलिकॉन वैली के धन्नासेठों ने खूब निवेश किया। ऐसी जिन कंपनियों की वैल्यू की वैल्यू 1 बिलियन डालर या उससे ज्यादा थी उनको यूनिकॉर्न नाम से जाना गया। ये सभी स्टार्टअप फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के सूत्रवाक्य ‘तेजी से बढ़ो और विध्वंस करो’ को गांठ बांध कर चल रहे थे। ये सब बिजनेस के पारंपरिक तरीकों, मॉडलों के एकदम विपरीत जा कर तकनीक के इतिहास को बदलते जा रहे थे और इनके तेजतर्रार सीईओ नए बाज़ारों में धमाकेदार घुसपैठ करने का सिलसिला जारी रखे थे।

इन दुस्साहसी सीईओ के लिए पहला झटका पिछले सितंबर में आया जब ई-सिगरेट से दुनिया भर में कई मौतें दर्ज की गईं। इससे ई-सिगरेट स्टार्ट अप कंपनी जुल की नींव हिल गई। इसके बाद सितंबर में ही ऑफिस शेयरिंग स्टार्टअप वीवर्क का प्रस्तावित आईपीओ रद्द हो गया। उबर के शेयर नीचे आ गए। उस समय लगा कि जल्द सब पटरी पर आ जाएगा। लेकिन 2020 में कोरोना वायरस आ गया। काम धाम ठप होने का नतीजा ये हुआ कि उबर का रेवेन्यू 80 फीसदी घट गया। अब ये स्टार्टअप 20 फीसदी कर्मचारी हटा रहा है। वीवर्क की वैल्यू 200 मिलियन डालर घट गई है।

ये भी पढ़ें- बिहारः सीतामढ़ी के पास नेपाल बॉर्डर पर हुई फायरिंग में 1 मरा, 2 घायल

अपने अरबों डालर के निवेश के बल पर स्टार्टअप कंपनियों की वैल्यू को कृत्रिम रूप से फुलाने वाले सॉफ्टबैंक को जबर्दस्त घाटा उठाने के बाद दसियों अर्ब डलर की संपत्तियां बेचनी पड़ रहीं हैं। कोरोना का कहर और उसके परिणामस्वरूप मंडी का असर कब तक रहेगा ये तो कोई नहीं बता सकता। लेकिन एक अनुमान है कि 2022 या 2023 तक ये हालात बने रह सकते हैं। मोटा कैश रखे स्टार्टअप्स के लिए भी ये बहुत लंबा समय है। सभी स्टार्टअप गहरे जोखिम में फंसे नजर आ रहे हैं जिससे इन कंपनियों के क्षणभंगुर बिजनेस की कलई खुलती दिखती है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर लेन शेर्मन का कहना है कि अब ये सवाल लाजिमी है कि क्या इन कंपनियों के बिजनेस मॉडेल का कोई तर्क है?

सॉफ्ट बैंक हटा पीछे

भारत के 31 फीसदी स्टार्टअप्स ने खर्चा बचाने के लिए कर्मचारियों की छटनी का रास्ता अपनाया। 246 से ज्यादा भारतीय स्टार्टअप्स ने छटनी की है जबकि 278 ने नई बहाली पर रोक लगा दी है। नासकौम के एक सर्वे के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा वो स्टार्टअप प्रभावित हुये है जो शुरुआती या बीच के दौर के हैं। इनमें बिजनेस टू कस्टमर कैटेगरी के स्टार्टअप बहुसंख्य हैं। जिन कंपनियों ने समय को देख कर अपना बिजनेस मॉडेल बदल लिए वो तो बच गए हैं।

ये भी पढ़ें- तो युद्ध को तैयार नेपाल, भारत से लगी सीमाओं पर लगाई सशस्त्र पुलिस

कोरोना काल में स्टार्टअप्स की गति देख कर सबसे बड़ा निवेशक सॉफ्ट बैंक पीछे हट गया है। नवंबर 2019 तक सॉफ्ट बैंक ने 91 कंपनियों में 80 बिलियन डालर का निवेश कर रखा था। लेकिन अब कोरोना के कारण उसे 24 बिलियन डालर का नुकसान होने की आशंका है। बीते मार्च में सॉफ्ट बैंक ने कहा था कि वह 41 बिलियन डालर की परिसंपत्तियों को बेचने वाला है। इन परिसंपत्तियों में मालदार कंपनी अलीबाबा में बड़ी हिस्सेदारी शामिल है।

तो क्या स्टार्टअप खत्म हो रहे हैं

अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या स्टार्टअप और दुस्साहसी उद्यमी खत्म हो रहे हैं या कुछ समय के लिए सुप्तावस्था में चले गए हैं। कंपनियों के वैल्यूशन में एक्स्पर्ट्स का कहना है कि एक औसत बड़ा स्टार्टअप 48 फीसदी ओवरवैल्यू का है। इसमें कोरोना वायरस ने हालत और भी खराब कर दी है।

ये भी पढ़ें- SC ने दिली सरकार को लगाई लताड़, शवों पर मांगी रिपोर्ट

लेकिन अभी ये नहीं कहा जा सकता कि कौन बचेगा और कौन मरेगा। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरा स्ट्रेबुलेव का कहना है कि वही बचेगा जिसके पास ज्यादा नकदी होगी। ज्यादा नकदी वाली कंपनियाँ तो आगे चल कर और भी पैसा कमा सकतीं हैं क्योंकि प्रतिद्वंदियों के सफाये से उनको ज्यादा बड़ा मार्केट शेयर मिल जाएगा।

