नेहरू के विरोध के बावजूद तीन बार मुख्यमंत्री बना, यूपी का ये राजनीतिक दिग्गज

यह वह शख्स था जिसका जादू राजनीतिक गलियारों में नेहरू से कहीं ज्यादा था। चंद्रभानु गुप्त बचपन से ही शरारती स्वभाव के थे लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान भी शरारत करने से बाज नहीं आया करते थे। इनके हंसी मजाक भी मशहूर रहे। साला शब्द को गाली नहीं मानते थे, उनका तकिया कलाम था।

राम केवी
Published on: 11 March 2020 11:46 AM GMT
नेहरू के विरोध के बावजूद तीन बार मुख्यमंत्री बना, यूपी का ये राजनीतिक दिग्गज
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रामकृष्ण वाजपेयी

प्रदेश की राजनीति में चंद्रभानु गुप्त अपनी एक अलग अहमियत और हैसियत रखते थे। उनका कद इतना बड़ा था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू से कोई बात पूछने से पहले विधायक चंद्रभानु गुप्त से पूछा करते थे। उनके बारे में यह मशहूर था जो पंडित जवाहरलाल नेहरू उन्हें पसंद नहीं करते लेकिन बावजूद इसके यह शख्स तीन बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना।

मशहूर तो उनके बारे में यह भी था जो पैसा बहुत खाते हैं और अक्सर अपने विरोधियों को जवाब देते हुए वह मजाकिया अंदाज में कहा करते थे कि गली गली में शोर है, चंद्र भानु गुप्ता चोर है लेकिन सबसे अजीब बात यह रही जब इस शख्सियत का निधन हुआ तो उनके बैंक खाते में सिर्फ 10000 थे और घर में नाम मात्र का सामान।

यह वह शख्स था जिसका जादू राजनीतिक गलियारों में नेहरू से कहीं ज्यादा था। चंद्रभानु गुप्त बचपन से ही शरारती स्वभाव के थे लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान भी शरारत करने से बाज नहीं आया करते थे। इनके हंसी मजाक भी मशहूर रहे। साला शब्द को गाली नहीं मानते थे, उनका तकिया कलाम था।

मशहूर किस्सा

उनके बारे में एक किस्सा मशहूर था कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एक प्रोफेसर को चंद्रभानु पसंद नहीं करते थे, इसी दौरान उनके दिमाग में एक शरारत ने जन्म लिया। और उन्होंने जिस कुर्सी पर प्रोफ़ेसर बैठा करते थे उस कुर्सी पर छोटी-छोटी पिनें लगा दीं। प्रोफेसर साहब क्लास में आए और जैसे ही कुर्सी पर बैठे वो दर्द से चिल्लाने लगे और खड़े हो गए। उन्होंने इस घटना की शिकायत की लेकिन छात्र का नाम किसी को नहीं पता चला।

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सीबी गुप्त का जन्म 14 जुलाई 1902 को हुआ था, उनके पिता हीरालाल बहुत पैसे वाले नहीं थे, लेकिन उनका सम्मान बहुत था। वह गांव के लोगों के झगड़े निपटाया करते थे। चंद्रगुप्त पहली बार 7 दिसंबर 1960 से 2 अक्टूबर 1963 तक मुख्यमंत्री रहे। फिर जवाहरलाल नेहरू के चलते उन्हें हटना पड़ा। 14 मार्च 1967 को दोबारा मुख्यमंत्री बने लेकिन केवल 19 दिन के लिए ही कुर्सी पर रह पाए। 3 अप्रैल 1967 सीएम पद से उन्हें हट जाना पड़ा। इस बार चौधरी चरण सिंह कारण बने। इसके बाद 26 फरवरी 1968 को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और 18 फरवरी 1970 तक इस पद पर रहे।

जो ठान लिया वह करके रहते थे

चंद्र भानु गुप्त एक बार जो ठान लेते थे वह करके रहते थे। बचपन में उन्हें दूध पीना अच्छा नहीं लगता था। एक बार उनको जबरदस्ती दूध पिलाने की कोशिश हुई और दूध पिला दिया गया, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने कई साल तक दूध नहीं पिया। भाइयों में सबसे छोटे होने के नाते उन्हें मां का दुलार कुछ ज्यादा ही मिला, जिससे वह जिद्दी हो गए। यह जिद आगे भी उनके व्यवहार में झलकती रही।

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चंद्रभानु गुप्त के बारे में कहा जाता है कि एलएलबी करने के बाद वह एलएलएम करना चाहते थे लेकिन इसी बीच काकोरी कांड हो गया जिसमें वह गिरफ्तार कर लिए गए और इस कांड ने उनकी दिशा बदल दी, बाद में उन्होंने क्रांतिकारियों की पैरवी की, उनके वकील रहे। इस साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व का 11 मार्च 1980 को निधन हुआ। उनकी आत्मा लखनऊ में बसी है, जो आज भी उनके द्वारा शुरू कराए गए संस्थानों में दिखती है।

राम केवी

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