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जैनेंद्र कुमार: साहित्य साधना संग स्वतंत्रता सेनानी भी, उपन्यास को दिया नया मोड़

साहित्य साधना के साथ ही स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लेने वाले जैनेंद्र कुमार का निधन आज ही के दिन 1988 में नई दिल्ली में हुआ था। हिंदी साहित्य के जानकारों का मानना है कि शिल्प व वस्तु संगठन की दृष्टि से जैनेंद्र कुमार ने हिंदी कथा साहित्य को विशेष दृष्टि प्रदान की।

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Published on: 24 Dec 2020 5:57 AM GMT
जैनेंद्र कुमार: साहित्य साधना संग स्वतंत्रता सेनानी भी, उपन्यास को दिया नया मोड़
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जैनेंद्र कुमार: साहित्य साधना संग स्वतंत्रता सेनानी भी, उपन्यास को दिया नया मोड़

लखनऊ: प्रेमचंद युग के महत्वपूर्ण कथाकार माने जाने वाले जैनेंद्र कुमार की रचनाओं में जीवन के विविध समस्याओं का चित्र उभरता है। उनके विचारों और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में मौलिकता दिखाई देती है। इसके साथ ही गांधीवादी दर्शन की छाप भी उनकी रचनाओं में सहज रूप से देखी जा सकती है। साहित्य साधना के साथ ही स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लेने वाले जैनेंद्र कुमार का निधन आज ही के दिन 1988 में नई दिल्ली में हुआ था। हिंदी साहित्य के जानकारों का मानना है कि शिल्प व वस्तु संगठन की दृष्टि से जैनेंद्र कुमार ने हिंदी कथा साहित्य को विशेष दृष्टि प्रदान की। प्रेमचंद के बाद उन्होंने हिंदी उपन्यास विधा को नया मोड़ दिया।

असहयोग आंदोलन में लिया था हिस्सा

जैनेंद्र कुमार का जन्म 2 जनवरी 1950 को अलीगढ़ के कोडीगंज गांव में में हुआ था। उनके मामा के द्वारा हस्तिनापुर में स्थापित गुरुकुल में उनकी पढ़ाई लिखाई हुई। दो वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का निधन हो गया था। उनका मूल नाम आनंदी लाल था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण की। 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान वे पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का जज्बा दिखाया।

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बाद में उन्होंने राजनीतिक संवाददाता के रूप में भी काम किया मगर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने लेखन का काम शुरू किया। उन्होंने 1930-32 के दौरान भी जेल यात्राएं सहीं। लाला भगवान दास, श्रीमती सरोजनी नायडू और आचार्य विनोबा भावे के साथ उन्होंने हिंदू मुस्लिम यूनिटी कांफ्रेंस में भी हिस्सा लिया था।

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मानव मन के कुशल चितेरा

जैनेंद्र कुमार को मानव मन का कुशल चितेरा माना जाता है। वैसे तो उनकी भाषा सहज और रोचक है मगर कहीं कहीं पर दार्शनिक तथा वाक्य विन्यास के कारण उनकी शैली गंभीर व जटिल भी हो गई है। अपनी बेबाक लेखन कला के कारण वह हमेशा हिंदी साहित्य में चर्चा का विषय बने रहे। वे अपने समकालीन प्रेमचंद से विशेष रूप से प्रभावित थे।

जैनेंद्र कुमार की रचनाएं

उनका पहला कहानी संग्रह फांसी था और इस कहानी संग्रह ने ही उन्हें प्रसिद्धि दिला दी। उपन्यास परख के जरिए भी उन्हें हिंदी साहित्य में ठोस पहचान मिली। उनकी रचनाओं में कहानी संग्रह पाजेब, एक रात, दो चिड़िया, स्पर्धा तथा उपन्यासों में कल्याणी, सुनीता, त्यागपत्र, विवर्त और अनाम स्वामी का विशेष तौर पर उल्लेख किया जा सकता है। उनका अनुदित उपन्यास श्यामा है। उनके निबंधों में मंथन, सोच विचार, बांग्लादेश एक यक्ष प्रश्न की विशेष तौर पर चर्चा की जाती है। उनकी लगभग 200 कहानियां जैनेंद्र की श्रेष्ठ कहानियां नाम से आठ भागों में प्रकाशित की गई हैं। इसके साथ ही उन्होंने कई संस्मरण ग्रंथ भी लिखे जिनमें विशेष रूप से गांधी कुछ स्मृतियां, प्रेमचंद एक कृति व्यक्तित्व, कहानी अनुभव और शिल्प और कालपुरुष गांधी का उल्लेख किया जा सकता है।

प्रेमचंद के पूरक थे जैनेंद्र

जैनेंद्र कुमार को समझने के लिए प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई किताब समय और हम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जैनेंद्र कुमार ने प्रेमचंद के यथार्थ के मार्ग को नहीं अपनाया, लेकिन वे प्रेमचंद्र के विलोम नहीं थे बल्कि उन्हें प्रेमचंद का पूरक माना जाता है। जानकारों का कहना है कि प्रेमचंद और जैनेंद्र को साथ-साथ रखकर ही जीवन और इतिहास को उसकी समग्रता के साथ समझा जा सकता है।

हिंदी भाषा को दिया नया तेवर

हिंदी गद्य के निर्माण में जैनेंद्र के योगदान को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जैनेंद्र कुमार से ही हिंदी कहानी ने प्रयोगशीलता का पहला पाठ सीखा था। जैनेंद्र कुमार ने हिंदी को एक पारदर्शी भाषा और भंगिमा दी और उसे एक नया तेवर प्रदान किया। उनके उपन्यासों में चरित्रों की भरमार नहीं दिखाई देती। पात्रों की कम संख्या के कारण भी जैनेंद्र के उपन्यासों में वैयक्तिक तत्वों की प्रधानता दिखाई पड़ती है। जैनेंद्र कुमार के पात्र वाह्य वातावरण और परिस्थितियों से अप्रभावित और अपनी अंतर्मुखी कृतियों से संचालित दिखाई पड़ते हैं।

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हिंदी गद्य में शुरू किया प्रयोगवाद

जीवन और व्यक्ति को बंधी लकीरों के बीच से हटाकर देखने वाले जैनेंद्र कुमार ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी जिस पर बाद में अज्ञेय चलते हुए दिखाई देते हैं। प्रेमचंद के साहित्य की सामाजिकता में व्यक्ति के जिस निजत्व की कमी कभी-कभी खलती थी, उसे जैनेंद्र कुमार ने पूरा किया। इस नजरिए से जैनेंद्र कुमार को हिंदी गद्य में प्रयोगवाद का प्रारंभकर्ता माना जा सकता है। उनके पात्र बने बनाए सामाजिक नियमों को स्वीकार करके उन्हें अपना जीवन बिताने की कोशिश नहीं करते बल्कि उन नियमों को चुनौती देते हैं।

पद्मभूषण सहित कई सम्मान

हिंदी साहित्य की उल्लेखनीय सेवा के लिए जैनेंद्र कुमार को कई सम्मान भी प्रदान किए गए। उनकी उल्लेखनीय सेवा के लिए उन्हें 1971 में पद्मभूषण सम्मान और 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। 1973 में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में डीलिट की मानद उपाधि प्रदान की थी।

अंशुमान तिवारी

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