क्लासपास बनी उदाहरण

एक स्टार्टअप कंपनी है क्लास पास। ये एक फिटनेस एप है जो दुनिया भर में फिटनेस स्टूडियो में ग्राहक उपलब्ध कराता है। क्लासपास ने अब तक 579 मिलियन डालर का निवेश जुटाया है और इसकी वैल्यू 1 बिलियन डालर की आँकी गई है। जनवरी में ही इसने 285 मिलियन डालर का नया निवेश पाया था। सवाल ये उठता है कि स्टूडेंट्स और फिटनेस स्टूडियो को जोड़ने वाले एक एप को 285 मिलियन डालर की क्या जरूरत आ पड़ी थी? अगर लक्ष्य आईपीओ था तो हाथ में नकदी के साथ नकदी का फ्लो भी जरूरी होता है। बहरहाल, जब कोविड-19 का हमला हुआ तो क्लासपास ने अपने कर्मचारियों की संख्या में 50 फीसदी की कटौती कर दी।

ये भी पढ़ें- हुनरमंद और ऊंची डिग्री वाले कर रहे मनरेगा में काम

ये हाल तब था जबकि कंपनी के बैंक खाते में 285 मिलियन डालर रखे हुए थे। इसका कोई तर्क नहीं है हालांकि क्लासपास के सीईओ फ्रिट्ज़ लैनमैन का कहना है कि महामारी में क्या किया जाये इसकी कोई गाइड बुक तो है नहीं। हम मानवीय तरीके से कठोर फैसले ले रहे हैं। अब फ्रिट्ज़ की इस बात में उस 285 मिलियन डालर का कोई जिक्र नहीं है। एक पहलू ये भी है कि लॉकडाउन में फिटनेस स्टूडियो के पास ग्राहकों का टोटा हुआ तो क्लासपास ने उनको ग्राहक देने शुरू किये। लोग ऑनलाइन फिटनेस क्लासेस जॉइन करने लगे और क्लासपास का काम बहुत बढ़ गया। लेकिन एप इकॉनमी में एक दिक्कत है। वो ये कि एक एप को तीन पक्षों को संतुष्ट करना होता है – ग्राहक, बिजनेस और एप मालिक को।

ये भी पढ़ें- CM योगी का बड़ा एलान: गरीब बच्चों के लिए विद्या योजना, मिलेंगे इतने रुपये हर महीने

अगर तीनों के लिए पर्याप्त प्रॉफ़िट नहीं है तो ये बिजनेस नहीं चल सकता। क्लासपास, उबर और लिफ्ट जैसे एप के लिए पर्याप्त प्रॉफ़िट नहीं मिल रहा। ऐसे में किसी न किसी को तो निचोड़ा जाता है और वो वर्ग है बिजनेस और ग्राहक के बीच की कड़ी के लोग जो डिलिवरी करते हैं। जब तक कंपनियों और उनके सीईओ के पास नकदी है तब तक संकट काल में उनको और उनके निवेशकों को कोई दिक्कत नहीं होनी है। लेकिन संकट के दौर में कर्मचारियों और पार्टनरों की बलि जरूर चढ़ाई जा सकती है।

अमेरिका के दुस्साहसी उद्यमी

अमेरिका को दुस्साहसियों का देश भी कहा जाता है। दुनिया भर से लोग यहां आए और ऐसे ऐसे काम किए और सफलता के झंडे गाड़े जिनके बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। जॉन डी रॉकफेलर, एंड्रू कार्नेगी, जेपीमॉर्गन आदि ढेरों नाम हैं जिन्होंने कारोबार में दुस्साहस दिखाया और अपने प्रतिद्वंद्वियों को खत्म कर दिया। यहां उन लोगों को सम्मान से देखा जाता रहा है जिन्होने तमाम विपरीत परिस्थितियों के सामने अकेले मुक़ाबला किया और सफलता प्राप्त की।

यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की इतिहास की प्रोफेसर माग्रेट ओमारा कहती हैं कि 18वीं सदी के बाद ये एक ऐसा देश रहा है जहां लोगों ने स्थापित परम्पराओं के खिलाफ जा कर नई नई चीजें बनायीं हैं। ये देश सख्त इनसानों, सेल्फ मेड लोगों और उद्यमियों का रहा है। लेकिन कोरोना वायरस ने उस इकॉनमी को खोल कर रख दिया है जहां दुस्साहसी पूंजीवाद स्वीकार्य चीज है। सबसी बड़ा उदाहरण पेचेक प्रोटेक्शन प्रोग्राम के तहत पहले राउंड में दिये गए 349 बिलियन डालर का है। ये धन छोटे कारोबारियों के लिए सरकार ने दिया था जिनको बने रहने के लिए मदद की जरूरत थी।

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन बढ़ाने पर राज्य सरकारों ने लिया ये फैसला, जानें यहां

जैसे कि नाई की दुकान, पंसारी के स्टोर, छोटे रेस्तरां आदि। जब ऐसे बहुत से करोड़ों अरबों डालर वाली कंपनियों ने ये सरकारी इमदाद ले ली थी। जब बात खुली तो इन सभी ने पैसा वापस कर दिया लेकिन सवाल उठा कि आखिर इन कंपनियों ने मदद के लिए अप्लाई ही क्यों किया था। ये भी दुस्साहसी पूंजीवाद का हिस्सा है। अंततः पेचेक प्रोटेक्शन की 310 मिलियन की दूसरी किस्त जारी करते समय ट्रेजरी सेक्रेटरी स्टीवन म्यूशिन को चेतावनी देनी पड़ी कि अगर किसी अपात्र ने अप्लाई किया तो आपराधिक कार्रवाई की जाएगी।

Aradhya Tripathi

Aradhya Tripathi

Next Story