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पूरी होती हैं मनोकामनाएं: राजा कर्ण ने 2000 वर्ष पूर्व बनवाया था मां कर्णा देवी का मंदिर

इस मंदिर का निर्माण करीब 2 वर्ष पूर्व राजा कर्ण द्वारा करवाया गया था। राजा कर्ण के बारे में यहां के श्रद्धालुओं में जनश्रुति है कि दानवीर राजा कर्ण देवी के आशीर्वाद से प्राप्त सवा मन सोना प्रतिदिन दीन दुखियों और अपनी प्रजा में बांटा करते थे क्योंकि राजा कर्ण ने खौलते हुए तेल में गिर कर अपना शरीर मां कर्णा देवी को दान कर दिया था।

SK Gautam
Published on: 1 April 2020 3:12 PM IST
पूरी होती हैं मनोकामनाएं: राजा कर्ण ने 2000 वर्ष पूर्व बनवाया था मां कर्णा देवी का मंदिर
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प्रवेश चतुर्वेदी

औरैया: जनपद की यमुना नदी के किनारे पर स्थित माता कर्णा देवी का मंदिर आज भी लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। भक्तों का मानना है कि मां कर्णा देवी मंदिर जाने पर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यहां की प्राचीनतम और ऐतिहासिक खंडित मूर्तियों को देखने के लिए प्रति वर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि खंडित मूर्तियों के दर्शन से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

उल्लेखनीय है कि जनपद औरैया की बीहड़ी सीमा पर यमुना नदी के किनारे स्थित मां कर्णा देवी का मंदिर बहुत प्राचीन है।

जब खौलते हुए तेल में गिरे थे राजा कर्ण

बताया जाता है कि इसका निर्माण करीब 2 वर्ष पूर्व राजा कर्ण द्वारा करवाया गया था। राजा कर्ण के बारे में यहां के श्रद्धालुओं में जनश्रुति है कि दानवीर राजा कर्ण देवी के आशीर्वाद से प्राप्त सवा मन सोना प्रतिदिन दीन दुखियों और अपनी प्रजा में बांटा करते थे क्योंकि राजा कर्ण ने खौलते हुए तेल में गिर कर अपना शरीर मां कर्णा देवी को दान कर दिया था।

यमुना नदी के बीहड़ में स्थित है माता का मंदिर

जिससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें प्रतिदिन सवा मन सोना भेट स्वरूप देने का वचन दिया था। उस दिन से लगातार माता कर्णा देवी कर्ण को सवा मन सोना दिया करती थी। इस बात को जानने के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने उनके यहां नौकरी कर ली। फिर एक राजा कर्ण का वेश धारण कर वह मां कर्णा देवी के सामने पहुंचे तो माता ने उन्हें पहचान कर इक्षित वर मांगने को कहा।

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राजा विक्रमादित्य ने तलवार से प्रहार कर मूर्ति के किये दो हिस्से

राजा विक्रमादित्य ने उन्हें अपने राज्य में चलने को कहा जिस पर माता ने इंकार कर दिया और क्रोधित होकर विक्रमादित्य ने तलवार से प्रहार कर मूर्ति का आधा हिस्सा काटकर उज्जैन में ले जाकर स्थापित कर दिया। जिसकी पूजा वहां पर हरसिद्धि देवी नाम से आज भी हो रही है।

वहीं आधी खंडित मूर्ति को यहां कर्णा देवी के नाम से लोग पूछते हैं। यहां प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में लोग आते हैं। प्राचीन कालीन शिवलिंग व अन्य मूर्तियां यहां खंडित अवस्था में आज भी विराजमान हैं और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।

खंडित मूर्तियों के दर्शन से होती है भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण

मंदिर के सेवादार लक्ष्मण दास ने जानकारी देते हुए बताया आज से कुछ वर्षों पूर्व यहां पर घने जंगल हुआ करते थे और जंगली जानवर भी मंदिर के आसपास विचरण करते रहते थे। जिसके कारण यहां पर आने जाने वालों की संख्या में कमी रहती थी। मगर जैसे ही जनसंख्या बढ़ी तो लोगों को इस मंदिर की विशेषताएं पता चली। तब से यहां पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया था और आज तक यह मान्यता लगातार चली आ रही है।

बताया कि इस मंदिर की विशेषता यह है कि पूरे भारत में कहीं भी खंडित मूर्तियां नहीं है जिनकी पूजा की जाती हो। सिर्फ यही एक मंदिर है जहां पर खंडित मूर्तियों की पूजा की जाती है और इन मूर्तियों की पूजा करने से भक्तों को उसका फल अवश्य मिलता है।

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मेहनत पर मिलता है प्रतिफल

- कर्णा देवी मंदिर की मान्यता है कि यहां पर आज भी मेहनत करने वाले लोगों को कुछ न कुछ फल अवश्य मिलता है। कहा जाता है कि राजा कर्ण प्रतिदिन पूजा करने के बाद गरीब जनता को दान स्वरूप आभूषण भेट किया करते थे इसलिए इस मंदिर को फलदायिनी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

आधे धड़ की होती है आज भी पूजा

- जब राजा विक्रमादित्य ने मां कर्णा देवी से अपने राज उज्जैन चलने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया। माता ने राजा से कहा कि वह राजा कर्ण के लिए यहां पर आई थी। इसलिए अन्य स्थान पर वह नहीं जाएंगी। इससे क्रोधित होकर राजा विक्रमादित्य ने तलवार से मूर्ति पर प्रहार कर दिया, जिससे मूर्ति दो भागों में विभाजित हो गई। राजा विक्रमादित्य ऊपरी हिस्से को अपने साथ उज्जैन ले गए और अब आधे से की पूजा करण खेड़े पर की जाती है।

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प्राचीन काल में वैराग्य स्टेट के नाम से जानी जाती थी नगरी

- करण खेड़ा आज जिस स्थान पर है वह स्थान प्राचीन काल में वैराग्य स्टेट के नाम से जाना जाता था। जो आज जगम्मनपुर के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे यह स्थान औरैया व जनपद जालौन को यमुना नदी से जोड़ने वाला गांव है। यहां से पीपो के पुल से लोग माता के दर्शन के लिए जाते थे। पहले राजा कर्ण अपनी स्टेट से एक जमीदोज सुरंग से यहां पर आते थे और मां कर्णा देवी की पूजा कर वापस अपने राज्य लौट जाते थे। बताया जाता है प्राचीन काल में इस स्थान का नाम वैराग्य स्टेट था।

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प्रतिदिन खोलते तेल में स्नान करते थे राजा कर्ण

- पूर्व में रहे मंदिर के पुजारी रमा पाल दास बताते थे कि उन्हें बुजुर्गों ने बताया है कि राजा कर्ण अपने स्टेट से यहां पर सुरंग के माध्यम से सुबह प्रतिदिन आते थे। सबसे पहले वह एक बड़े बर्तन जिसमें तेल खोलता हुआ होता था उसमें मां की स्तुति करते हुए स्नान करते थे। तेल में स्नान करने के बाद उनका पूरा शरीर जल जाता था।

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इसके बाद देवी कर्णा उन्हें आशीर्वाद देकर जीवित करती थी और उन्हें प्रतिदिन की भांति सवा मन सोना देकर चली जाती थी। राजा कर्ण पूजा अर्चना करने के बाद अपनी प्रजा व अन्य लोगों में दान देने के बाद उसी सुरंग के माध्यम से अपने राज्य वापस लौट जाया करते थे।

रिपोर्ट-प्रवेश चतुर्वेदी



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